इससे पहले सिर्फ आइटीआइ प्रशिक्षित को तीन वर्षीय डिप्लोमा कोर्स में तथा डिप्लोमा होल्डर को चार वर्षीय इंजीनियरिंग के डिग्री कोर्स के लिए ही द्वितीय वर्ष में एडमिशन मिलता था. हालांकि लेटरल इंट्री में आइटीआइ व डिप्लोमा होल्डर को प्राथमिकता देने की बात कही गयी है. इसके बाद रिक्त रही सीटों पर ही 12वीं पास व स्नातक को इंट्री मिलेगी. गौरतलब है कि लेटरल इंट्री के लिए झारखंड कंबाइंड अलग से परीक्षा आयोजित करता है.
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साइंस से 12वीं व ग्रेजुएट को इंजीनियरिंग में लेटरल इंट्री
बोकारो: साइंस (मैथ) विषयों के साथ 12वीं पास करने वाले राज्य के विद्यार्थी भी लेटरल इंट्री के जरिये डिप्लोमा इन इंजीनियरिंग में नामांकन ले सकते हैं. उसी तरह मैथ विषय वाले साइंस ग्रेजुएट इंजीनियरिंग के डिग्री कोर्स में लेटरल इंट्री के जरिये नामांकन ले सकते हैं. अॉल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआइसीटीइ) की इस […]
बोकारो: साइंस (मैथ) विषयों के साथ 12वीं पास करने वाले राज्य के विद्यार्थी भी लेटरल इंट्री के जरिये डिप्लोमा इन इंजीनियरिंग में नामांकन ले सकते हैं. उसी तरह मैथ विषय वाले साइंस ग्रेजुएट इंजीनियरिंग के डिग्री कोर्स में लेटरल इंट्री के जरिये नामांकन ले सकते हैं. अॉल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआइसीटीइ) की इस नयी गाइड लाइन को झारखंड सरकार ने भी मंजूर कर लिया है. यह निर्णय इसी सत्र (2017-18) से लागू होगा.
20 फीसदी सीट लेटरल इंट्री के लिए आरक्षित : एआइसीटीइ की इस गाइड लाइन को देश भर में इंजीनियरिंग कोर्स की अोर युवाअों का रुझान बढ़ाने की कवायद माना जा रहा है. सरकारी व निजी दोनों इंजीनियरिंग कॉलेजों को नामांकन की मंदी से निकालने का प्रयास भी है. गौरतलब है कि इंजीनियरिंग के डिप्लोमा व डिग्री, दोनों कोर्स की कुल सीटों का 20 फीसदी लेटरल इंट्री के लिए आरक्षित है. झारखंड में डिप्लोमा इन इंजीनियरिंग की करीब 11 हजार और डिग्री की करीब छह हजार सीटें हैं. इस तरह इन दोनों कोर्स में क्रमश: 2200 तथा 1200 सीटें लेटरल इंट्री के लिए आरक्षित होगी. इन्हीं सीटों में से रिक्ति के आधार पर 12वीं पास व स्नातक को जगह मिलेगी.
काम के लायक नहीं इंजीनियर रोजगार भी घटा : एक तरफ तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए नामांकन प्रक्रिया को ज्यादा उदार बनाया जा रहा है, वहीं दूसरी अोर इंजीनियरिंग स्नातकों के लिए रोजगार के अवसर घटे हैं. चालू वर्ष में तो इसमें मंदी साफ दिख रही है. आंकड़े बताते हैं कि देश भर के इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्लेसमेंट घटा है. रांची के ही एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज में सत्र 2013-17 के कंप्यूटर साइंस व आइटी ब्रांच को छोड़, जहां करीब 90 फीसदी लोगों को रोजगार मिल गया है, शेष सात ब्रांच में 50 फीसदी लड़के बेकार रह गये हैं. केमिकल इंजीनियरिंग में तो कुल 59 में से 17 लोगों की ही प्लेसमेंट हुई है. शेष का अब कोई स्कोप भी नहीं है. दरअसल भारत में तकनीकी शिक्षा स्तरीय नहीं मानी जाती. आइआइटी व कुछ अन्य प्रीमियम संस्थानों को छोड़ ज्यादातर इंजीनियरिंग कॉलेज बेरोजगार पैदा करते हैं. माना जाता है कि देश में हर साल निकलने वाले 10 लाख इंजीनियरों में से करीब 90 फीसदी नौकरी के लायक नहीं होते.
पहले से जॉब कर रहे इंजीनियर्स पर भी है खतरा : इधर पहले से जॉब पाये इंजीनियर्स पर भी खतरा मंडरा रहा है. ह्यूमन रिसोर्सेज से जुड़ी फर्म हेड हंटर्स इंडिया का दावा है कि तकनीक के मामले में खुद को अप-टू-डेट नहीं रखने वाले या नयी तकनीक के अनुसार खुद को नहीं ढालने वाले इंजीनियर्स की अगले तीन सालों तक लगातार छंटनी होगी. भारतीय आइटी सेक्टर में कार्यरत ऐसे डेढ़ से दो लाख इंजीनियरों की सालाना छंटनी का दावा हेड एंड हंटर्स ने किया है. टीअोआइ की रिपोर्ट के मुताबिक विप्रो, इंफोसिस, एचसीएल व टेक महिंद्रा से करीब 58 हजार इंजीनियर निकाले जा सकते हैं. आइटी सेक्टर की इस मंदी में यूएस के एच-1 वीजा पर प्रतिबंध के निर्णय के कारण अौर इजाफा हुआ है.
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