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राज्य में दम तोड़ती जनजातीय शिक्षा

।। सुनील कुमार झा ।। रांची : राज्य में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा की पढ़ाई दम तोड़ रही है. विद्यालयों में जनजातीय भाषा के न तो शिक्षक है न ही किताब. बिना शिक्षक व किताब के वर्षो से राज्य में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा की पढ़ाई हो रही है. राज्य गठन हुए 13 वर्ष हो […]

।। सुनील कुमार झा ।।

रांची : राज्य में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा की पढ़ाई दम तोड़ रही है. विद्यालयों में जनजातीय भाषा के न तो शिक्षक है न ही किताब. बिना शिक्षक व किताब के वर्षो से राज्य में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा की पढ़ाई हो रही है. राज्य गठन हुए 13 वर्ष हो गये. अब तक सात शिक्षा मंत्री हुए, पर किसी ने इन भाषाओं की स्थिति सुधारने का प्रयास नहीं किया. झारखंड के नेता बात तो राज्य हित की करते हैं, पर यहां की भाषा व महापुरुष उपेक्षित हैं. किताबों में महापुरुषों को स्थान नहीं मिलता. जनजातीय भाषा के छात्र बिना पढ़े ही मैट्रिक व इंटर की परीक्षा में शामिल होते हैं.

* मैट्रिक में इन भाषाओं की होती है परीक्षा : राज्य के उच्च विद्यालयों में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा की पढ़ाई की व्यवस्था की गयी है. मैट्रिक स्तर पर हो, मुण्डरी, संताली, उरांव, खड़िया, खोरठा, कुरमाली, नागुपरी, पंच परगनिया की परीक्षा होती है. हाइस्कूल स्तर पर इनमें से किसी भी विषय की किताब नहीं है.

– इन विषयों में शिक्षक नहीं

राज्य में खोरठा, कुरमाली, नागपुरी, व पंचपरगनिया विषय के शिक्षक नहीं हैं. इन विषयों में अब तक शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है.

* मुंडारी में दो व हो के पांच शिक्षक :राज्य गठन के बाद से हाइस्कूल में अब तक एक बार जनजातीय भाषा में शिक्षकों की नियुक्ति हुई है. वह भी गिनती के शिक्षक हैं. वर्ष 2010 में चार विषय में शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी. संताली में दस, उरांव में 11, मुंडारी में दो व हो भाषा में पांच शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी.

* क्या कहते हैं विद्यार्थी

– राज्य में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा की स्थिति बदहाल है. स्कूल स्तर से लेकर विवि स्तर तक इसकी पढ़ाई की समुचित व्यवस्था नहीं है.

(सपन चंद्र महतो)

– रांची विवि में नौ क्षेत्रीय व जनजातीय भाषा की पढ़ाई होती है. इनमें से मात्र चार विषय के शिक्षक है. इससे स्थानीय भाषाओं की पढ़ाई ठीक से नहीं होती.

(मनोज कच्छप)

– क्षेत्रीय व जनजातीय भाषा के विद्यार्थियों के लिए बीएड कॉलेज में भी अलग से पढ़ाई की व्यवस्था नहीं है. सभी भाषाओं के लिए मात्र पांच सीटें हैं.

(उषा कुमारी)

– सरकार जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा की पढ़ाई को लेकर गंभीर नहीं है. राज्य में अपनी भाषाओं की पढ़ाई की स्थिति खराब है. विद्यार्थी को कोई सुविधा नहीं मिलती.

(वासुदेव)

* क्या कहती शिक्षा मंत्री

राज्य में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा का जो विकास होना चाहिए था, वह अब तक नहीं हुआ. जब तक अपनी भाषा को संरक्षण नहीं दिया जायेगा, तब तक इसका समुचित विकास नहीं होगा. जो भाषा झारखंड की नहीं है, उन्हें स्थानीय भाषा से अलग करना होगा. राज्य में स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा में शिक्षकों की नियुक्ति होगी. बच्चों को जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा में किताबें उपलब्ध करायी जायेंगी. इसके लिए जल्द आवश्यक कार्रवाई शुरू की जायेगी.

गीताश्री उरांव, शिक्षा मंत्री

* राज्य में अब तक के शिक्षा मंत्री

चंद्रमोहन प्रसाद, पीएन सिंह, प्रदीप यादव, बंधु तिर्की, हेमलाल मुर्मू , वैद्यनाथ राम व गीताश्री उरांव.

* राज्यकीआठमेंसेचारजनजातीयभाषाओंमेंएकभीशिक्षकनहीं

*13वर्षसेनहींहुईजनजातीयभाषाकीकिताबकीछपाई

* बिनापढ़ेहीपरीक्षामेंशामिलहोतेहैंविद्यार्थी

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