-हरिवंश-
अखबार राजनीति नहीं है. हम संस्था के तौर पर विधानसभा की कद्र करते हैं. यह लोकतंत्र का मंदिर है. यहीं से राज्य का भाग्य तय होनेवाला है.झारखंड की लूट कथा पर लगातार मीडिया में रपटें आती रही हैं. प्रभात खबर ने, बिना किसी भेदभाव के पिछले आठ वर्षों में, सत्ता के इस दुरुपयोग को उजागर किया है. हमारे पास इसके ब्यौरे हैं. और इसकी कीमत जो हमने चुकायी है, वह न हमने राजनीतिज्ञों को बताया, न राज्य को, न समाज को, क्योंकि हम मानते हैं कि हमारा धर्म है, व्यवस्था की सफाई के लिए जनता के पक्ष में खड़ा होना.
और हम यही कर रहे हैं. पिछले आठ वर्षों में झारखंड की लूट बढ़ी. कानून और संस्थाओं की खिल्ली उड़ायी गयी और मीडिया में ऐसी रपटें भी बढ़ीं. इसी क्रम में ताजा प्रकरण है, झारखंड के एक ऐसे व्यक्ति का 17 सितंबर को मुंबई कस्टम द्वारा गैरकानूनी पैसे ढोने पर डिटेंशन. क्या यह मीडिया ने किया था? उस दिन झारखंड के अखबार बंद थे. देश के दर्जनों बडे अखबारों में यह खबर आयी कि यह व्यक्ति झारखंड के किस ताकतवर व्यक्ति से जुडा है? इसके बाद लगातार इस घटना के संबंध में दस्तावेज छप रहे हैं. हम महसूस करते हैं कि अखबार की भूमिका या अखबार का काम है, सच की तह तक पहुंचने के लिए समाज, राजनीतिक दलों, जनमत, विधायिका, सरकार, नौकरशाही, जांच एजेंसियों को मदद करना. अगर अखबारों में छप रही बातें गलत हैं, तो इसका एक बड़ा साधारण और सामान्य समाधान है, जांच करा देना.
अगर माननीय विधायकों को प्रभात खबर से शिकायत है तो वे प्रभात खबर में एक-एक तथ्यों-विवरणों का जवाब दें. हम सम्मान के साथ उनका पक्ष छापना चाहेंगे. हम ऐसा करना, अपना धर्म समझते हैं. हम इस सूक्त वाक्य में विश्वास करते हैं कि आपकी बातों या आपके मत से बिलकुल असहमत हैं, पर आपके इस अधिकार की रक्षा के लिए हम हमेशा सचेष्ट रहेंगे. नेहरूजी को यह वाक्य प्रिय था कि उन्होंने इसको संसद में खुदवाया. झारखंड की विधायिका संभवतया, नेहरूजी के इस वाक्य को भूल गयी. जीवन और कर्म, दोनों से.
हम सारे तथ्यों से यही सवाल उठा रहे हैं कि जांच हो. अगर कोई निष्पक्ष है, तो वह जांच से क्यों भाग रहा है? क्या चोर की दाढ़ी में तिनकावाली कहावत सही है? जो विधायक अखबार के गलत तथ्यों की बात करते हैं, हमारा उनसे आग्रह है, कि वे लिखित रूप से कहें. सदन के बाहर कहें. उनके इस बयान पर हम अपनी ओर से न्यायपालिका में जाकर आग्रह करेंगे कि हमारे खिलाफ के आरोपों की जांच हो. हम जांच के लिए तैयार हैं. सिर्फ एक मामूली शर्त है. हम प्रभात खबर पर आरोप लगानेवाले के गलत कामों की सूची भी सार्वजनिक करेंगे और उसे भी इस जांच के लिए तैयार होना होगा. मीडिया का यह अभियान है, झारखंड की राजनीति को शुद्ध बनाने का. झारखंड विधानसभा या सरकार चाहे, तो एक ऐतिहासिक निर्णय ले और इसकी जांच करा ले. स्पष्ट हो जायेगा कि मीडिया गलत है या राजनीति करनेवाले?
जहां तक प्रभात खबर की बात है, अक्सर कुछेक लोग यह आरोप लगाते हैं कि विधानसभा में चर्चित होने के लिए अखबार सवाल उठाता है. हम स्पष्ट करना चाहेंगे कि प्रभात खबर ने काफी पहले यह तय कर लिया था कि वह विधानसभा में प्रभात खबर को लहराते तसवीर नहीं छापेगा. खबर भी नहीं छापेगा. न हम छापते हैं. ‘पीके इंपैक्ट’ (यानी प्रभात खबर की खबरों का असर) यहां नहीं छपता, ताकि समाज को हम अपना महत्व बतायें. पहले कभी कभार ऐसा होता था, पर समाज की आलोचना को हमने सही पाया और तय किया कि अपनी खबरों को हम आत्मप्रचार के लिए नहीं छापेंगे.
झारखंड बनने के बाद से ही लगभग हर असेंबली में न चाहते हुए भी प्रभात खबर चर्चा में आता है. बहस का विषय बनता है. खासतौर से पिछले दो-तीन वर्षों से कुछ अधिक ही. या रोज ही. या हर सत्र में हर दिन. जो लोग समझते हैं कि यह प्रभात खबर की ताकत है, वे भ्रम में हैं. इस नश्वर संसार में प्रभात खबर जैसे लाखों मंच हैं, जो इतिहास में डूबते-उतराते हैं. ताकत प्रभात खबर की नहीं, मुद्दों की है. झारखंड के गंभीर सवालों की यह ताकत है. जनसमस्याओं की यह ताकत है कि वे खुद गूंज रहे हैं. यह उस मंच (मीडिया या प्रभात खबर) की खासियत नहीं है कि वह चर्चा में होता है.
ये जनता के सवाल हैं. इसलिए ये बार-बार उठेंगे, चाहे अखबार उठायें या न उठायें. इस अर्थ में हम गांधी के अनुयायी हैं. काम खुद बोलता है, प्रचार नहीं (वर्क स्पीक्स लाउडर दैन वॉयस). इसलिए हम यह प्रचार नहीं करते कि हमारे उठाये गये सवाल विधानसभा में गूंजते हैं. दरअसल ये सवाल विधायकों के हैं. विधायिका का है. उनका फर्ज है कि वे ऐसे सवाल उठायें. हम उनकी बातों को छापें. पर वे अपनी भूमिका से भटक गये हैं. समाज की समस्याएं उठाना विधायिका का धर्म है. ऐसे नासूर बन रहे सवालों का हल ढूंढिए, नहीं तो यह व्यवस्था ही अविश्वनीय हो जायेगी. लोकतंत्र को खत्म कर देगी.
विनोद सिन्हा का प्रसंग प्रभात खबर ने पहली बार 20 अगस्त 2007 को उठाया था. अगर उस समय यह मामूली जांच हो गयी होती, तो भ्रष्टाचार का यह मामला झारखंड से निकल कर विदेशों में नहीं फैला होता. झारखंड देश का सबसे गरीब राज्य है, क्योंकि यहां सबसे अधिक भ्रष्टाचार है. सडकें नहीं हैं, क्योंकि यहां सड़कें लूटी जाती है. स्वास्थ्य व्यवस्था ठीक नहीं है, क्योंकि अव्यवस्था है. बिजली नहीं है, क्योंकि बिजली विभाग में भारी लूट है. ऐसे सारे सवालों को ठीक करने का एक ही रास्ता है, जांच. जांच की सुरंग से ही झारखंड की राजनीति साफ होगी. सरकार और विधायिका ऐसा निर्णय कर ऐतिहासिक काम कर सकते हैं.