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गांव न शहर, नाम है बारी-को-ऑपरेटिव

बोकारो: चलन शहर वाला है. पर मौजूदगी गांव भर भी नहीं. करीब तीन हजार परिवार वाले इस परिवेश को क्या कहा जाये, गांव या शहर, बड़ा सवाल है? यूं तो नाम के लिए बारी-को-ऑपरेटिव में हर सुविधा है, पर यह इलाका न तो चास नगर परिषद में शामिल है, न ही बीएसएल के सीएसआर कार्यक्रम […]

बोकारो: चलन शहर वाला है. पर मौजूदगी गांव भर भी नहीं. करीब तीन हजार परिवार वाले इस परिवेश को क्या कहा जाये, गांव या शहर, बड़ा सवाल है? यूं तो नाम के लिए बारी-को-ऑपरेटिव में हर सुविधा है, पर यह इलाका न तो चास नगर परिषद में शामिल है, न ही बीएसएल के सीएसआर कार्यक्रम में और न ही पंचायत में.

किसी भी तरीके से यह इलाका प्रशासन के अधीन नहीं है. यहां सरकारी सुविधा लेने के लिए रोज ही लोगों के चप्पल घिस रहे हैं.

पर अभी तक इस इलाके का भला करने के लिए कोई पहल नहीं की गयी है. बिजली, पानी और सड़क जैसी कई परेशानियों से जूझ रहे यहां के लोगों के लिए उनके स्तर तक का कोई जनप्रतिनिधि नहीं मिलता और छोटी समस्याओं पर विधायक और सांसद ध्यान नहीं देते.

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