कसमार. कसमार प्रखंड के मंजूरा गांव में मंगलवार को सरहुल पूजा के अवसर पर आदिवासी कुड़मी समाज मंजूरा द्वारा रात्रि को रंगारंग कुड़माली झूमर एवं पाता नाच कार्यक्रम का आयोजन हुआ. कार्यक्रम की शुरुआत अखाड़ा वंदना के साथ हुई. इसके बाद पश्चिम बंगाल के कुड़माली लोकगीत गायक भोलानाथ महतो, ममता महतो व राजदूत महतो द्वारा एक से बढ़कर एक कुड़माली झूमर एवं अन्य गीत की प्रस्तुति दी गयी.
कुड़मी जनजाति की अपनी भाषा, संस्कृति, परंपरा विशिष्ट व अलग :
मुख्य रूप से मौजूद कुडमाली नेगाचारी गुरु संतोष कटियार ने कहा कि कुड़मी जाति नहीं, विशुद्ध रूप से जनजाति है. जिसकी अपनी आदिम लक्षण, विशिष्ट संस्कृति व भौगोलिक अलगाव का क्षेत्र है. अपनी भाषा, संस्कृति, परब-त्योहार, देवाभूता हैं. जन्म, बिहा एवं मृत्यु संस्कार के अपने नेग-नियम है, जो किसी हिंदू वैदिक संस्कृति से पूर्णतया भिन्न है. कहा कि अपनी विशिष्ट संस्कृति को पुनर्जीवित करने की जरूरत है, तभी कुड़मी जनजाति की पहचान सुरक्षित रहेगी.
संघर्ष करने की जरूरत :
कुड़मी जनजाति के शोधकर्ता दीपक कुमार पुनरिआर ने कहा कि सरकारी दस्तावेज एवं हमारी विशिष्ट जनजातीय लक्षण बताता है कि कुड़मी जाति नहीं जनजाति है, लेकिन सरकार इन सब के बावजूद भी कुड़मी को जनजाति की सूची में शामिल नहीं कर रही है. इसके लिए और संघर्ष करने की जरूरत है.
ये थे मौजूद :
मौके पर राजेंद्र महतो, मुरली पुनुरिआर, उमाचरण गुलिआर, टुपकेश्वर केसरिआर, प्रवीण केसरिआर, सहदेव टिडुआर, पीयूष बंसरिआर, महावीर गुलिआर, ज्ञानी गुलिआर, भागीरथ बंसरिआर, मुरली जालबानुआर, सुभाष हिन्दइआर, सुलचंद गुलिआर, मिथिलेश केटिआर, उमेश केसरिआर, अखिलेश केसरिआर समेत आदि मौजूद थे.