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पुलिस की कमजोरी का फायदा मिला उग्रवादी संगठनों को

रांची: गुमला जिला में 12 प्रखंड और 13 थाना हैं. जिला में सक्रिय नक्सली-उग्रवादी संगठनों की संख्या भी लगभग बराबर (10) है. पुलिस मुख्यालय के अधिकारी अब मानने लगे हैं कि वहां की स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गयी है. लेकिन यह स्थिति एक दिन में नहीं बनी. गुमला में पिछले कई वर्षो से पुलिसिंग […]

रांची: गुमला जिला में 12 प्रखंड और 13 थाना हैं. जिला में सक्रिय नक्सली-उग्रवादी संगठनों की संख्या भी लगभग बराबर (10) है. पुलिस मुख्यालय के अधिकारी अब मानने लगे हैं कि वहां की स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गयी है.

लेकिन यह स्थिति एक दिन में नहीं बनी. गुमला में पिछले कई वर्षो से पुलिसिंग सिमटती गयी और नक्सली-उग्रवादी संगठनों की संख्या बढ़ती चली गयी. कुछ संगठनों को पुलिस ने भी खड़ा किया और उन्हीं के भरोसे जिला को छोड़ दिया गया. ऐसे संगठनों का काम वैसे संगठनों का मुकाबला करना है, जो पुलिस के खिलाफ काम करते हैं और पुलिस मूक दर्शक बनी रही.

गुमला जिला में हाल में जितनी भी घटनाएं हुई हैं, उसमें अधिकांश नक्सली और उग्रवादी संगठन के बीच हुईं या फिर माओवादियों ने पुलिस पर हमला किया. पुलिस से मुठभेड़ या पुलिस की अन्य कार्रवाई की घटनाएं न के बराबर हुई हैं. वर्ष 2008 में शांति सेना के पांच सदस्यों की हत्या के बाद उस संगठन का सफाया हो गया था.

इधर, तीन नवंबर को ग्राम रक्षा दल के तीन सदस्यों समेत सात लोगों की हत्या कर दी गयी. ग्राम रक्षा दल के मारे गये तीन में से दो सदस्य मदन साहू और करमपाल साहू सहोदर भाई थे और पुलिस के लिए काम करते थे. दोनों पुलिस की ओर से नियुक्त एसपीओ (स्पेशल पुलिस अफसर) थे. पुलिस जिस संगठन को खड़ा करती है उसके सदस्यों को न तो सुरक्षा दे पाती है और न ही आर्थिक मदद. जिस कारण कुछ ही दिनों में पुलिस द्वारा बनाये गये संगठन के लोग या तो मारे जाते हैं या संगठन दूसरे संगठनों की तरह लेवी वसूली में जुट जाता है.

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