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यह सदी रहे, न रहे, आप बचे रहेंगे धनु बाबू

सुनील तिवारी बोकारो : जोहड़ में ठहरे जल सी शांति, तेज बहती लहरों सी गति और ऊंचाई से गिरते झरने सा जोश. यह पंक्तियां स्वत: दिमाग में जीवंत हो उठती हैं, जब उनको पहली नजर में देखना होता है. यह कोई संत नहीं हैं. कोई महात्मा नहीं हैं. कोई समाजसेवी नहीं हैं. यह धनु बाबू […]

सुनील तिवारी
बोकारो : जोहड़ में ठहरे जल सी शांति, तेज बहती लहरों सी गति और ऊंचाई से गिरते झरने सा जोश. यह पंक्तियां स्वत: दिमाग में जीवंत हो उठती हैं, जब उनको पहली नजर में देखना होता है.
यह कोई संत नहीं हैं. कोई महात्मा नहीं हैं. कोई समाजसेवी नहीं हैं. यह धनु बाबू हैं. पूरा नाम-धनंजय ठाकुर. जाति क्या? यह सवाल मन में पैदा होता है और फिर दम तोड़ देता है. उनके चेहरे का तेज और उनके सेवा कार्य के बारे में जो कुछ देखने व सुनने को मिला है, उसके बाद ‘जाति क्या’ जैसे सवाल का मन में पैदा होना ही शर्मसार कर रहा है.
मूलत: बिहार के आरा जिला के वाशिंदे. जीवन के 64 बरसात देख चुके धनु बाबू के घर पहुंचना हुआ है, तो मोबाइल की घड़ी में दोपहर के 2.37 बज रहे हैं. चाय-नाश्ता के बाद बात शुरू होती है, तो भोजपुरी में बोलते हैं-‘‘रउआ जाैन जाने चाहअ तानी, हम ऊ बतायेम, बाकि ई सब छापेम मत. ई सब हम नाम कमाये खातिर थोड़े करिले. ई त सूक्ष्म रूप में ईश्वर के आदेश बा, ओही के हम पालन करअ तानीं.’’
क्या किया
ऊपर की पंक्तियों से गुजरने के बाद हर गंभीर पाठक के मन में यह सवाल जगह बना चुका होगा कि धनु बाबू ने आखिर क्या किया है? जो जान लें कि धनु बाबू अब तक 176 गरीब बच्चों का स्कूलों में दाखिला करा चुके हैं. जी नहीं, सरकारी स्कूलों में नहीं, जहां कक्षा एक से आठ तक मुफ्त में दाखिला होता है.
मुफ्त में स्कूल ड्रेस व किताबें मिलती हैं. दोपहर का भोजन मिलता है. साइकिल मिलती है. सब कुछ होता है. नहीं होते हैं, तो सिर्फ शिक्षक. पढ़ाई की व्यवस्था भगवान भरोसे होती है. धनु बाबू ने अपनी खर्च पर बीते तीन वर्षो में 176 गरीब बच्चों का दाखिला विभिन्न प्राइवेट स्कूलों में कराया है. उन प्राइवेट स्कूलों में जहां एडमिशन चाजर्, री-एडमिशन चाजर्, प्रति माह फीस, स्कूल ड्रेस से लेकर किताब-कॉपी तक के पैसे लगते हैं.
इन 176 बच्चों को पढ़ाने पर वर्तमान में सालाना खर्च हो रहे हैं-4,25,875 रुपये. इसके अवाला तीन गरीब बच्चों की उच्च शिक्षा पर सालाना खर्च करते हैं-8,75,000 रुपये. पिछले तीन वर्षो से 13 लाख से अधिक की यह राशि धनु बाबू ऐसे बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर रहे हैं, जो बच्चे उनके नहीं. इन बच्चों में उनके यहां काम करनेवाली नौकरानी से लेकर उनके मुहल्ले में चाय-रासन की दुकानों में काम करनेवाले बच्चे तक शामिल हैं.
कैसे जुटाते हैं पैसे
धनु बाबू, एक पब्लिक सेक्टर में अच्छे पोस्ट पर रहे. ईमानदारी से प्रतिमाह वेतन के पैसे से घर चलाया. एक बेटी थी. खूब पढ़ाया. एमबीए करने के बाद बेटी ने नौकरी की. फिर बेटी की धूमधाम से शादी की. बेटी व दमाद बंगलुरू में जॉब करते हैं. नौकरी करते हुए धनु बाबू ने तीन बेड रूम का फ्लैट खरीद लिया था.
मार्च, 2011 में नौकरी से रिटायर होने के बाद धनु बाबू को करीब पीएफ-ग्रेच्युटी के 32 लाख रुपये मिले. सारी जिम्मेदारियां पूरी. बेटी-दामाद खुशहाल. खुद आर्थिक तौर पर संपन्न. पैसों का क्या काम? कोई इच्छा व महत्वाकांक्षा नहीं. फिर एक दिन धनु बाबू ने देखा कि घर की नौकरानी के साथ उसकी चार साल की बच्ची आयी हुई है. धनु बाबू को याद आया कि जब यह बच्ची हुई थी, तब से नौकरानी उसे लेकर आती है. देखते-देखते वह बच्ची चार साल की हो गयी.
बच्ची की पढ़ाई को लेकर पूछा, तो नौकरानी बोली कि दोपहर में भोजन के वक्त बच्ची को स्कूल भेजती है. धनु बाबू को लगा कि ऐसी पढ़ाई से तो बेहतर है कि अनपढ़ रहा जाये. और फिर धनु बाबू ने तय किया कि नौकरानी की बच्ची को पढ़ायेंगे. पत्नी से बात की, तो उन्होंने भी पूरा साथ दिया. नौकरानी की दो बेटे भी सरकारी स्कूल में पढ़ते थे. धनु बाबू व उनकी पत्नी ने दोनों बेटों व बेटी को खुद पढ़ाया, फिर प्राइवेट स्कूल में दाखिला कराया.
नौकरानी की बेटी आज क्लास थ्री और दोनों बेटे क्लास फाइव में पढ़ रहे हैं. एक बार जमशेदपुर से लौटते वक्त पुरुलिया में एक होटल में काम करते चार बच्चों पर धनु बाबू की नजर पड़ी, तो फिर वहीं रूक गये. सप्ताह भर रहे. चारों बच्चों का दाखिला पुरुलिया के सरकारी स्कूल में कराया. चारों बच्चों के साल भर का फीस जमा किया. कपड़ा-किताब की व्यवस्था की. फिर लौटे.
खर्च किये पीएफ-ग्रेच्युटी के 32 लाख खर्च
नौकरानी के दोनों बेटों व एक बेटी से शुरू सफर आज 176 की संख्या में पहुंच चुका है. अब तक पीएफ-ग्रेच्युटी के 32 लाख खर्च कर चुके हैं. हर महीने 9,756 रुपये पेंशन मिलते हैं. गांव में अच्छी खेती है. रासन आते हैं.
खर्च नियंत्रित है. पति-पत्नी पूरे संतोष से जीवन जी रहे हैं. साल में बच्चों की पढ़ाई का खर्च बेटी-दामाद और मित्रों से चंदा लेकर चला रहे हैं. धुन बाबू कहते हैं-‘‘ईश्वर की प्रेरणा और पत्नी के सहयोग से ही यह कर पाया.
और कुछ नहीं बस यही तमन्ना है कि सभी 176 बच्चों को प्लस-टू तक की शिक्षा दिला दूं.’’ इसके एमबीए और आइआइटी कर रहे तीन स्टूडेंट्स का भी खर्च धनु बाबू उठा रहे हैं. 176 बच्चों में एक-एक बच्च एक-एक कहानी है. लेकिन धनु बाबू की कड़ी मनाही के कारण हम बच्चों की पहचान नहीं प्रकट कर रहे.
धनु बाबू से मिलकर लौटते वक्त लग रहा है कि तमाम विकट परिस्थितियों में समाज यूं नहीं चल रहा. मीडिया में नाम की चाह से दूर परदे के पीछे मौजूद धनु बाबू जैसे नायक कभी मर नहीं सकते. यह सदी रहे न रहे, बचे रहेंगे धनु बाबू.
(धनु बाबू से क्षमा याचना के साथ. क्योंकि उन्होंने यह सब नहीं छापने का कड़ा आग्रह किया था.)

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