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मर्ज के बावजूद बीएंडके कोलियरी की हालत खराब
राकेश वर्मा, बेरमो : सीसीएल बीएंडके प्रक्षेत्र अंर्तगत सौ साल पुरानी बोकारो व करगली कोलियरी अपनी ऐतिहासिक पहचान खोती जा रही है. कोलियरियों के पुनर्गठन के नाम पर दोनों कोलियरी (बोकारो व करगली ) को दो साल पहले मर्ज कर दिया गया. उक्त दोनों कोलियरी बीएंडके एरिया की सबसे पुरानी कोलियरी है. रेलवे, खानगी मालिकों […]
राकेश वर्मा, बेरमो :
सीसीएल बीएंडके प्रक्षेत्र अंर्तगत सौ साल पुरानी बोकारो व करगली कोलियरी अपनी ऐतिहासिक पहचान खोती जा रही है. कोलियरियों के पुनर्गठन के नाम पर दोनों कोलियरी (बोकारो व करगली ) को दो साल पहले मर्ज कर दिया गया. उक्त दोनों कोलियरी बीएंडके एरिया की सबसे पुरानी कोलियरी है.
रेलवे, खानगी मालिकों व एनसीडीसी के समय से यह कोलियरी चल रही है. एक समय सबसे ज्यादा मैन पावर, बेहतर उत्पादन व एक से बढकर एक कोल इंडिया के अधिकारियों के उत्कृष्ट कार्यो के लिए उक्त दोनो कोलियरियां जानी जाती थी.
लेकिन प्रोपर्टी खत्म होने और लगातार घाटे में चलने के कारण सीसीएल मुख्यालय ने दोनों को मर्ज करने का निर्णय लिया था. इसके तहत कगरली को बगल के कारो परियोजना तथा बोकारो कोलियरी को बगल के एकेके परियोजना के साथ मर्ज कर दिया गया. इसका नामकरण ग्रुप ऑफ केएमपी व ग्रुप ऑफ कारो के नाम से किया गया.
मर्ज करने के मुद्दे पर बीएंडके एरिया के तमाम एसीसी सदस्यों (राकोमयू व जमसं को छोड़कर) राकोमसं, बीएमएस, यूसीडब्लूयू ने प्रबंधन के प्रस्ताव का विरोध किया था. उनका कहना था कि मर्ज करने से दोनों कोलियरी की अस्तित्व समाप्त हो जायेगी. आज यही बात दोनों कोलियरियों के लिए सही चिरतार्थ हो रही है.
पिछले दो साल से जहां करगली कोलियरी से एक छटांक भी कोयला उत्पादन में प्रबंधन को सफलता नहीं मिली. वहीं बोकारो कोलियरी में भी उत्पादन-उत्पादकता की स्थिति चरमरायी हुई है. दोनों कोलियरियां आज भी शिफ्टिंग समस्या से जूझ रही है.
अब सवाल उठता है कि जब दोनों कोलियरी को मर्ज करने के बाद विस्तारीकरण की योजना थी तो प्रबंधन इसमें क्यों विफल हुआ. ज्ञात हो कि इससे पूर्व भी सीसीएल कथारा एरिया के गोविंदपुर व स्वांग, ढोरी एरिया के कल्याणी और तारमी को मर्ज कर नया एसडीओसीएम तथा ढोरी, अमलो व बीएसआई को मर्ज कर एएओडीसीएम नाम से नया प्रोजेक्ट बनाया गया.
बदत्तर स्थिति में बोकारो कोलियरी
कभी सालाना 15-20 लाख टन तक कोयले का उत्पादन करने वाली बोकारो कोलियरी का सालाना उत्पादन 80-90 हजार टन के आसपास रह गया है. वित्तीय वर्ष 2017-18 में इस परियोजना से एक लाख टन कोयले का उत्पादन किया गया.
पिछले एक दशक से यह कोलियरी करोड़ों के घाटे में चल रही है. फिलहाल चालू वित्तीय वर्ष के अप्रैल से अब तक इस कोलियरी से मात्र 7-8 हजार टन ही कोयले का उत्पादन हो पाया है. जबकि इस वर्ष का उत्पादन लक्ष्य एक लाख टन निर्धारित है. यह कोलियरी कई वर्षों से शिफ्टिंग समस्या झेल रही है.
एक यूनिट मशीन, अधिकतर बीडी
बोकारो कोलियरी में फिलहाल एक यूनिट मशीन है. इसमें अधिकतर ब्रेक डाउन है. यहां दो शॉवेल (एक बड़ा व एक छोटा), एक ड्रिल, तीन डंपर, दो डोजर, एक छोटा ड्रिल मशीन है.
एक शॉवेल मशीन आइडल पड़ा हुआ है वहीं ड्रिल मशीन, लोडर, एक डोजर ब्रेकडाउन है. डंपर छह है, जिसमें चार रनिंग है. डंपर ऑपरेटरों की संख्या 25-26 के अलावा सात शॉवेल ऑपरेटर, 8-9 ड्रिल ऑपरेटर, पांच डोजर ऑपरेटर है.
उत्पादन की दयनीय स्थिति होने के कारण कर्मियों के पास काम नहीं है. फिलहाल यहां ओबी रिमूवल का काम चल रहा है. बोकारो कोलियरी में कर्मियों की संख्या चार से साढ़े चार सौ है. इनके वेतन, फ्यूल, बिजली तथा अन्य मद में प्रतिमाह कंपनी पर तीन से चार करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है. यानी सालाना 40 करोड़ से ज्यादा.
एक नजर करगली कोलियरी की स्थिति पर : करगली कोलियरी को इस वित्तीय वर्ष में कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया गया है. प्रबंधन की मंशा जनवरी से यहां हर हाल में ओबी रिमूवल का काम शुरू करना है. अगले वित्तीय वर्ष से इस कोलियरी से कोल प्रोडक्शन का लक्ष्य है.
यहां भी मैन पावर पांच सौ से ज्यादा है. इनके वेतन सहित बिजली, पानी व अन्य मद में कंपनी का खर्च प्रतिमाह करोड़ों में है. यह कोलियरी भी कई वर्षों से शिफ्टिंग समस्या झेल रही है. यहां फिलहाल शॉवेल व पीसी एक-एक, तीन डंपर, ड्रील व डोजर मशीन एक-एक है. जबकि एक पेलोडर बीडी है.
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