उन्हें अपने सामान को बेचने के लिए बाजार भी नहीं मिल पाता है. वे गांव के हटिया में अपना सामान लेकर बेचने जाते हैं, तो उसकी कीमत भी नहीं मिल पाती है. इन सब से आजिज हाथ के ये हुनरमंद अपना पुश्तैनी काम छोड़ना चाहते हैं. मुख्यत: इस काम को महली और आदिवासी समाज के लोग करते हैं. पूरे जरीडीह प्रखंड में लगभग 150 घर हैं, जहां बांस का सामान बनाया जाता है. इनकी आबादी लगभग 950 है. लेकिन ये कम मुनाफे के चलते यह काम छोड़ना चाहते हैं या फिर छोड़ चुके हैं.
खुटरी पंचायत में इन कारीगरों की संख्या ज्यादा है. कारीगरों का कहना है कि उन्हें सरकारी स्तर से भी कोई मदद नहीं मिलती है. सूर्योपासन का पर्व जब आता है, तो उस वक्त बांस के सूप और डाली की मांग रहती है. बाकी समय आर्थिक तंगी से जूझना पड़ता है.