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भाजपा का गढ़ बना बिरंची नारायण का रक्षा कवच, अंत तक रहा सस्पेंस

महागठबंधन प्रत्याशी ने भी दी जबरदस्त टक्कर बोकारो : बोकारो विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी बिरंची नारायण की जीत हुई. बोकारो विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक नजरिया से भाजपा का गढ़ माना जाता है. कहीं न कहीं इसी कारण से भाजपा प्रत्याशी की जीत हुई. शुरू के 20 राउंड में पिछड़ने के बाद जिस […]

महागठबंधन प्रत्याशी ने भी दी जबरदस्त टक्कर

बोकारो : बोकारो विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी बिरंची नारायण की जीत हुई. बोकारो विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक नजरिया से भाजपा का गढ़ माना जाता है. कहीं न कहीं इसी कारण से भाजपा प्रत्याशी की जीत हुई. शुरू के 20 राउंड में पिछड़ने के बाद जिस तरह से वापसी हुई, यह भाजपा के गढ़ का ही प्रतीक माना जायेगा. भाजपा प्रत्याशी बदलने की मांग फिर महागठबंधन की मजबूती के बाद लग रहा था कि भाजपा का किला ध्वस्त हो जायेगा. लेकिन, अंत में भाजपा की जीत हुई. श्री नारायण ने 13236 वोट से जीत दर्ज की.
विकास कार्य पर दिखा भरोसा : काउंटिंग में शुरुआत से महागठबंधन की प्रत्याशी श्वेता सिंह आगे निकल रहीं थी, लेकिन अंत में भाजपा प्रत्याशी बिरंची नारायण को जीत मिली. काउंटिंग के सेक्टर क्षेत्र में पहुंचते ही फासला कम हुआ. इससे स्पष्ट हुआ कि शहरी क्षेत्र में विकास कार्य को सराहा गया. वहीं अंत में ग्रामीण क्षेत्र में भी भाजपा को निर्णायक बढ़त मिली. ग्रामीण क्षेत्र में विभिन्न योजना के लाभार्थी ने भाजपा के पक्ष में गोलबंदी दिखायी. इसका असर परिणाम के रूप में दिखा.
जातीय गोलबंदी को तोड़ने में कामयाब : कांग्रेस की ओर से श्वेता सिंह को टिकट मिलने के बाद जातीय गोलबंदी शुरू हो गयी थी. इसके जवाब में भाजपा की ओर महाराजगंज के सांसद जर्नादन सिंह सिग्रिवाल व चतरा सांसद सुनील सिंह को उतारा. वहीं दिनेश लाल निरहुआ की सभा से एक वर्ग को साधने में कामयाबी मिली. बैकुंठपुर (बिहार) के विधायक सह बिहार प्रदेश उपाध्यक्ष मिथिलेश तिवारी ने भी अपने वर्ग को साधा. मुस्लिम वोटर में हुई एमआइएम प्रत्याशी की सेंधमारी भी कारगर साबित हुई.
अंत भला तो सब भला : इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है कि भाजपा में भीतरघात हुई. लेकिन, सधी राजनीति के कारण भीतरघात काम नहीं कर सका. आजसू प्रत्याशी राजेंद्र महतो गांव में सेंधमारी करने में कामयाब नहीं हो पाये. वहीं जदयू व झाविमो भी कुछ खास नहीं कर पायी. राजनीतिक पंडित उम्मीद लगा रहे थे कि आजसू व अन्य दल वोट बंटवारा करेंगे. लेकिन, अंतिम तक लड़ाई भाजपा व कांग्रेस के बीच ही होती रही. इसका फायदा भाजपा को मिला.

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