बोकारो: प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक का समय श्रद्ध कर्म के रूप में जाना जाता है. शास्त्रों में पितरों का ऋ ण उतारने के लिए महालया का विधान है जो भाद्र शुक्ल पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन (कुवार) कृष्ण अमावस्या तक रहता है. मान्यता है कि इन 16 दिनों में तर्पण और विशेष तिथियों पर श्रद्ध से पितर प्रसन्न होते हैं. पितृपक्ष में पूर्वजों के लिए श्रद्धा पूर्वक किया गया दान तर्पण रूप में किया जाता है. इस बार महालया का आठ सितंबर को व समाप्ति 23 सितंबर को पितृ विसर्जन से हो रही है.
श्रद्धा के साथ शुभ संकल्प : सूर्य के कन्याराशि में आने पर पितर परलोक से उतर कर कुछ समय के लिए पृथ्वी पर अपने पुत्र-पौत्रों के यहां आते हैं.
श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है उसे ‘श्रद्ध’ कहते हैं. इसका वर्णन ग्रंथों व पुराणों में मिलता है. श्रद्ध का पितरों के साथ बहुत ही घनिष्ठ संबंध है. पितरों को आहार व अपनी श्रद्धा पहुंचाने का एकमात्र साधन श्रद्ध है. मृतक के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण, पिण्ड व दान ही श्रद्ध कहा जाता है. जिस मृत व्यक्ति के एक वर्ष तक के सभी और्ध्व दैहिक क्रिया-कर्म संपन्न हो जाते हैं, उसी को पितर कहा जाता है.
विभिन्न रूपों में मिला है अन्न : जिन व्यक्तियों का श्रद्ध मनाया जाता है, शास्त्रोक्त विधि से उनके नाम व गोत्र का उच्चारण करके मंत्रों द्वारा समर्पित अन्नादि उन्हें विभिन्न रूपों में प्राप्त होता है. यदि पितर गंधर्व लोक में है तो उन्हें भोजन की प्राप्ति भोग्य रूप में होती है. पशु योनि में है तो तृण रूप में, सर्प योनि में होने पर वायु रूप में, यक्ष रूप में होने पर पेय रूप में, दानव योनि में होने पर मांस रूप में, प्रेत योनि में होने पर रक्त रूप में व मनुष्य योनि होने पर अन्न के रूप में भोजन की प्राप्ति होती है.
सुख-समृद्धि का आशीर्वाद : तीन पूर्वज पिता, दादा व परदादा को तीन देवताओं के समान माना जाता है. पिता को वसु के समान माना जाता है. रु द्र देवता को दादा के समान माना जाता है. आदित्य देवता को परदादा के समान माना जाता है. श्रद्ध के समय यही अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं. शास्त्रों के अनुसार वह श्रद्ध के दिन वंशज के शरीर में प्रवेश करते हैं. नियमानुसार उचित तरीके से कराये गये श्रद्ध से तृप्त होकर वह अपने वंशजों को सपरिवार सुख व समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.
तिथि अनुसार विशेष श्रद्ध : पितृपक्ष में प्रतिदिन पितरों का तर्पण व तिथि के अनुसार विशेष श्रद्ध करना चाहिए. इसमें विशेषतया पंचमी का श्रद्ध (13 सितंबर) व पितृपक्ष में भरणी का श्रद्ध करने से विशेष पुण्य मिलता है. नवमी अर्थात मातृनवमी का श्रद्ध सौभाग्यवती स्त्रियों का होता है. द्वादशी का श्रद्ध संन्यासी यति व वैष्णवों के निमित्त किया जाता है. शस्त्र आदि से मृत व्यक्तियों का श्रद्ध चतुर्दशी को करना चाहिए. सर्वपैत्री यानी अज्ञात तिथि वालों का श्रद्ध पितृ विसर्जन पर 23 सितंबर को किया जायेगा.