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करवट लेती बोकारो की पॉलिटिक्स

बोकारो: बोकारो और चंदनकियारी विधानसभा क्षेत्र के नेता सरकार बनने की खुशी से ज्यादा अगली लड़ाई की कवायद में जुटे हुए हैं. इस बार हर पार्टी में फेरबदल दिख रहा है. कई तरह के समीकरण अभी से उभर के सामने आ रहे हैं. बोकारो के सबसे बड़े राजनीति घराने (समरेश सिंह) में भी इस बार […]

बोकारो: बोकारो और चंदनकियारी विधानसभा क्षेत्र के नेता सरकार बनने की खुशी से ज्यादा अगली लड़ाई की कवायद में जुटे हुए हैं. इस बार हर पार्टी में फेरबदल दिख रहा है. कई तरह के समीकरण अभी से उभर के सामने आ रहे हैं. बोकारो के सबसे बड़े राजनीति घराने (समरेश सिंह) में भी इस बार के लोकसभा और विधानसभा को लेकर बड़े परिवर्तन के आसार हैं. उम्मीदवारों ने तो कमर कस ली है पर पार्टी को लेकर मतभेद है.

कौन किस पार्टी से उम्मीदवार होगा, अभी कहना सौ फीसदी सही नहीं होगा. यहां तक कि समरेश सिंह या राजनीति मैदान में अपनी पहली पारी खेलने वाले उनके पुत्र संग्राम सिंह उर्फ सोना किस पार्टी से इस बार चुनाव लड़ेंगे, तय नहीं है. इसके अलावा जदयू से अलग हो चुकी भाजपा भी अपने से मोरचा लेने को बेताब है.

बस शीर्ष नेताओं की हरी झंडी का इंतजार है. आजसू के वर्तमान चंदनकियारी विधायक उमाकांत रजक विधानसभा से ज्यादा लोकसभा चुनाव के लिए लॉबिंग कर रहे हैं. ऐसे में वहां क्या होगा, कहना मुश्किल है. आजसू का बोकारो में भी कोई कद्दावर नेता ऐसा ऊभर कर नहीं आ रहा जिसे पूरी तरह से दावेदार कहा जाये. सभी बड़ी पार्टियों में झामुमो ही एक ऐसी पार्टी है, जहां पहले से सारा कुछ तय नजर आ रहा है. अब तक के हालात देख कर यही लगता है कि पिछली बार हारे हुए उम्मीदवार पर ही पार्टी दांव खेलने वाली है.

कांग्रेस
झामुमो से गंठबंधन के बाद पहले इस बात की लड़ाई होगी कि यहां उम्मीदवार कांग्रेस का होगा या झामुमो का. पिछले तीन विधानसभा चुनावों से सिर्फ एक बार ही कांग्रेस ने बोकारो विधानसभा क्षेत्र में बाजी मारी है. यदि कांग्रेस का उम्मीदवार हुआ तो जिस तरीके से बोकारो जिलाध्यक्ष बनने और बनाने में पूर्व विधायक इसराइल अंसारी और पूर्व सांसद ददई दुबे की चली है, टिकट उनके ही खाते में जाना तय माना जा रहा है. पर ऐसे कई और भी हैं जो दिल्ली से रांची तक की लॉबिंग के लिए एड़ी -चोटी एक किये हुए हैं और आगे भी करने की चाह है. पंचायत चुनाव में जीते हुए कई प्रत्याशी अपनी जीत का दावा करते हुए टिकट लेने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ने की फिराक में है.

भाजपा
गंठबंधन के तहत चार बार जदयू की हार के बाद अब भाजपा बोकारो में पहली बार अपनी ताकत झोंकने की तैयारी में है. जिले में पड़ने वाली लोकसभा की दोनों सीटों पर काबिज भाजपा के सांसदों का उम्मीदवार पर निर्णय लेने में खास भूमिका रहेगी. हालांकि बोकारो की ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्र को देखा जाये तो जीत सुनिश्चित करने वाला कोई उम्मीदवार अब तक खुल कर सामने नहीं आया है. उम्मीदवारी का दावेदारी तो हो रही है पर तय कुछ नहीं है. यह भी सही है कि भाजपा में उम्मीदवारी के लिए आधा दर्जन से ज्यादा लोग लॉबिंग में लगे हैं, जिसमें कुछ प्रशासनिक स्तर के अधिकारी भी हैं.

आजसू
बोकारो से ज्यादा चंदनकियारी में आजसू की गतिविधि देखी जा रही है. चंदनकियारी से जीते उमाकांत रजक इस बार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे या नहीं, तय नहीं. वहीं इस जगह को भरता कोई ऐसा नेता नहीं देखा जा रहा है जो जीत का दावा करे. बोकारो में पार्टी के इक्का-दुक्का कार्यक्रमों में ही कुछ भीड़ जुट पा रही है. पार्टी में उम्मीदवारी को लेकर आपसी रंजिश भी जगजाहिर है.

निर्दलीय
बड़ी पार्टी में जहां अभी से दावेदारी के लिए जहां कमर कस रही हैं, वहीं निर्दलीय भी कम जोर-आजमाइश नहीं कर रहे हैं. जेवीएम में मौका मिला तो राजेंद्र महतो पार्टी को लीड करने की हरसंभव कोशिश में हैं. वहीं किसी बड़ी पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर अपना दम लगाने के लिए कई नेता तैयार हैं. हालांकि इससे पहले किसी बड़ी पार्टी से टिकट लेने के लिए हरसंभव कोशिश की जा रही है.

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