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रमेशिम : बिना सरकारी मदद के जनकल्याण करती है संस्था
बोकारो: स्थान : बोकारो इस्पात संयंत्र का मनसा सिंह गेट. तपती दुपहरी में हर गला प्यास का अहसास करता है. गरमी में प्यास लगने के बाद दिमागी स्थिति कैसी होती है, यह बताने की जरूरत नहीं है. बस इतना जरूर है कि एक कदम उठाना भारी साबित होता है. ऐसे में कहीं से पानी मिल […]
बोकारो: स्थान : बोकारो इस्पात संयंत्र का मनसा सिंह गेट. तपती दुपहरी में हर गला प्यास का अहसास करता है. गरमी में प्यास लगने के बाद दिमागी स्थिति कैसी होती है, यह बताने की जरूरत नहीं है. बस इतना जरूर है कि एक कदम उठाना भारी साबित होता है. ऐसे में कहीं से पानी मिल जाये, तो मानो जन्नत मिल जाता है. पर मनसा सिंह गेट के पास पानी मिलना भी चुनौती है. इस चुनौती को खत्म कर रहा है रमेशिम इंटरनेशनल फाउंडेशन. रमेशिम हर दिन शहर से पानी मंशा सिंह गेट ले जाकर पेयशाला लगाता है. साथ में गुड़ व चना की भी व्यवस्था होती है.
रमेशिम नाम का मतलब निजी पैसा से सरकार का काम करना है. संस्था बिना सरकारी मदद के जन क ल्याणकारी काम करती है. गरमी में पेयजल की व्यवस्था करना, ठंड में गरम कपड़ा की व्यवस्था, कुष्ठ रोगी-विकलांग-अनाथों की मदद, मजदूरों को सम्मान करना, नि:शुल्क सिलाई प्रशिक्षण केंद्र, पठन-पाठन सामग्री वितरण समेत कई प्रशंसनीय कार्य संस्था की ओर से की जाती है. खास बात यह कि संस्था सिर्फ लोगों को आत्मबल ही नहीं देती, बल्कि आध्यात्मिक बल भी देती है. इस ध्येय से लोगों को नियमित गीता पाठ भी कराया जाता है.
दो नाम मिलकर बना एक नाम : संस्था की अध्यक्ष शिमलेश वार्ष्णेय व उपाध्यक्ष रमेशचंद्र गुप्ता हैं. संस्था का नाम रमेशचंद्र के रमे व शिमलेश के शिम को जोड़कर बनाया गया है. बोकारो के अलावा संस्था की शाखा जयपुर, गांधीनगर, ग्वालियर, दिल्ली व बजीरगंज में भी. मुख्य कार्यालय गांधीनगर (गुजरात) में है. सेवा कर्म के अलावा संस्था की ओर से सेवाभाव नामक पत्रिका भी प्रकाशित की जाती है. फाउंडेशन की स्थापना 2010 में गुजरात (गांधीनगर) में हुआ की गयी थी. बोकारो में शाखा 2011 में खुली.
इंजीनियर व साइंटिस्ट करते हैं मदद : संस्था की खासियत कोर टीम है. प्रमोद कुमार गुप्ता बीपीएससीएल (बीएसएल) में इंजीनियर (वरीय प्रबंधक) हैं. श्री गुप्ता की पत्नी अमिता गुप्ता वित्त सचिव है. मनोज कुमार गुप्ता गुजरात में साइंटिस्ट (इंजीनियर) हैं. दोनों संस्थागत कार्य की रूप रेखा तैयार करने में अहम भूमिका निभाते हैं. योजना से लेकर अंजाम तक दोनों मॉनिटरिंग करते हैं. प्रमोद कुमार गुप्ता बताते हैं : निजी कमाई का 10 प्रतिशत हिस्सा जनसेवा के लिए खर्च होता है. यह संस्कार अभिभावक से बचपन में ही मिला. इसे आजीवन जारी रखना है.
लोगों की मदद के बाद फीडबैक : संस्था के उपाध्यक्ष रमेशचंद्र गुप्ता बताते हैं : 10 हजार से अधिक लोगों का प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से मदद की जा चुकी है. मदद करने के बाद संतुष्टि के लिए लोगों से फिडबैक लिया जाता है. इसके बाद किसी प्रकार की भूल-चुक को दूर करने की कोशिश होती है. बताते हैं : संस्था की ओर से समय-समय पर कार्यक्रम कराया जाता है. लेकिन, कार्यक्रम में किसी वीआईपी कल्चर को स्थान नहीं दिया जाता है. सदस्य या सदस्य के अभिभावक को ही मुख्य अतिथि बनाया जाता है.
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