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चूके, तो भोगेंगे !

– हरिवंश – पांच चरणों में होनेवाले मतदान का पहला दिन. यह दिन आनेवाले पांच वर्ष का भविष्य तय करेगा. आपका, आपके बच्चों का, आपके परिवार का, आपके समाज का, झारखंड का और देश का. अगर चूके, तो पश्चाताप का मौका भी नहीं. सीधे अराजकता को आमंत्रण. आपको याद है, नौ वर्षों में कितनी सरकारें […]

– हरिवंश –
पांच चरणों में होनेवाले मतदान का पहला दिन. यह दिन आनेवाले पांच वर्ष का भविष्य तय करेगा. आपका, आपके बच्चों का, आपके परिवार का, आपके समाज का, झारखंड का और देश का. अगर चूके, तो पश्चाताप का मौका भी नहीं. सीधे अराजकता को आमंत्रण. आपको याद है, नौ वर्षों में कितनी सरकारें बनीं? कितने मुख्यमंत्री हुए ? छह मुख्यमंत्री हुए.
फिर राष्ट्रपति शासन का दौर. नौ वर्षों में ही दसवें मुख्य सचिव काम पर हैं. दसवें विकास आयुक्त हैं. छठे डीजीपी हैं. महीने-दो- महीने में सचिव बदलते रहे. चार-चार महाधिवक्ता हुए. क्या फिर इसी अस्थिर राजनीति का प्रयोगशाला बनेगा झारखंड ? यह आपके मत से ही तय होगा. इसलिए वोट का महत्व समझिए. वोट के बटन में आपके पांच वर्षों का भविष्य छुपा है. भविष्य बनाना है, तो सावधान होकर, सोच-समझ कर बटन दबाइए.
राज्य में हुए भ्रष्टाचार की गंध, देश-दुनिया में फैल गयी है. आये दिन बंद, अराजकता और हिंसा के बीच जीवन. यह भला झारखंडियों से बेहतर कौन जानता है ? रंगदारी, अपराधियों का भय, ध्वस्त पुलिस प्रशासन, भ्रष्ट सरकारें, यह सब झारखंड ने भोगा है. भोगा हुआ दुख, कहे हुए बयान से गहरा होता है. नक्सलियों की चुनौती-खौफ अलग है. इस चुनौती के बीच अंधेरे में रोशनी दिखाने की भूमिका विधायिका की थी. पर विधायिका में क्या हुआ? यह भी झारखंडवासी जानते हैं.
द्रौपदी का चीरहरण हुआ. कुरू राज दरबार खामोश रह गया. मूकदर्शक. उसी क्षण महाभारत की नींव पड़ गयी. झारखंड के कोने-कोने में अराजकता, भ्रष्टाचार, अशासन फैलता रहा. क्योंकि अच्छे लोग घरों में चुप बैठ गये. यह लोकतंत्र का मूल मर्म है. हजारों-हजार वर्ष की कुरबानी के बाद वोट का यह अधिकार मिला है.
इसलिए वोट दें, हालात बदलें. लोग वोट देने नहीं जाते. ड्राइंग रूम में बैठ कर अच्छे समाज का ख्वाब देखते हैं. दरअसल समाज के पतन के ऐसे लोग जिम्मेदार हैं. घरों से निकलिए. झुंड में निकलिए. एक-एक वोट डालिए. इससे ही झारखंड का भविष्य बेहतर होगा. आपका भी. शायद केनेडी ने कहा था- अच्छे लोग घरों में सिमटते हैं, इसलिए हालात बदतर होता है. झारखंड के लिए यह प्रासंगिक उक्ति है.
भीष्म से बड़ा उदार चरित्र, ढूंढ़े मुश्किल है. द्रोणाचार्य, अप्रतिम हैं. कर्ण, सूर्य प्रतिभा से दीप्त है. पर इनके मौन या मूक सहमति से विनाश की नींव पड़ी. इसलिए घरों से निकलिए. आपका विवेक या अंतरात्मा जो कहे, उस पर चलिए.
चुनाव में बड़े पैमाने पर धन-बल के इस्तेमाल की खबरें हैं. धन-बल अगर चुनाव प्रभावित करेगा, तो लोकतंत्र कमजोर होगा. हिंसा न हो, यह सबका दायित्व है. बूथों पर आपसी झड़प न हो, यह जरूरी है. यह सवाल एक दिन, बनाम पांच वर्ष का है. वोट का एक दिन= पांच वर्ष का भविष्य. इसलिए जाति, धर्म, अपना-पराया, बाहरी-भीतरी के उन्माद से बच कर काम करें. क्योंकि आप-अपना भविष्य गढ़ने जा रहे हैं.
निजी भविष्य बनाने के क्रम में सौदेबाजी नहीं होती, आत्मा की आवाज होती है. भारतीय मनीषियों ने कहा भी है. आत्म द्वीपो भव.
लोकतंत्र के इस महापर्व के अवसर पर हम खुद ही अपने लिए प्रकाश बनें. समाज में रोशनी फैल जायेगी.
मत जरूर दें.
पटमदा गया था. झारखंड आंदोलन के एक पुराने कार्यकर्ता मिले. नाम था बुद्धेश्वर महतो. झारखंड की दुर्दशा की कहानी उन्होंने लोकोक्तियों में सुनायी –
नीधनेआर धन होले दिने देखे तारा
(निर्धन व्यक्ति को धन मिलता है, तो दिन में ही तारे दिखता है)
झारखंड में सत्ता मिलते ही लोग दिन में ही तारे देखने लगे. इसके बाद जो हुआ, वह देश ने देखा. पर बुद्धेश्वर महतो ने एक और लोकोक्ति सुनायी-
गोबर खाले गाछे बाटिले, जल्दी उलटिए जाये.
(गोबर के गड्ढे में अगर पेड़ बढ़ गया, तो वह अपने आप गिर जाता है)
श्री महतो ने कहा, रांची की राजनीतिक धरातल गोबर का गड्ढा हो गया है. वहां जो पेड़ बढ़ते हैं, वो खुद अपने बोझ से गिर जाते हैं. वहीं सुदूर देहात में एक गंवई युवा ने कहा, राजनीति क्या है ? मनी (धनबल). फिर बताया, धनबल आया तो बंदूक और आदमी मिल जाते हैं. इस तरह पॉलिटिक्स = मनी.
मैन और गन (राजनीति = पैसा, लोग और बंदूक). अगर राजनीति का यह बदरंग चेहरा बदलना है, तो यह वोट से ही बदलेगा. यह मान कर चलिए. राजनीति ही चीजों को बदलेगी. अच्छी राजनीति होगी, तो अच्छा माहौल होगा. बुरी राजनीति होगी, तो बुरा माहौल. अगर अच्छी राजनीति चाहते हैं, तो घरों में मत बैठिए. वोट डालिए. युवा, बेहतर भविष्य और नौकरी चाहते हैं, तो उन्हें राजनीति में सक्रिय होना होगा. कम से कम मतदान के दिन तो जरूर.
दिनांक : 25-11-09

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