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लंबित मुकदमों का बोझ कम करने में सारा सिस्टम फेल : जस्टिस वीके गुप्ता
झारखंड हाइकोर्ट के पहले चीफ जस्टिस वीके गुप्ता पिछले दो दिनों से रांची में हैं. रिटायर हो चुके जस्टिस गुप्ता झारखंड से जाने के 15 साल बाद पहली बार रांची आये हैं. वह झारखंड बिजली वितरण लिमिटेड के आर्बिट्रेशन से संबंधित मामले में सुनवाई करने को लेकर रांची में हैं. उन्होंने कहा कि पिछले 15 […]
झारखंड हाइकोर्ट के पहले चीफ जस्टिस वीके गुप्ता पिछले दो दिनों से रांची में हैं. रिटायर हो चुके जस्टिस गुप्ता झारखंड से जाने के 15 साल बाद पहली बार रांची आये हैं. वह झारखंड बिजली वितरण लिमिटेड के आर्बिट्रेशन से संबंधित मामले में सुनवाई करने को लेकर रांची में हैं. उन्होंने कहा कि पिछले 15 साल में झारखंड में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है. यहां अच्छी सड़कें बन गयी हैं. शहर भी काफी स्वच्छ लग रहा है. चीफ जस्टिस ने अपने तीन साल के कार्यकाल में झारखंड में न्याय व्यवस्था को नयी दिशा दी थी. वह जनहित के मुद्दों पर मुखर होकर अधिकारियों को फटकार लगाने के साथ कोर्ट में बुला कर समझाते भी थे. उनकी अध्यक्षता में संवैधानिक पीठ ने नवंबर 2002 में मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी सरकार की ओर से तय की गयी डोमिसाइल पॉलिसी को असंवैधानिक करार दिया था. जस्टिस गुप्ता ने मुकदमों के बोझ तले दबी देश की न्यायपालिका पर चिंता जतायी है. उन्होंने कहा कि देश में फिलहाल तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं. इन्हें कम करने में सारा सिस्टम फेल हो गया है. मुकदमों को कम करने के लिए लोक अदालत, मध्यस्थता और ऑर्बिट्रेशन का सहारा लिया जा रहा है. ये भी पूरी तरह से कारगर साबित नहीं हो पा रहे हैं, क्योंकि मुकदमों को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों की रजामंदी जरूरी है. इस कारण विवाद को सुलझाने में काफी समय लग जाता है. प्रभात खबर के उप मुख्य संवाददाता सतीश कुमार ने न्यायपालिका से जुड़े मामलों पर जस्टिस वीके गुप्ता के साथ विस्तार से बातचीत की. प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश.
कितने दिनों बाद आप रांची आये, क्या बदलाव देखने को मिल रहा है?
झारखंड में चीफ जस्टिस के तौर पर मैंने राज्य गठन से लेकर मार्च 2003 तक काम किया. इसके बाद मेरा तबादला जम्मूू-कश्मीर हाइकोर्ट में हो गया. यहां से जाने के बाद मैं पहली बार रांची आया हूं. मैं झारखंड बिजली वितरण लिमिटेड के ऑर्बिट्रेशन से संबंधित मामले की सुनवाई करने आया हूं. पिछले 15 साल में झारखंड में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है. यहां की सड़कें काफी अच्छी बन गयी है. शहर भी स्वच्छ लग रहा है.
जनहित के मुद्दों पर झारखंड काफी सख्त रूप अपनाता है? कई बार न्यायपालिका पर सक्रियता का भी आरोप लगता है? आप इसे कैसे देखते हैं?
न्यायपालिका व कार्यपालिका को अपनी सीमा में रह कर काम करना चाहिए. जनहित से जुड़े मुद्दों पर कई बार अदालत को सख्त रूख अपनाना पड़ता है. कार्यपालिका को उसके दायित्व का बोध कराने के लिए कड़े आदेश भी पारित करने पड़ते हैं. इन मामलों में न्यायपालिका का एक मात्र उद्देश्य होता है कि कैसे जनता को त्वरित न्याय मिले.
देश की न्यायपालिका मामलों के बोझ तले दबी है, इसका क्या समाधान है?
देखिए यह काफी चिंता का विषय है. सच कहें तो न्यायपालिका पर बोझ करने में सारा सिस्टम फेल हो गया है. अब भी देश में तीन करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं. हाइकोर्ट व निचली अदालतों में जजों की कमी है. लंबित मामलों को खत्म करने के लिए आखिर सरकार कितना जज नियुक्त करेगी. अदालतों का बोझ कम करने के लिए वैकल्पिक माध्यम जैसे लोक अदालत, मध्यस्थता और ऑर्बिट्रेशन का सहारा लिया जा रहा है. ये भी पूरी तरह से कारगर साबित नहीं हो पा रहे हैं. इन मामलों में दोनों पक्षों की रजामंदी जरूरी है. ऐसे में विवादों के निबटारे में काफी समय लग जाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने भी राम मंदिर का विवाद कोर्ट के बाहर सुलझाने का सुझाव दिया है. आप इसे कैसे देखते हैं?
यह मामला पिछले कई वर्षों से न्यायालय में चल रहा है. निचली अदालत से होते हुए यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद को सुलझाने के लिए अच्छा प्रयास किया है. अगर दोनों पक्षों की रजामंदी से विवाद सुलझ जाये, तो काफी अच्छा होगा. मुझे उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसके लिए सकारात्मक पहल करेंगे.
वैवाहिक विवाद के मामले में काफी विलंब होता है. इसका क्या कारण है?
वैवाहिक विवाद को निबटारे के लिए अलग-अलग कानून हैं. हिंदू मैरेज एक्ट 1956 में प्रावधान किया गया है कि जब भी पति-पत्नी का विवाद सामने आये, तो जज दोनों पक्षों को अपने चेंबर में बैठा कर मामले को सुलझायें. देखने को मिलता है कि अहं की लड़ाई में दोनों पक्ष झुकने को तैयार नहीं होता है. अगर आंकड़ों को देखेंगे, तो एक लाख मामलों में सिर्फ 50 मामलों में ही दोनों पक्षों की रजामंदी से विवाद सुलझ पाता है.
झारखंड की ऐसी कोई घटना जो आज भी आपको याद हो?
वर्ष 2001 में रिम्स में अतिक्रमण हटाने को लेकर जनहित याचिका दायर हुई. कहा गया कि रिम्स परिसर के साथ वार्ड ही नहीं ऑपरेशन थियेटर में भी कब्जा है. रिम्स के पांचवें फ्लोर में असामाजिक तत्वों का अड्डा है. डर से लोग इस फ्लोर पर नहीं जाते हैं? मैंने इस मामले में डीसी व एसएसपी को कोर्ट में बुला कर कहा कि आज शाम चार बजे तक परिसर में चारों ओर पोस्टर लगा कर बता दिया जाये कि अतिक्रमण हटा लें. ऐसा नहीं करने पर सुबह 10 बजे तक अतिक्रमण हटा कर कोर्ट को सूचित करें. मौखिक तौर पर कहा कि अगर पांचवें फ्लोर में कोई असामाजिक तत्व मिलें, तो उसे वहीं से फेंक दें. इसी दौरान यह भी मामला आया कि एक मंत्री का रिम्स के एक बिल्डिंग पर कब्जा है. मैंने उसे भी तत्काल खाली करने का निर्देश दिया. इस आदेश के बाद रिम्स परिसर से अतिक्रमण हट गया. एक अन्य मामले में रांची रेलवे स्टेशन के सौंदर्यीकरण में बाधा बन रहे मंदिर को मैंने दूसरी जगह शिफ्ट करने का निर्देश दिया. इसके बाद शहर में काफी तनाव बढ़ गया. मुझे लगा कि कोई बड़ी घटना नहीं हो जाये. इस वजह से मैंने अपने आदेश को वापस लिया. यह दोनों मामले मुझे अब तक याद हैं.
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