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मातृभाषा से जुड़ेंगे सीबीएसइ के विद्यार्थी

बोकारो: कॅरियरिस्ट होती नयी पीढ़ी के लिए मातृभाषा का महत्व घटता जा रहा है. मातृभाषा की इस स्थिति से ही संस्कार और परंपरा बहुत पीछे छूटते जा रहे हैं. संस्कार और परंपरा को उसकी जगह दिलाने के लिए ही सीबीएसइ नयी पीढ़ी को अभियान का हिस्सा बनाना चाहता है. इसी आलोक में सीबीएसइ 21 फरवरी […]

बोकारो: कॅरियरिस्ट होती नयी पीढ़ी के लिए मातृभाषा का महत्व घटता जा रहा है. मातृभाषा की इस स्थिति से ही संस्कार और परंपरा बहुत पीछे छूटते जा रहे हैं. संस्कार और परंपरा को उसकी जगह दिलाने के लिए ही सीबीएसइ नयी पीढ़ी को अभियान का हिस्सा बनाना चाहता है. इसी आलोक में सीबीएसइ 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस के रूप में मनायेगा. स्कूली स्तर से ही बच्चों में मातृभाषा से जोड़ने व इसके प्रति लगाव पैदा करने के लिए सीबीएसइ यह पहल कर रहा है.
आयोजनों का निर्देश : सीबीएसइ ने सभी संबद्धता प्राप्त स्कूलों को इस दिन विविध आयोजन करने का निर्देश दिया है. स्कूलों को मातृभाषा दिवस के आयोजनों की विस्तृत रिपोर्ट भी अपने-अपने क्षेत्रीय कार्यालय को दो मार्च तक भेजनी होगी, ताकि सीबीएसइ स्कूलों द्वारा किये गये प्रयासों की एक समग्र इ-बुक तैयार की जा सके. स्कूलों को मातृभाषा में सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता, शुद्ध भाषा संवाद प्रतियोगिता, अनुवाद, भाषण प्रतियोगिता, पोस्टर व चार्ट एग्जिबिशन और अलग-अलग मातृभाषाओं के आयोजन करने को कहा गया है.
प्रेरक सूत्र : इस दिवस के आयोजन का मूल प्रेरक 1952 का पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) का मातृभाषा आंदोलन है. भारत विभाजन के साथ पाकिस्तान ने उर्दू को अपनी राष्ट्रभाषा घोषित कर दी थी, बांग्लाभाषी बहुल पूर्वी पाकिस्तान को यह कतई मंजूर नहीं था. इसके प्रतिरोध में पाकिस्तान इस तत्कालीन हिस्से में मातृभाषा आंदोलन ने उग्र रूप ले लिया. आंदोलन के दमन के लिए गोलियां चलीं, जिसमें कई छात्र शहीद हो गयी. तब से बांग्लादेश इस दिन को मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने लगा. इस शिद्दत ने साबित कर दिया है कि भाषा का धर्म से कोई सरोकार नहीं.

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