अनुप्रिया अनंत
फिल्म रिव्यू :
कलाकार : सोनम कपूर, धनुष, स्वरा भास्कर,
निर्देशक : आनंद एल राय
लेखक : हिमांशु शर्मा
रेटिंग : 4.5 स्टार
अगर आप प्यार को इश्क, प्यार को खुदा नहीं मानते तो माफ कीजिएगा रांझणा आपके लिए नहीं. प्यार में पागल हुए प्रेमी को अगर आप सिरफिरा समझते हैं. जाहिर गंवार समझते हैं तो माफ कीजिएगा ये फिल्म आपके लिए भी नहीं. जिन्हें प्यार पर यकीन है और जो सिर्फ एक बार प्यार को अपनी जिंदगी मानते हैं. इबादत मानते हैं. यह फिल्म उनके लिए है. वर्तमान में शायद आपको रांझणा प्रासंगिक न लगे. चूंकिइन दिनों प्यार 2 मिनट की नूडल्स की तरह ही पनपता है और फिर खो जाता है.
लेकिन रांझणा फास्ट फूड वाला प्यार नहीं है. बल्कि वह बनारस की ही मिठाईयों की तरह या यूं कहें वहां की मल्लयों की तरह है. जिसे रात भर ओस में रख कर पूरी शिद्दत से मल्लयो के रूप में तैयार किया जाता है. उसकी वही मिठास रांझणा में छुपी है. बनारस में जितने घाट हैं. और जितना पानी है. शायद रांझणा के कुंदन का प्यार भी उस घाट के पानी की तरह ही है. जो गहरा है और जो कभी खत्म नहीं हो सकता.
रांझणा हाल के दौर में बनी यादगार प्रेम कहानियों में से एक फिल्म होगी. रांझणा दरअसल, एक प्रेम कहानी नहीं है. बल्कि प्रेम की कहानी है. एक ऐसे प्रेमी की कहानी जो अपनी महबूबा से एक नजर में प्यार कर बैठता है. जिसे लोग इनफैच्सुएशन कहते हैं. जिन्हें लोग एक नजर का प्यार करते हैं. उसके लिए वही एक नजर का प्यार इबादत बन जाती है. फिल्म के एक दृश्य में छोटा सा कुंदन चंदा मांगने जोया के घर आ पहुंचा है. जहां उसकी नजर नमाज पढ़ती एक लड़की पर जाती है.
उसके मुंह से यही वाक्य निकलते हैं कि नमाज में वो थी. लेकिन दुआ मेरी कुबूल हो रही थी. दरअसल, वह प्यार वह इश्क ही उसके लिए जिंदगी की दुआ बन जाता है. लेकिन कहां हर किसी का प्यार पूरा होता है. प्यार का पहला अक्षर ही अधूरा होता है. और फिर यह कुंदन था तो रांझणा ही. हिंदी फिल्मों में कई रांझणा दिखाये गये. लेकिन बनारस की गलियों का यह रांझणा ऐसे प्रेम में था, जिसमें सिर्फ एकतरफा प्यार था. वही एकतरफा प्यार उसके लिए जूनून बन जाता है. बचपन का प्यार जवानी का रूप ले लेता है. लेकिन जवानी के साथ साथ किसी के लिए प्यार के मायने बदल जाते हैं. जूनून कब बगावत, फिर बदले में बदल जाती है. पता नहीं चलता. इन सबके बीच कुछ स्थिर है तो वह है रांझणा का प्यार जोया के लिए.
जोया के प्यार में वह एक गुनहगार बन जाता है. एक ऐसा गुनहगार जो उसने नहीं किया है. लेकिन फिर भी वह दोषी है. वह पश्याताप करना चाहता है. लेकिन इस पश्याताप में भी उसे जोया से वही इश्क, वही मोहब्बत है. फिल्म रांझणा में आनंद एल राय ने एक यादगार प्रेम कहानी दिखाने की कोशिश की है. वे कई रूप से बधाई के पात्र है. उन्होंने सबसे पहले जो फिल्मों के किरदार चुने है. वह आमतौर पर दिखाई गयी फिल्म की कास्टिंग से बिल्कुल अलग है. धनुष जो कि तमिल फिल्मों के अभिनेता हैं. उन्हें बनारस के लड़के के रूप में दर्शाना.फिल्म के सह कलाकारों में भी उनका चुनाव बेहद अलग है. धनुष बनारस का छोरा कैसे? यह सवाल कई लोगों के जेहन में उठे हैं. लेकिन फिल्म देखने के बाद आपको उन सारे सवालों के जवाब मिल जायेंगे.
रांझणा आनंद एल राय के साथ साथ लेखक हिमांशु शर्मा की भी जीत है. फिल्म के संवाद, परिवेश, वन लाइनर सबकुछ सटीक है और अदभुत है. फिल्म के दृश्यों का चयन. उनका प्रस्तुतिकरण अदभुत है. धनुष में एक मासूम प्रेमी, फिर नफरत करनेवाला प्रेमी, फिर पश्याताप करनेवाले प्रेमी और एक अदभुत अभिनेता है. बस धनुष टाइपकास्ट न हो. वरना हिंदी सिनेमा को उनके रूप में अदभुत कलाकार मिला है. वे कही महसूस नहीं होने देते कि वे साउथ से हैं.
उन्होंने अपनी हिंदी पर खास मेहनत की है. धनुष के रूप में कुंदन हर छोटे शहर के प्रेमी आशिक की याद दिलायेंगी. सोनम कपूर ने अब तक अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की है. आनंद राय ने प्रेम कहानी के साथ साथ राजनैतिक व्यवस्था व सामाजिक दृष्टिकोण को भी दर्शाने की कोशिश की है और यह मिश्रण आपको चौंकाता नहीं है. फिल्म का अंत वर्तमान समय में शायद कुछ दर्शक न पचा पायें. लेकिन आनंद एल राय ने वही दिखाया है. जो वह दिखाना चाहते हैं और उन्होंने अपनी ईमानदार कोशिश की है.
पाश्याताप के लिए किसी गंगा नहाने की जरूरत नहीं. इस बात को बेहद छोटे लेकिन सशक्त दृश्य में दिखाने की कोशिश की है निर्देशक ने. स्वरा भास्कर व कुंदन के दोस्त के किरदार मुरारी को भी फिल्म की सफलता का श्रेय जाना चाहिए.फिल्म के संवाद बनारसी हैं. तेवर अंदाज परिवेश बनारसी है. यही वजह है कि आज फिल्म से पूरी तरह खुद को जुड़ा पायेंगे. वाकई आनंद एल राय और हिमांशु शर्मा की जोड़ी की वजह से बनारस का यह लौंडा जीत जायेगा.