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चंदनक्यारी की मास्टरनी दीदी
लिंड्से बर्न्स : नाम विदेशी, मगर काम, किसी भी औसत हिंदुस्तानी से ज्यादा. साधारण वेशभूषा अौर बढ़िया हिंदी. पढ़ी-लिखी इतनी कि लाखों की नौकरी किसी भी बड़े विश्वविद्यालय या शहर में मिल सकती थी. लंदन से स्नातक अौर जेएनयू से एमफिल करने के बाद कोलियरी में काम करनेवाली महिला मजदूरों पर शोध के ख्याल से […]
लिंड्से बर्न्स : नाम विदेशी, मगर काम, किसी भी औसत हिंदुस्तानी से ज्यादा. साधारण वेशभूषा अौर बढ़िया हिंदी. पढ़ी-लिखी इतनी कि लाखों की नौकरी किसी भी बड़े विश्वविद्यालय या शहर में मिल सकती थी.
लंदन से स्नातक अौर जेएनयू से एमफिल करने के बाद कोलियरी में काम करनेवाली महिला मजदूरों पर शोध के ख्याल से लिंड्से बर्न्स धनबाद पहुंचीं. और, फिर चंदनक्यारी की ही हो कर रह गयीं. बोकारो जिले के सबसे पिछड़े प्रखंड की कम पढ़ी-लिखी महिलाओं के साथ महिला बैंक अौर अस्पताल के सफल संचालन का उनका प्रयोग अद्भुत है. पढ़िए एक रिपोर्ट.
चंदनक्यारी से लौट कर जीवेश
jivesh.singh@prabhatkhabar.in
मैट्रिक करने के बाद गांव, स्नातक के बाद जिला तथा थोड़ी अौर पढ़ाई के बाद राज्य व देश छोड़ने की बढ़ती सोचवालों के लिए बड़ा सवाल हैं लंकाशायर (इंग्लैंड) की लिंडसे बर्न्स.
23 साल की उम्र में इंग्लैंड से दुनिया देखने की चाह में निकलीं लिंडसे बर्न्स भारत आयीं अौर यहीं की होकर रह गयीं. बोकारो जिले के सबसे पिछड़े प्रखंड की कम पढ़ी-लिखी महिलाओं के साथ महिला बैंक व अस्पताल के सफल संचालन का उनका प्रयोग अद्भुत है. नतीजतन आज चास व चंदनक्यारी में 500 महिला मंडल, महिलाओं के बैंक व महिला स्वास्थ्य केंद्र का सफल संचालन हो रहा है.
बड़ी बात यह कि इन सबके पदाधिकारी अौर कर्ताधर्ता गांव की महिलाएं ही हैं. बैंक का सालाना टर्नअोवर लगभग सवा दो करोड़ है. बैंक से महिलाओं के बीच लगभग 70 लाख का कर्ज भी बांटा जा चुका है. आज जब बड़े बैंकों के पैसे वापस नहीं होते, वसूली के लिए नाकों चने चबाने पड़ते हैं, ऐसे में यहां कर्ज की वसूली भी 95 प्रतिशत है.
दूसरी ओर अस्पताल में 25 रुपये में इलाज की सुविधा अौर गरीब को बेहतर इलाज के लिए 7000 रुपये की मदद भी. बैंक के बल पर चास-चंदनक्यारी की महिलाअों ने अपना जीवन-स्तर सुधारा है. पहले जहां वो पति से पैसे मांगती थीं, आज पति उनके भरोसे हैं.
दिनभर गांव की महिलाओं के बीच कंधे से कंधा मिला कर लगी रहनेवालीं लिंडसे को देख ऐसा नहीं लगा कि लंदन से स्नातक अौर जेएनयू से एमफिल करनेवाली किसी विदेशी से मिल रहा हूं. साधारण वेशभूषा अौर बढ़िया हिंदी के साथ-साथ स्थानीय बोल-चाल की भाषा में बात करती लिंडसे ने कहा कि उनके लिए भारत अौर चंदनक्यारी ही फॉरेन है. खुद के बारे में पूछे जाने पर कहती हैं कि जेएनयू में पढ़ाई के दौरान कोलियरी में काम करनेवाली महिला मजदूरों पर शोध के ख्याल से वह धनबाद के धौड़ा कोलियरी आ गयीं. और फिर चंदनक्यारी के चमड़ाबाद. फिर तो चंदनक्यारी की ही हो कर रह गयीं.
यह आत्मसंतोष है, त्याग नहीं : भारत में रहने के निर्णय पर कभी पछतावा होने के सवाल पर वह कहती हैं कि जब वह छोटी थीं, तभी उनके पिता का देहांत हो गया था. उनकी मां ने हमेशा सलाह दी कि मन की करो अौर अच्छा करो. बस इसी मूलमंत्र पर उन्होंने काम किया. उनकी मां अौर बहन चमड़ाबाद आयीं. मां संतुष्ट थीं, पर बहन परेशान हो गयी.
उन्होंने अपने दोनों बेटों कबीर और विवेक को इंग्लैंड नहीं भेजा. एक बेंगलुरु अौर दूसरा दिल्ली में है. कहती हैं कि नौकरी के कारण बेटे शायद चंदनक्यारी में नहीं रह पायें, पर उन्हें यह कहा गया है कि वो यहां के लोगों के लिए हमेशा मददगार बने रहें. हंसते हुए लिंडसे कहती हैं कि चंदनक्यारी में रहने का मेरा निर्णय कोई त्याग की बात नहीं, आत्मसंतोष की बात है. काम में कभी दिक्कत होने की बात पूछने पर वह ना में जवाब देती हैं. कहती हैं- सब मददगार हैं.
पहला स्वयं सहायता समूह : लिंडसे बताती हैं कि जेएनयू में ही कोलकाता के रंजन घोष से उनकी मुलाकात हुई अौर बाद में उनसे शादी. फिर श्री घोष ने चंदनक्यारी कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया. इसी दौरान उनका लगाव इलाके से हुआ अौर 1989 में वह चमड़ाबाद गांव में रहने लगीं. उस दौरान बिजली नहीं थी अौर घर भी मिट्टी का था, पर वहां के लोग अच्छे लगे. वहां पर महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी. अशिक्षा, गरीबी, स्वास्थ, अंधविश्वास सहित तमाम समस्याएं थीं. देखा तो बुरा लगा, क्योंकि इंग्लैंड में यह स्थिति नहीं है.
फिर पति के साथ मिल उन्होंने कॉलेज के विद्यार्थियों के साथ जन चेतना मंच का गठन किया. काफी काम किया. खासकर महिलाओं के लिए. 1994 में चमड़ाबाद में ही पहले स्वयं सहायता समूह का गठन किया. बताती हैं कि धमकी भी मिली. सब कहते थे लूटने आया है, पर आज सब साथ हैं. हंसते हुए कहती हैं कि उस समय सबने मास्टरनी जी कहना शुरू किया, आज भी कहते हैं. महिला बैंक : लिंडसे बताती हैं कि आज चास अौर चंदनक्यारी में 500 महिला मंडल हैं. आठ हजार महिलाएं इसकी सदस्य हैं.
चेतना स्वयं सहायता समूह महिला स्वावलंबी सहकारी समिति लिमिटेड के नाम से निबंधित इस बैंक के आम चुनाव में अध्यक्ष चुनी गयी उथानी देवी पास के ही बोगला गांव की हैं. इसी प्रकार सचिव पूर्णिमा देवी अौर कोषाध्यक्ष उमा देवी भी आसपास की ही हैं. उमा देवी कहती हैं कि यहां की महिलाएं इस बैंक की शेयरहोल्डर भी हैं. बताती हैं कि सिर्फ फील्डवर्क के लिए कुछ पुरुष सदस्य हैं.
किराये के घर से अस्पताल की शुरुआत : लिंडसे बताती हैं कि उस इलाके में स्वास्थ्य-सुविधाएं नहीं के बराबर थीं. खासकर महिलाओं को भारी दिक्कत होती थी. सड़क व वाहन की सुविधा भी सही नहीं थी. ऐसे में उनके मन में यह ख्याल आया कि क्यों न कुछ किया जाये अौर फिर पति की सहायता से 1997-98 में किराये के मकान में महिला स्वास्थ्य केंद्र, चमड़ाबाद की शुरुआत हुई.
आज अस्पताल का अपना भवन है. यहां के भी अधिकतर कर्मी महिलाएं ही हैं. लिंडसे बताती हैं कि अफसोस इस बात का है कि अच्छे डाॅक्टर गांव में आना नहीं चाहते. अब सेवा भाव में कमी आयी है. यहां डॉक्टर से दिखाने के लिए 25 रुपये लगते हैं. सीआइपी के चिकित्सक बिना पैसे का यहां इलाज करते हैं.
यहां मरीजों का खास ख्याल रखा जाता है. अगर कोई मरीज अचानक गंभीर हो जाये अौर उसके पास पैसे नहीं हों, तो अस्पताल की ओर से 7000 रुपये देकर अस्पताल की गाड़ी से नर्स के साथ अच्छे अस्पताल में भेजा जाता है. ठीक होने के बाद बिना किसी सूद के उस पैसे को लौटाना होता है. अगर कोई गरीब नहीं लौटा पाये, तो उसे माफ भी कर दिया जाता है.
बस इतनी-सी चाह है : लिंडसे कहती हैं कि काम के बदले कभी गाली भी मिलती है, पर अधिकतर प्यार मिला है. शुरू में भाषा को लेकर काफी दिक्कत हुई, पर भावना ने शब्दों पर विजय पा ली.
वह सबके साथ जल्द ही हिलमिल गयीं. महिलाओं के स्वास्थ्य व स्थिति को लेकर वह अब भी चिंतित रहती हैं. चाहती हैं कि महिलाओं के संबंध में अौर गंभीरता बरती जाये. कहती हैं कि हम कभी छुट्टी नहीं लेते. काम ही पूजा है, पर एक ही तमन्ना है कि सब अपना-अपना काम करना सीख जायें.
(साथ में बोकारो से दीपक सवाल अौर चंदनक्यारी से डीएन ठाकुर)
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