!!डॉ कुमार वीरेंद्र!!
लेखक नीलांबर-पीतांबरविश्वविद्यालय में पत्रकारिता एवंजनसंचार विभाग के इंचार्ज
मैं समाचार पत्रों को युगीन चेतना का दस्तावेज मानता हूं, इसलिए प्रतिदिन सबसे पहले समाचार पत्र पढ़ता हूं. जिन समाचार पत्रों को पढ़ने में ज्यादासमय लगता है, उनमें सबसे प्रमुख‘प्रभात खबर’ है. इसमें समाचार सेज्यादा विचार महत्वपूर्ण होते हैं. विभिन्नमुद्दों पर आधिकारिक व्यक्तियों द्वारालिखे गये विचारपरक आलेखों सेविभिन्न विमर्शो के आयाम खुलते हैं.कभी-कभी तो ये विमर्शमूलक बहसेंकई-कई दिनों तक स्थानीय, राज्य औरराष्ट्रीय स्तर पर छायी रहती हैं. ऐसेअवसरों पर ‘प्रभात खबर’ अखबारनहीं, आंदोलन की शक्ल अख्तियारकिये होता है. हालिया वर्षो मेंबाजारवाद के बढ़ते प्रभाव के कारणलोगों की अभिरुचि में गिरावट आयी है.
विभिन्न मंचों से ज्यादा प्रॉफिट (लाभ)कमाने की दवा बतायी जा रही है. ऐसेविकट समय में लोगों की अभिरुचि कोउत्पन्न करना एक चुनौती है.हमें लगता है कि इस चुनौती सेनिबटने के लिए ही ‘प्रभात खबर’‘कांटेंट’ और ‘फार्म’ में समयानुकूलपरिवर्तन और प्रयोग करता रहा है.चूंकि अखबार का अंकेक्षक(आडिटर) पाठक होता है. इसलिएपाठक की अभिरुचि का ख्याल रखनाभी अखबार की ही जिम्मेवारी होती है.
हाल के वर्षो में ‘प्रभात खबर’ ने इनदृष्टियों से कई उल्लेखनीय परिवर्तनकिये हैं. मसलन, प्रथम पृष्ठ के शीर्ष परदायीं ओर तेल-फुलेल, नायक-नायिकाओं की फोटो अब नहीं छपती.अब यहां तिथिवार जन्म तिथि, पुण्यतिथि या स्मरणीय दिवसों पर सचित्रसंक्षिप्त टिप्पणियां छपती हैं. जो रोचक,ज्ञानवर्धक और स्मरणीय होती हैं.प्रथम पृष्ठ की ‘बॉटम स्टोरी’ ने भीविभिन्न समसामयिक मुद्दों पर सशक्तहस्तक्षेप किया है. हाल की कुछ ‘बॉटमस्टोरी’ को संदर्भ के तौर पर इस्तेमालकरनेवाले बौद्धिकों की संख्या बड़ी है.
मैं साहित्य का आदमी हूं, इसलिए पत्र-पत्रिकाओं के साहित्यिक पृष्ठों परआलोचनात्मक निगाह रखता हूं. मेरीनिगाह में ‘प्रभात खबर’ में साहित्य केलिए ज्यादा स्पेस है. महाकवि निरालाकहते थे, ‘जनता साहित्य के साथआती नहीं है, लायी जाती है.’ लायीजाने की तरकीबें साहित्यकारों औरपत्रकारों को मालूम रहनी चाहिए.लगता है ऐसी तरकीबें ‘प्रभात खबर’के पत्रकारों को मालूम है, तभी तो हमारेजैसे पाठकों को हर हफ्ते इसकेसाहित्यक पृष्ठ का इंतजार रहता है. पत्रकारिता के सामाजिकसरोकारों के मद्देनजर जिन अखबारोंपर नजरें ठहर जाती हैं, उनमें से एक‘प्रभात खबर’ भी है. विभिन्नसामाजिक समस्याओं पर शासन-प्रशासन का ध्यान खींच कर ‘प्रभातखबर’ सामाजिक तब्दीली में सहायकरहा है.
एक दो खबरें जो जेहन में रहगयी है, उनका जिक्र करना चाहूंगा.पलामू में कम उम्र की महिलाओं कीबच्चेदानी निकालने वाली घटना कोजिस प्रमुखता से ‘प्रभात खबर’ नेउठाया था, मीडिया के समाज सरोकारीहोने का परिचायक है. निर्मल बाबा कोबेनकाब करने में ‘प्रभात खबर’नेनिर्भीक और जन भागीदार पत्रकारिताका नमूना पेश किया.इधर नये मीडिये या सोशलमीडिया का चलन बढ़ा है. ऐसे में प्रिंटमीडिया की चुनौतियां बढ़ी हैं. ऐसे में‘प्रभात खबर’को भी पूर्ववत् तटस्थताऔर विश्वसनीयता के प्रतिमानों पर खराउतरना होगा.
जिन विमर्शो कीसैद्धांतिकी पर मानविकी और समाजविज्ञान के अध्येता चर्चा-परिचर्चा औरअध्ययन-अध्यापन करते हैं, उनकेव्यावहारिक पहलुओं पर प्रभात खबरविशेष फोकस करता है. मसलन स्त्रीविमर्श की दृष्टि से ‘आधी आबादी’स्तंभ प्रतिदिन ध्यान खींचता है.समय-समय पर प्रकाशित ‘शहरनिर्देशिका’ (मसलन- मैं हूं रांची, मैं हूंपलामू, मैं हूं हजारीबाग आदि),दीपावली विशेषांक, पर्यटन डायरी,गणतंत्र दिवस परिशिष्ट तथा स्वतंत्रतादिवस परिशिष्ट आदि में प्रकाशितसामग्री हमेशा काम आती है, कम सेकम साल भर तो मेज पर रहती है.
अंत में यह कहना चाहूंगा किअखबार का पूरा सौंदर्य पाठकों केभरोसे है, इसलिए शब्दों और भाषा केप्रयोग में पत्रकारों को सचेत रहनाचाहिए. ‘प्रभात खबर’ से इससचेतनता की मांग ज्यादा है. क्योंकिसैकड़ों लोग इस अखबार को हिंदीऔर भाषा संप्रेषण सीखने के लिए पढ़तेहैं. ‘प्रभात खबर’ के पाठक की हैसियतसे यह मांग भी करना चाहूंगा कि कृषि,स्वास्थ्य, शिक्षा, कला-संस्कृति आदिके लिए और अधिक स्पेस रचा जाये.