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गरगा नदी पर सरकार का अतिक्रमण

अक्षय कुमार झा सरकारी जमीन पर आम जनता का अतिक्रमण करना अब एक आम बात है. लेकिन, सरकार ही नदी, पहाड़ और जंगल पर अतिक्रमण करे तो इसे विकास के नाम पर विनाश को बुलावा देना ही कहेंगे. जी हां, ऐसा लगातार हो रहा है. विकास के नाम पर जिस तरीके से सरकारी योजनाएं आकार […]

अक्षय कुमार झा

सरकारी जमीन पर आम जनता का अतिक्रमण करना अब एक आम बात है. लेकिन, सरकार ही नदी, पहाड़ और जंगल पर अतिक्रमण करे तो इसे विकास के नाम पर विनाश को बुलावा देना ही कहेंगे. जी हां, ऐसा लगातार हो रहा है. विकास के नाम पर जिस तरीके से सरकारी योजनाएं आकार ले रही हैं, यह एक बड़े खतरे को दावत देने जैसा है. खास कर, जब सिर्फ 14 किमी की दूरी में किसी एक ही नदी पर 20 पुल का निर्माण कर दिया जाये. ऐसा हुआ है बोकारो के गरगा डैम से लेकर तेलमच्चो तक गरगा नदी पर. और यह काम करने वाला विभाग है ग्रामीण विकास विभाग स्पेशल डिवीजन. गौर करने वाली बात यह है कि यह सारा काम हुआ है सिर्फ सात साल में यानी 2010 से 2017 के बीच में. अब इसके दुष्परिणाम सामने हैं.

बनने थे चार बन गये 20 पुल : यह जानकर हैरानी होती है कि पीडब्ल्यूडी और आरइओ विभाग के इंजीनियर्स को भी नहीं पता कि किसी एक ही नदी पर दो पुल के बीच की दूरी कितनी होनी चाहिए. प्राइवेट सेक्टर और पीएसयू के कुछ विश्वस्त इंजीनियर्स के मुताबिक एक ही नदी पर दो पुल के बीच की दूरी तीन से पांच किलोमीटर होनी चाहिए. इस हिसाब से गरगा डैम और तेलमच्चो के बीच 14 किलोमीटर की दूरी पर ज्यादा से ज्यादा चार पुल नहीं होने चाहिए थे. लेकिन बन गये 20 पुल.

तय करें यह विकास है या विनाश : नदी में यदि एक मीटर चौड़ा पिलर का निर्माण किया जाये तो नदी के पानी का बहाव 3 गुणा ऊपर की ओर बढ़ जाता है. यहां बनाए गये पुल में पिलर की मोटाई अमूमन 5 मीटर है और संख्या पांच से 10. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि नदी के पानी का बहाव पुल के पिलर की वजह से कितना प्रभावित होता होगा. साथ ही हर पिलर के निर्माण से वाटर रिसोर्स डिपार्टमेंट के आंकड़ों के मुताबिक पानी का बहाव 150 माइल प्रति घंटा की रफ्तार से बढ़ जाता है. ऐसे में हिसाब लगाया जा सकता है कि पानी का बहाव बरसात के दिनों में जब नदी उफान पर रहती है, तो कितना बढ़ जाता होगा. गरगा नदी में 145 किलोमीटर कैचमेंट एरिया का पानी आता है. बरसात के दिनों में जब गरगा डैम के सारे दरवाजे खोल दिये जाते हैं, तो 79,000 क्यूसेक पानी प्रति घंटा बहता है. ऐसे में आने वाले दिनों में किसी भी दिन गरगा बोकारो के लिए प्रलय साबित हो सकता है. क्योंकि बहाव तेज होने की वजह से किनारा तेजी से कट रहा है.

सिर्फ दो पुल बनने की थी इजाजत : बीएसएल के 1964 के लैंड लेआउट प्लान के मुताबिक बोकारो और आस-पास के इलाके के सर्वे उस वक्त के इंजीनियरों ने किया था. टीम ने गरगा नदी पर सिर्फ दो ब्रिज बनाने की इजाजत दी थी. एक चास-बोकारो को जोड़ने वाली गरगा पुल और दूसरा पांडेय पुल, लेकिन इसके अलावा 18 पुल और बना दिये गये.

पिछले साल आयी थी तबाही : पिछले साल बारिश के मौसम में गरगा नदी अपने पूरे उफान पर थी. पानी का बहाव ऊपर की ओर इतना बढ़ गया था कि पानी पुल के ऊपर से बह रहा था. पांडेय पुल पर पानी दो मीटर तक ऊपर आ गया था. चास-बोकारो गरगा पुल पर पानी एक फुट से ज्यादा ऊपर बहा था. सेक्टर-6 और भर्रा में बने पुल के साथ सभी नए बने पुल के ऊपर से पानी बहा था.

कहां-कहां हैं ये पुल : सतनपुर में 2, बारी को-ऑपरेटिव में एक, मकदुमपुर में एक, सिवनडीह में एक, बिरसाबासा में तीन, फोरलेन एक, बोकारो-चास गरगा पुल- दो, भोजपुर में एक, भर्रा में एक, चीरा-चास में दो, जोधाडीह में एक, पारसबनी में एक, सेक्टर छह में दो, भतुआ बस्ती में एक.

(लेेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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