बोकारो: सुबह छह बजते-बजते सेक्टर दो काली मंदिर के समीप विद्यार्थियों का जमावड़ा लगने लगता है. किसी के कंधे पर बैग होता है, तो कोई स्कूल ड्रेस में होता है. कोई ट्यूशन आने-जाने के क्रम में, तो कोई स्कूल जाने के क्रम में यहां पहुंच जाता है. सबका ध्यान पुरानी किताबों की सात दुकानों पर रहता है.
ये दुकानें आर्थिक रूप से कमजोर ही नहीं, बल्कि किताबों की खोज में निकले विद्यार्थियों की मांग पूरी करती हैं. दुकानदारों (कलीम, जमील, रूहुल, पिंटू, शाहजाद, इंतेखाब व इश्तेयाक) की जोड़ी रोजाना दर्जनों युवाओं की ख्वाहिशों को पूरी करते हैं. कइयों को नि:शुल्क पुस्तकें देकर मदद भी करते हैं.
10 साल से हैं पुरानी किताबों के व्यापार में : संचालक बताते हैं कि 10 साल से वे पुरानी किताबों के व्यापार में हैं. इसकी कहानी भी दिलचस्प है. इससे पूर्व सभी युवा कहीं न कही निजी काम करते थे. पढ़ाई के दौरान किताबों पर अधिक पैसे खर्च होते थे. आर्थिक रूप से संपन्न नहीं होने के कारण पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी. किताब दुकानों का चक्कर काटते-काटते आइडिया आया कि पुरानी किताबों का संग्रह बना कर आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों की मदद की जा सकती है.
सिलसिला शुरू हुआ… तो पीछे मुड़ कर देखा नहीं : इसके बाद पुरानी किताबों को खरीदने व नि:शुल्क लेने का एक सिलसिला शुरू किया. फिर पीछे मुड़ कर कभी नहीं देखा. कई बार ऐसे विद्यार्थी दुकान पर आ जाते हैं, जो पैसे नहीं दे पाते हैं. ऐसी स्थिति में हम किताब मुफ्त में दे देते हैं. साथ ही यह भी कहते हैं कि पढ़ाई पूरी होने के बाद किताब जमा करा दें. अब तक कितनों की मदद की याद नहीं.