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विडंबना. देवघर में खिलाड़ियों को नहीं मिल रही जरूरी सुविधाएं, खिलाड़ी कंकड़ पर तराश रहे अपना हुनर

देवघर : एशियन गेम्स में भारत के खिलाड़ियों ने अबतक 49 मेडल जीता है. यह प्रदर्शन और भी बेहतर हो सकता है. अपेक्षाकृत प्रदर्शन नहीं करने के पीछे का एक कारण बुनियादी स्तर पर खिलाड़ियों को आवश्यक सुविधा नहीं मिलना भी है. देवघर में भी कमोबेश यही स्थिति है. शहर में दरअसल आउटडोर गेम एथलेटिक्स, […]

देवघर : एशियन गेम्स में भारत के खिलाड़ियों ने अबतक 49 मेडल जीता है. यह प्रदर्शन और भी बेहतर हो सकता है. अपेक्षाकृत प्रदर्शन नहीं करने के पीछे का एक कारण बुनियादी स्तर पर खिलाड़ियों को आवश्यक सुविधा नहीं मिलना भी है. देवघर में भी कमोबेश यही स्थिति है. शहर में दरअसल आउटडोर गेम एथलेटिक्स, क्रिकेट, फुटबॉल आदि के खिलाड़ियों के लिए केके स्टेडियम छोड़ कोई मुकम्मल स्टेडियम उपलब्ध नहीं है. आउटडोर स्टेडियम के तौर पर मौजूद केके स्टेडियम का 95 फीसदी हिस्से में घास नहीं है.
घास के बगैर देवघर जिले के खिलाड़ी कंकड़ में खेल कर अपने हुनर को तराशते हैं. पिछले डेढ़ दशकों से देवघर के खिलाड़ी बालू वाली मिट्टी में खेल कर अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए लगातार जद्दोजहद कर रहे हैं. वर्षों से जिले में खेल के विकास के नाम जिला खेल प्राधिकरण संचालित है, मगर एक-दो को छोड़ ऐसे खिलाड़ी तैयार नहीं हो सके, जिसने बड़े क्षितिज पर जिले का नाम रोशन किया हो.
साल के नौ महीने स्टेडियम में होता है आयोजन : स्टेडियम के मैदान का उपयोग खिलाड़ियों के कला-कौशल व हुनर को तराशने के लिए होना चाहिए, मगर सालभर में नौ महीने स्टेडियम का उपयोग सांस्कृतिक, राजनीतिक, धार्मिक कार्यक्रमों के लिए होता है. इसके बदले डीएसए को मोटी रकम की प्राप्ति होती है. मगर उन पैसों का स्टेडियम के विकास के बदले रंगारंग कार्यक्रम व भोजना आदि में खर्च हो जाता है. इसके अलावा डीएसए को प्रत्येक माह किराये के तौर पर हजारों रुपये की आमदनी होती है.
लाखों का बिजली बिल बकाया :
सूत्रों की मानें तो केके स्टेडियम व इंडोर स्टेडियम के नाम से लाखों रुपये का बिजली बिल बकाया है. जबकि जिम, ट्रांसपोर्ट अॉफिस, दाल-भात केंद्र से किराये के तौर पर प्रति माह हजारों रुपये की आमदनी होती है. बावजूद केके स्टेडियम के नाम पर दो-ढ़ाई लाख रुपये का बिजली बिल बकाया हो गया है.
स्टेडियम में संसाधन की कमी
आखिर खिलाड़ी कैसे तैयार होंगे, जब उन्हें स्टेडियम में समुचित संसाधन ही मुहैया नहीं होगा. आउटडोर स्टेडियम के तौर पर स्थापित केके स्टेडियम में न खिलाड़ियों के लिए समुचित सुविधा वाली ड्रेसिंग रूम है, न स्ट्रीमिंग बाथ की सुविधा है. पानी के अभाव में दिन-रात मैदान में पसीना बहाने वाले खिलाड़ियों को शौचालय तक की सुविधा नहीं दी जाती है.
रखरखाव के अभाव में स्टेडियम के अंदर बने चार शौचालय जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच चुके हैं. नतीजा खिलाड़ियों के साथ-साथ मैदान में पहुंचने वाले दर्शकों को भी स्टेडियम में किनारा ढूंढ़ना पड़ता है. जबकि पूरी खेल व्यवस्था के संचालन व खिलाड़ियों को दिये जाने वाली सुविधा के लिए जिला खेल प्राधिकरण की जिम्मेवारी है. मगर न प्राधिकरण अौर न प्रशासनिक स्तर पर कोई पहल हो रही है.
इंडोर स्टेडियम में होता है एकमात्र गेम
यही स्थिति इंडोर स्टेडियम की भी है. जहां 100 से अधिक खिलाड़ी केवल बैडमिंटन ही खेलने पहुंचते हैं. इसके अलावा थोड़ी संख्या में ताइक्वांडो व योगा के लिए खिलाड़ी पहुंचते हैं. इंडोर में दूसरे अन्य गेम कबड्डी, टेबल टेनिस, चेस, कुश्ती आदि की सुविधा न होने व समुचित संसाधन के अभाव में दूसरे अन्य गेम के खिलाड़ी जिले में पनप नहीं रहे हैं.
नतीजा बैडमिंटन छोड़ दूसरे खेलों की पहचान जबकि इंडोर का भी बिजली बिल लाखों में पहुंच चुका है. बावजूद प्रांतीय व राष्ट्रीय मानकों के अभाव में यहां से स्तरीय खिलाड़ी उभर कर सामने नहीं आ रहे हैं. नाम न छापने की शर्त पर कई खिलाड़ियों ने बताया कि शाम ढलते ही केके स्टेडियम में शराबियों का अड्डा जमा हो जाता है, मगर उन्हें रोकने-टोकने वाला कोई नहीं है.

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