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– – फोटो: बदलाव की वाहक नहीं बन सकी गांव की सरकार सशक्त नही पंचायतें , बिचौलिया रहे हावी पंचायती राज के पांच साल बेरमो फोटो जेपीजी 29-1 इस खबर से संबंधित तसवीरउदय गिरि, फुसरो नगर 32 वर्षों बाद जब वर्ष 2010 में पंचायती राज का सपना साकार हुआ तो लोगों में विश्वास जगा कि […]

– – फोटो: बदलाव की वाहक नहीं बन सकी गांव की सरकार सशक्त नही पंचायतें , बिचौलिया रहे हावी पंचायती राज के पांच साल बेरमो फोटो जेपीजी 29-1 इस खबर से संबंधित तसवीरउदय गिरि, फुसरो नगर 32 वर्षों बाद जब वर्ष 2010 में पंचायती राज का सपना साकार हुआ तो लोगों में विश्वास जगा कि अब गांवों की सरकार होगी. सत्ता का विकेंद्रीकरण व गांवों का विकास होगा. लेकिन लोगों ने पंचायती राज को लेकर जो सपना देखा था वह पूरा नहीं हुआ. गांव की सरकार गांवों में बदलाव की वाहक नहीं बन सकी. खासकर प्राथमिक शिक्षा, आंगनबाड़ी, जनवितरण प्रणाली की गांवों में आज भी खस्ता हालत है. स्वास्थ्य केंद्रों में दवा, चिकित्सक, नर्स का अभाव है. बीते पांच बरसों में न तो पंचायत प्रतिनिधियों को पूरी तरह अधिकार मिला न ही ग्राम सभाएं सशक्त हुईं. गांवों के विकास का सपना एक सपना ही बनकर रह गया. लोग अपने कामों के लिए आज भी प्रखंडों की दौड़ लगाने को विवश हैं. गांवों की सरकार मुखिया, पंसस, प्रमुख, जिप सदस्य कहते हैं कि वे कई तरह के हक-अधिकार से बीते कार्यकाल में वंचित रह गये. बिना पावर की सरकार जनता की उम्मीदों को कैसे पूरी कर पायेगी. हालांकि 13 वें वित्त आयोग की मिली राशि से पंचायतों में सोलर लाइट, चबूतरे, नाली निर्माण, शौचालय, पीसीसी सहित अन्य कई कार्य हुए हैं. लेकिन राशि अधिक नहीं होने के कारण जनता के अनुरूप विकास कार्य नहीं हो सके. संसाधनों का आज भी नहीं हो सका उपयोग सरकार ने भले ही लाखों रुपये खर्च कर पंचायतों को हाइटेक सुविधाएं प्रदान की हो लेकिन पंचायत भवनों में आज भी ऐसे संसाधनों का उपयोग जनता की सुविधाओं के लिए नहीं हो पा रहा है. अधिकांश पंचायतों में 10-15 लाख रुपये खर्च कर आलीशान पंचायत भवन बनाये गये हैं. जहां पर कंप्यूटर, जेनेरेटर, प्रिंटर, जेरॉक्स, इंटरनेट की सुविधा प्रदान है. मनरेगा मजदूरों से लेकर हर तरह के कार्य ऑनलाइन हो, इसके लिए सारी सुविधाएं मिली हैं. लेकिन, कंप्यूटर ऑपरेटर किसी भी पंचायत में उपलब्ध नहीं होने के कारण इसका उपयोग नहीं हो सका. सारी सामग्री पंचायतों में रखी पड़ी है. मुखिया जी तो मिल जाते पर कर्मचारी नहीं बोकारो जिले के चंद्रपुरा, नावाडीह, बेरमो प्रखंड की अधिकांश पंचायतों की हालत एक जैसी है. पंचायतों में जनता के लिए घंटे-दो घंटे मुखिया जी तो उपलब्ध हो जाते हैं, लेकिन पंचायत सचिव ( पंचायत सेवक) व रोजगार सेवक कभी भी नियमित रूप से नहीं मिलते. जनता पंचायत सेवक व रोजगार सेवक से काम कराने के लिए आज भी प्रखंडों में चक्कर काटती हैं. इससे भी खराब हालत है हल्का कर्मचारी की. ग्रामीणों को जमीन के लगान की रसीद से लेकर एनओसी सहित जाति, आय, आवासीय प्रमाण पत्र के लिए हल्का कर्मचारी के जांच प्रतिवेदन की आवश्यकता पड़ती है. लेकिन किसी भी पंचायत में जनता के लिए हल्का कर्मचारी नहीं बैठते हैं. उनके आवासों या फिर प्रखंड में जाकर उनसे मिलना पड़ता है. ———–एनओसी के अभाव में भी नहीं हो पाता है काम बेरमो. चंद्रपुरा जैसे प्रखंड औद्योगिक क्षेत्र होने के कारण एनओसी के अभाव में विकास कार्य से वंचित रह जाते हैं. इन प्रखंडों में डीवीसी, एसआरयू, सीसीएल की कॉलोनियां सहित अन्य क्षेत्र आते हैं. जहां इन औद्योगिक प्रतिष्ठानों से एनओसी लिये बगैर कोई कार्य नहीं किया जा सकता है. पंचायत के मुखिया से लेकर अन्य जनप्रतिनिधि चक्कर काटते रहते हैं, बावजूद नहीं मिल पाता है. इससे विकास काम बाधित होता रहता है. जिला प्रशासन को भी पंचायत प्रतिनिधि इससे अवगत कराते रहते हैं.

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