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मर्ज बढ़ता गया, समस्या गंभीर हुई

चास: बोकारो जिला ने 23 वर्ष का सफर तय कर लिया है. फिर भी मर्ज बढ़ता गया, समस्या गंभीर होती चली गयी. आज भी यहां पेयजल नया बाई पास, नया गरगा पुल व विस्थापन जैसी समस्याएं मुंह बाये खड़ी है. इन समस्याओं को दूर करने का प्रयास किसी स्तर पर नहीं किया जा रहा है. […]

चास: बोकारो जिला ने 23 वर्ष का सफर तय कर लिया है. फिर भी मर्ज बढ़ता गया, समस्या गंभीर होती चली गयी. आज भी यहां पेयजल नया बाई पास, नया गरगा पुल व विस्थापन जैसी समस्याएं मुंह बाये खड़ी है. इन समस्याओं को दूर करने का प्रयास किसी स्तर पर नहीं किया जा रहा है.

पानी, बिजली, शिक्षा, उग्रवाद आदि समस्या ने कोढ़ में खाज का काम किया है. ऐसे भी किसी जिला को पूर्ण विकसित करने के लिए 23 वर्ष कम नहीं होते हैं.

कहने को तो इस जिले में प्रदेश व केंद्रीय स्तर के नेता रहते हैं. लेकिन जिला को विकास पथ पर लाने का प्रयास किसी ने नहीं किया. जिले में सार्वजनिक क्षेत्र के कई उपक्रम हैं, फिर भी गरीबी व बेकारी दूर नहीं हुई. गौरतलब है कि मुर्ख दिवस के दिन एक अप्रैल 1991 को बोकारो जिला का गठन किया गया था. धनबाद जिला के चास व गिरिडीह जिला के बेरमो अनुमंडल को मिला कर बोकारो जिला का गठन किया गया. इस जिले के अंतर्गत चंदनकियारी, बोकारो, गोमिया, बेरमो विधानसभा क्षेत्र है. डुमरी विधानसभा क्षेत्र के नावाडीह प्रखंड भी इसी जिला में है. जिले में चास अनुमंडल क्षेत्र का हाल बेहाल है.

कहने को तो इस क्षेत्र में बोकारो इस्पात संयंत्र सहित कई निजी क्षेत्र के उद्योग धंधे चल रहे हैं. औद्योगिकीकरण व शहरी करण के इस दौर में लघु भारत के नाम से अपनी पहचान बना चुका बोकारो स्टील सिटी 60 के दशक के पहले प्रसिद्ध गांव माराफारी के नाम से जाना जाता था. संयंत्र का निर्माण कार्य 1968 से शुरू किया गया तथा 1973 सेल की स्थापना के साथ ही यह सेल की इकाई बन गया. इसके बाद से ही बोकारो सिटी एशिया महादेश में अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब रहा. इसके बाद भी यहां चास अनुमंडल में अनगिनत समस्याएं हैं.

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