-अमन तिवारी-
रांचीः झारखंड में भ्रष्ट, रिश्वतखोर और आय से अधिक संपत्ति अजिर्त करनेवाले अधिकारियों को पकड़ने के लिए स्पेशल विजिलेंस यूनिट बनाने की योजना तैयार की गयी थी. सरकार के निर्देश पर इससे संबंधित आदेश तत्कालीन विजिलेंस कमिश्नर राजबाला वर्मा ने 18 सितंबर 2009 को जारी किया था. पर चार साल से अधिक का समय गुजर गया, इस स्पेशल विजिलेंस यूनिट का गठन पूरी तरह नहीं हो पाया.
यूनिट के लिए न तो कभी अधिकारियों की नियुक्ति हुई और न ही इसका कोई प्रयास किया गया. वहीं पड़ोसी राज्य बिहार में इस तरह की यूनिट पूरी क्षमता के साथ काम कर रही है. कई रिश्वतखोर अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई भी की गयी. उनकी संपत्ति जब्त की गयी. इससे वहां भ्रष्ट अधिकारियों में भय का माहौल है.
झारखंड में प्रस्तावित स्पेशल विजिलेंस यूनिट के लिए एसपी से लेकर दारोगा तक की नियुक्ति एक वर्ष के अनुबंध पर होनी थी.काम के आधार पर अनुबंध बढ़ाने का भी प्रस्ताव था. सीबीआइ के सेवानिवृत्त वैसे अधिकारियों को ही नियुक्त करना था, जिनकी उम्र 65 वर्ष से कम हो. नियुक्ति के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया जाना था. कमेटी की अनुशंसा पर ही सरकार किसी की नियुक्ति पर अंतिम निर्णय लेती.
निगरानी एडीजी को बनना था चीफ : इस यूनिट में निगरानी एडीजी को चीफ बनाने का प्रावधान था. हालांकि यह स्वतंत्र इकाई के रूप में काम करता. यानी एडीजी की सहमति के बिना भी सिर्फ सूचना के आधार पर यूनिट के अधिकारियों को रिश्वतखोरों को गिरफ्तार करने और आय से अधिक संपत्ति अजिर्त करनेवालों पर कार्रवाई करने का अधिकार देना था.
18 सितंबर 2009 को जारी किया गया था आदेश
क्यों बननी थी स्पेशल विजिलेंस यूनिट
तत्कालीन सरकार को सूचना मिली थी कि झारखंड में सरकार की ओर से सामाजिक और आर्थिक विकास के क्षेत्र में किये जा रहे व्यापक निवेश में काफी भ्रष्टाचार है. इस कारण आम जनता को लाभ नहीं मिल पा रहा है. सरकारी स्तर पर तय किया गया था कि इसके लिए निगरानी तंत्र को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है. इसके बाद स्पेशल विजिलेंस यूनिट का गठन करने संबंधी प्रस्ताव तैयार किया गया, ताकि प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को दूर किया जा सके.
क्यों नहीं हो पाया गठन
-सरकारी स्तर पर इच्छाशक्ति की कमी
-बताया जाता है कि कुछ गिने-चुने अधिकारी इस यूनिट का गठन नहीं होने देना चाहते
क्या हो रहा है दुष्परिणाम
-भ्रष्ट अधिकारी निर्भीक होकर अपने काम में लगे हैं
-सरकारी योजनाओं के पैसों का बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचारियों के पास जमा हो रहा है. इससे आम जनता को नुकसान उठाना पड़ रहा है
-आम लोगों को कुछ अधिकारियों, कर्मियों को छोटे-बड़े कार्यो के लिए भी घूस देनी पड़ रही है