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बच्चे अपनी क्षमता पहचानें, अभिभावक बच्चों के मनोभाव समझें व शिक्षक छात्रों की गतिविधियों पर नजर रखें
बोकारो में ‘प्रभात खबर बचपन बचाओ’ अभियान चिन्मय विद्यालय सेक्टर-5 से शुरू हुआ बोकारो : ‘प्रभात खबर बचपन बचाओ’ अभियान बोकारो में सोमवार से शुरू हुआ. अभियान की शुरुआत सेक्टर-5 स्थित चिन्मय विद्यालय से हुई.कार्यक्रम में क्लास 9 से 12वीं तक के 500 से अधिक छात्र-छात्राएं शामिल हुए. प्रभात खबर की ओर से उपस्थित एक्सपर्ट […]
बोकारो में ‘प्रभात खबर बचपन बचाओ’ अभियान चिन्मय विद्यालय सेक्टर-5 से शुरू हुआ
बोकारो : ‘प्रभात खबर बचपन बचाओ’ अभियान बोकारो में सोमवार से शुरू हुआ. अभियान की शुरुआत सेक्टर-5 स्थित चिन्मय विद्यालय से हुई.कार्यक्रम में क्लास 9 से 12वीं तक के 500 से अधिक छात्र-छात्राएं शामिल हुए. प्रभात खबर की ओर से उपस्थित एक्सपर्ट बोकारो जेनरल अस्पताल के निदेशक सह वरीय मनोचिकित्सक डॉ केएन ठाकुर, आर्ट ऑफ लिविंग की प्रशिक्षक सीमा अग्रवाल व सीएमसीइ-आइटीआई, चीरा-चास के निदेशक डॉ केएसएस राकेश ने बच्चों का मार्गदर्शन किया. बच्चों ने एक्सपर्ट से सवाल पूछ शंका का समाधान किया.
अभियान की शुरुआत अनुकरणीय पहल : चिन्मय मिशन बोकारो की आचार्या स्वामिनी संयुक्तानंद, चिन्मय विद्यालय स्कूल प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष विश्वरूप मुखोपध्याय, सचिव महेश त्रिपाठी व चिन्मय विद्यालय के प्राचार्य डॉ अशोक सिंह ने ‘प्रभात खबर बचपन बचाओ’ अभियान की सराहना की. आचार्या स्वामिनी संयुक्तानंद ने भी बच्चों को तनाव मुक्त रहने की सलाह दी. कहा : फेसबुक, ह्वाट्सएप, सोशल साइट्स के इस दौर में बचपन कहीं गुम होता जा रहा है.
बच्चे तनाव में आकर गलत कदम उठा रहे हैं. ऐसे में ‘प्रभात खबर बचपन बचाओ’ अभियान की शुरुआत एक अनुकरणीय पहल है.
विद्यार्थियों के सवालों का विशेषज्ञों ने दिया जवाब
सवाल : आज टॉप कॉलेजों में कटअप मार्क्स 99.9 प्रतिशत रखे गये हैं. ऐसे में हम लगातार पढ़ाई नहीं करें, तो क्या करें. पढ़ाई के कैसे तनाव से बचेंगे ?
डॉ केएन ठाकुर का जवाब – टॉप कॉलेज में नामांकन के लिए मार्क्स अधिक रखे गये हैं. मार्क्स प्रवेश के लिए रखे गये हैं. इससे आपका भविष्य नहीं बनता है. कई लोग ऐसे हैं, जो बड़े-बड़े कॉलेजों में पढाई की है. लेकिन फ्यूचर के नाम पर घर बैठे हुए हैं. छोटी-छोटी कंपनी में जॉब कर रहे हैं. आप कॉलेज अपनी क्षमता के अनुसार चयन करें. उसी कॉलेज में प्रतिभा का प्रदर्शन कर भविष्य को एक नया आयाम दें. मार्क्स को तनाव का कारण कभी न बनायें. मार्क्स आपके क्षमता मूल्यांकन नहीं करता है.
सीमा अग्रवाल का जवाब- हर व्यक्ति में शत प्रतिशत देने की क्षमता होती है. लेकिन लोग इस उधेड़बुन में रहते हैं कि कैसे शत प्रतिशत हमें सफलता की ओर जायेंगे. विद्यार्थियों को यह कभी भी नहीं सोचना चाहिए कि कौन क्या कहेगा. आप अपने काम को पूरी ईमानदारी से शत प्रतिशत देने का प्रयास करो. एक बार में नहीं, दो बार में नहीं तीसरी बार में निश्चित रूप से शत प्रतिशत सफलता मिलेगी. उत्तरदायित्व लेने से क्षमता बढ़ती है. साथ ही लक्ष्य की ओर बढ़ने में सहायक सिद्ध होता है.
डॉ केएसएस राकेश का जवाब- पढ़ाई के बाद मनोरंजन के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. इससे बेहतर है कि किसी दोस्त, परिजन या अभिभावकों से गपशप करें. इससे न केवल मन हल्का होगा, बल्कि ऊर्जावान होगा. गैजेट आपको तनाव देंगे. गैजेट आपसे बात नहीं कर सकते हैं. आपकी भावनाओं को समझ नहीं सकते हैं. आपको भावनात्मक उत्तर नहीं दे सकते हैं. कभी कभार मनोरंजन के लिए उपयोग किया जा सकता है. वह भी समय के अनुसार.
सीमा अग्रवाल का जवाब – आपके अंदर प्रतिभा है. इस बात को अभिभावकों के समक्ष प्रदर्शित करना चाहिए. साथ ही अभिभावक को बच्चों के मनोभाव को समझाने का प्रयास करना चाहिए. अभिभावक से खुद को साबित करने का अवसर मांगे. साथ ही उन्हें विश्वास दिलाये. अभिभावकों को यह समझना चाहिए कि बच्चों में छिपी प्रतिभा को सहयोग करें. कॅरियर बनाने की दिशा में सह प्रतिभा भी सहायक सिद्ध होगी. अपने बच्चों को कभी कम मत समझे. उन्हें हर वक्त प्रोत्साहित करें.
आज विद्यार्थी तनाव में जी रहे हैं. तनाव को नियंत्रण में किया जा सकता है. इसके लिए भावनाओं को नियंत्रण में करना जरूरी है. अभिभावक अपने बच्चों को टॉप पर देखना चाहते हैं. ऐसे में विद्यार्थियों में टॉपर बनने की होड़ मची हुई है. विद्यार्थी अधिक अंक की चाहत में लगातार 18-18 घंटे तक पढ़ाई कर रहे हैं. खुद को मशीन बना रखा है. पढ़ाई में प्रेशर से बचें. तनाव से बचने के लिए टाइम मैनेजमेंट सबसे जरूरी है. एक रूटीन बना लें. रूटीन के तहत ही पढ़ाई करें. सात घंटे कम से कम नींद लें. जो मन व मस्तिष्क को ऊर्जावान बनाता है. फास्ट फूड का कम से कम प्रयोग करें. पढ़ाई के साथ-साथ मनोरंजन भी जरूरी है. इससे मस्तिष्क को आराम मिलेगा. हेल्दी माइंड से ही हेल्दी बॉडी बन सकती है.
इलेक्ट्रॉनिक गैजेट की जगह मनोरंजन का कोई भी साधन चुन लें. खेल सबसे उचित व सही माध्यम है. इसमें शरीर फीट व मस्तिष्क को ऊर्जा हासिल होती है. आप जब भी तनाव महसूस करें. अभिभावक, दोस्त या रिश्तेदार में किसी से भी मन की बात कहें. सोशल साइट तनाव बढ़ाने का सबसे बड़ा माध्यम है. लड़का व लड़की के बीच दोस्ती गलत नहीं है. साथ ही ध्यान रखें की लक्ष्मण रेखा पार न करें. जिसे आप प्यार समझते हैं. वो हार्मोन का इफेक्ट है. इसे समझने का प्रयास करें. स्मार्ट फोन से बीमार लोग लगातार काउंसेलिंग के लिए आ रहे हैं.
आप इलेक्ट्रॉनिक गैजेट से जितनी दूर रहेंगे. उतना ही तनाव से मुक्त रहेंगे. आज हर लोगों की जरूरत इंटरनेट बन गया है. कॉलेज-स्कूल या कार्यस्थल सभी जगहों पर किसी भी समस्या का समाधान गूगल पर ढूंढा जाता है. ऐसे में हम खुद पर भरोसा खोते जा रहे हैं, जो तनाव का सबसे बड़ा कारण बनता जा रहा है. जब भरोसा होगा. तनाव पर नियंत्रण होने लगेगा. मनोरंजन का साधन भी बच्चे आज इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट व इंटरनेट में ढूंढ़ते हैं.
मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए विद्यार्थियों को खेल की ओर रुझान होना चाहिए, जो मनोरंजन के साथ-साथ शारीरिक क्षमता प्रदान करता है. साथ ही मानसिक रूप से ऊर्जावान बनाता है. बच्चे मशीन बनते जा रहे हैं. एक-दूसरे की दिनचर्या को फॉलो कर रहे हैं. असफल होने के डर से विद्यार्थी लगातार पढ़ाई करते हैं, जो मानसिक रूप से बीमार बनाता जा रहा है. विद्यार्थियों को सामाजिक ज्ञान भी होना जरूरी है. इससे न केवल तनाव कम किया जा सकता है. बल्कि विद्यार्थियों को एक नयी भविष्य प्रदान करेगी. अभिभावकों को भी इसमें योगदान देना होगा. आज हर अभिभावक की इच्छा है कि उनका पुत्र/पुत्री इंजीनियर या डॉक्टर बने. जाने-अनजाने अपने विचार बच्चों पर थोप रहे हैं. बच्चे अपनी मन की बातों को माता-पिता से बता नहीं पाते हैं. ऐसे में बचपन कुम्हला कर रह जाता है.
बच्चे बने तो बचे रहोगे, बड़े बनोगे तो पड़े रहोगे… कम उम्र में ही बच्चे सहजता खोते जा रहे हैं. इस कारण पॉरफाॅरमेंस खराब होता जा रहा है. बच्चे सौ प्रतिशत देना चाहते हैं. यही सौ प्रतिशत गलत दिशा में मुड़ जाती है, तो ऊर्जा बेकार हो जाती है. संकोच के कारण विद्यार्थी अपना सौ प्रतिशत देने से चूक जाते हैं. यह चूक ही तनाव की वजह बनता है.
बच्चों के अंदर की प्रतिभा को बचाना होगा. उसे तनाव मुक्त बनाने के लिए आसपास के वातावरण को ऊर्जावान रखना होगा. यह मान कर चलें कि भूतकाल व भविष्य पर आपका कोई नियंत्रण नहीं है. वर्तमान आपके समक्ष है. इसका पूरा-पूरा उपयोग करें. जिस काम में आगे बढ़ें उसमें अपना पूरा का पूरा शत प्रतिशत दें. जीवन को इंजन बनायें. डब्बा तो पीछे जुड़ता ही चला जायेगा. बार-बार गलती से समस्या पैदा नहीं होती. बल्कि क्षमता बढ़ती है, जो आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है. तनाव के कारण ही आपका खुद पर से भरोसा हटता है. ऐसी स्थिति में जिम्मेवारी नहीं लेना चाहते हैं. जिम्मेवारी लेंगे, तो पावर मिलेगा. यह समझें, माने कि जीवन मशीन नहीं है कि किसी के हाथ में रिमोट है. जो आपको नियंत्रित करेगा. अभिभावकों को भी बच्चों के मानसिक स्थिति को समझना चाहिए.
लक्ष्य का निर्धारण जरूर करें. उसको पाने के लिए प्रयास करें. लेकिन, तनाव लेकर नहीं. इसमें अभिभावकों व शिक्षकों की भूमिका बहुत अहम होती है. बच्चे को बच्चा ही रहने दें. उसे रोबोट समझने की भूल न करें. ऐसी स्थिति में बच्चों के भीतर की संवेदनीशलता खंडित हो जाती है. तनाव के साथ टॉपर बनने का धुन सवार हो जाती है. बच्चों को पढ़ने-लिखने के साथ-साथ खेलने-कूदने का भी मौका देना चाहिए. तभी बच्चों का मानसिक व शारीरिक विकास समग्र रूप से होगा. कई बार बच्चे खेल-खेल में भी बहुत कुछ सीख जाते हैं.
हमें सपने अवश्य देखनी चाहिए. सपनों को सच करने के लिए सही मार्गदर्शन के साथ मन में विश्वास के साथ आगे बढ़ें. लक्ष्य की ओर दृढ़ता पूर्वक बढ़ना चाहिए. सभी बच्चे प्रतिभा के धनी होते हैं. उनकी क्षमता व योग्यता के अनुरूप उनकी प्रतिभा को निखारना शिक्षकों व अभिभावकों का धर्म है. हर बच्चा प्रतिभा का धनी व विशेष होता है. आपका जीवन सृष्टि की सबसे अनमोल उपहार है. हमेशा बड़ा काम करने की सोचें. अभिभावक अंकों की रेस में कभी भी शामिल न हो. खुद जो नहीं बन पाये. वह अपने बच्चों पर न थोपे.
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