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मर्ज और दर्द के बीच ‘कोशिश’ का फर्ज

बसंत मधुकर बोकारो : मर्ज है, दर्द है, तो ‘कोशिश’ का फर्ज है. और यह फर्ज है पीड़ित मानवता की सेवा का. बोकारो जेनरल हॉस्पिटल के एनेस्थीसियोलॉजिस्ट डॉ अभिजीत दाम व उनकी गाइनेकॉलजिस्ट पत्नी डाॅ निवेदिता दत्ता ने 2005 में सेवा को समर्पित कुछ सहयोगी-मित्रों के साथ मिलकर कोशिश की स्थापना की थी, जो असाध्य […]

बसंत मधुकर
बोकारो : मर्ज है, दर्द है, तो ‘कोशिश’ का फर्ज है. और यह फर्ज है पीड़ित मानवता की सेवा का. बोकारो जेनरल हॉस्पिटल के एनेस्थीसियोलॉजिस्ट डॉ अभिजीत दाम व उनकी गाइनेकॉलजिस्ट पत्नी डाॅ निवेदिता दत्ता ने 2005 में सेवा को समर्पित कुछ सहयोगी-मित्रों के साथ मिलकर कोशिश की स्थापना की थी, जो असाध्य रोग से पीड़ित गरीब-अमीर सभी तरह के मरीजों के अंतिम दिनों में पैलिएटिव केयर यानी नि:शुल्क इलाज और देखभाल करती है. यह राज्य में अपने तरह का इकलौता गैर सरकारी संगठन है. इसका मुख्यालय चास-पुरूलिया मुख्य पथ पर पिंड्राजोरा में स्थित है, जहां ‘हॉस्पेस’ नाम से एक सेवा केंद्र भी संचालित है.
विभिन्न अस्पतालों से मिलती है मरीजों की जानकारी : जरूरतमंद मरीज ढूंढ़ने के लिए डॉ दाम व उनकी टीम के लोग सालों भर झारखंड, ओड़िशा व पश्चिम बंगाल के सुदूरवर्ती इलाकों का सघन दौरा करने के अलावा टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल मुंबई में इलाजरत झारखंड व बिहार के मरीजों को चिह्नित करते हैं.
टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल से बाकायदा डाॅ दाम के पास बोकारो के मरीजों की जानकारी भेजी जाती है. संस्था की ओर से बोकारो व आसपास के इलाके में सैकड़ों मरणासन्न मरीजों की देखभाल की गयी है और की जा रही है. जिन मरीजों के परिजन मौजूद हों व देखभाल करने के इच्छुक हों, उन्हें अंतिम दिनों में सेवा का विशेष प्रशिक्षण देने की भी ‘कोशिश’ की ओर से व्यवस्था की जाती है.
इच्छुक युवक-युवतियों काे मिला है प्रशिक्षण
जीवन के आखिरी पड़ाव पर जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं, उनके लिए डॉ दाम व उनके सहयोगी ग्रामीण इलाकों में कैंप लगाकर स्वास्थ्य-सेवा के क्षेत्र में कॅरियर बनाने के इच्छुक युवक-युवतियों का चयन कर उनके समुचित प्रशिक्षण की व्यवस्था करते हैं. ताकि ऐसे मरीजों की देखभाल होने के साथ-साथ लोगों को रोजगार भी मिले. इसके लिए ‘कोशिश’ की ओर से बाकायदा हेल्थ केयर असिस्टेंट का एक वर्षीय सर्टिफिकेट कोर्स चलाया जा रहा है. डाॅ दाम बताते हैं कि आने वाले समय में इसकी बहुत जरूरत होगी.
सेवा से जुड़े लोगों के पास आध्यात्मिक ज्ञान जरूरी
डॉ दाम कहते हैं कि अंतिम दिनों में व्यक्ति की जरूरतें, सरोकार व दायरा बहुत सीमित हो जाता है. उसका मन अध्यात्म व धर्म केंद्रित होने लगता है. ऐसे में उन मरीजों की देखभाल और सेवा से जुड़े लोगों के पास आध्यात्मिक ज्ञान होना भी आवश्यक है. डॉ दाम ने स्वयं भी दक्षिण भारत जाकर आध्यात्मिक प्रशिक्षण लिया है.
झारखंड सरकार की नहीं है कोई नीति
पैलिएटिव केयर पर झारखंड सरकार की कोई नीति नहीं होना निराश करती है. डॉ दाम ने कहा : एक वर्ष पहले ही पैलिएटिव केयर पॉलिसी ड्रॉफ्ट करके सरकार को दिया गया है. लेकिन सरकार की ओर से अब तक इस पर कोई स्पष्ट निर्णय नहीं लिया गया. जबकि केरल, महाराष्ट्र व कर्नाटक आदि राज्यों की पैलिएटिव केयर की स्पष्ट नीति है. यह निराशाजनक है.

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