बोकारो: मोतियाबिंद आंखों की एक बीमारी है. इस बीमारी के कारण आंखों में मौजूद प्राकृतिक लेंस धुंधला हो जाता है. व्यक्ति को दिखायी देने में कठिनाई होती है. मोतियाबिंद के पूरी तरह से पक जाने से उस आंख से बिल्कुल दिखायी नहीं देता. यह बीमारी लगभग 50-60 वर्ष की आयु में होती है. ऑपरेशन में रोगी जितना विलंब करता है, ऑपरेशन में उतनी ही दिक्कत बढ़ती है.
सफेद मोतियाबिंद के अत्यधिक पकने से ग्रस्त आंख में काला मोतिया भी आने की आशंका हो जाती है. यह दृष्टि के लिए बहुत हानिकारक होता है. यह बातें ‘प्रभात खबर’ से विख्यात नेत्र रोग विशेषज्ञ सह सजर्न डॉ अंबरिश सोनी ने कही.
उपचार केवल शल्य चिकित्सा से : मोतियाबिंद का उपचार केवल और केवल शल्य चिकित्सा है. ऑपरेशन से पूर्व अगर व्यक्ति का रेटिना ठीक है तो सफल शल्य चिकित्सा के बाद नेत्र ज्योति सामान्य हो जाती है. अब शल्य चिकित्सा के बाद टांके नहीं लगाये जाते. आजकल ‘फैको इमल्सीफिकेशन’ तकनीक से शल्य चिकित्सा की जाती है. शल्य चिकित्सा के दूसरे दिन से ही व्यक्ति को साफ दिखने लगता है. आठ से 10 दिनों में ही रोजमर्रा कार्य किया जा सकता है.