रांची: डॉ एसके चौधरी पर स्वास्थ्य विभाग मेहरबान है. डॉ चौधरी को प्रदेश के दो महत्वपूर्ण अस्पतालों की जिम्मेवारी सौंपी गयी है. डॉ चौधरी रिम्स में प्रभारी अधीक्षक के साथ-साथ निदेशक भी बन गये हैं. इसके साथ ही वह जमशेदपुर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज के प्रभारी अधीक्षक भी हैं. रिम्स में रहते हुए वह एमजीएम की स्वास्थ्य सेवाओं का यहीं से मॉनिटरिंग करते हैं. पिछले कुछ माह पहले रिम्स के अधीक्षक पद से हटा कर इन्हें एमजीएम भेजा गया था, लेकिन कुछ सप्ताह बाद इन्हें रिम्स का प्रभारी बना दिया गया.
अब बुधवार को प्रभारी निदेशक की जिम्मेवारी भी दे दी गयी है. जानकारों की मानें, तो रिम्स नियमावली के अनुसार निदेशक पद पर शिक्षण कार्यो का अनुभव जरूरी है, लेकिन मानकों को ताक पर रख कर स्वास्थ्य विभाग ने डॉ चौधरी को जिम्मेवारी सौंपी है. एक वर्ष में तीसरी बार डॉ चौधरी को प्रभार दिया गया है.
23 दिसंबर को पूरा हुआ था कार्यकाल
रिम्स निदेशक के रूप में डॉ तुलसी महतो ने 23 दिसंबर 2010 में पद भार संभाला था. निदेशक के पद पर उनका कार्यकाल 23 दिसंबर 2013 को पूरा हुआ था. इसके दो दिन बाद स्वास्थ्य विभाग ने उनको अगले आदेश तक निदेशक के पद पर रहने की अधिसूचना जारी की थी. अब रिम्स के पूर्व निदेशक डॉ तुलसी महतो एफएमटी विभाग में सेवा देंगे. उन्होंने बताया कि वह एफएमटी विभाग से आये है, इसलिए वह गुरुवार से वहीं अपनी सेवा देंगे. सूत्रों की माने तो निदेशक को एफएमटी विभाग में योगदान देने के लिए विभागीय आदेश की जरूरत होगी.
हुआ ड्रामा, नहीं दिया पूर्व निदेशक ने प्रभार
बुधवार को डॉ चौधरी निदेशक कार्यालय में प्रभार लेने पहुंचे, तो गुटबाजी खुल सामने आयी. पूर्व निदेशक डॉ तुलसी महतो आदेश की फैक्स कॉपी लेकर कार्यालय से निकल गये. रिम्स की गाड़ी छोड़ कर वह दूसरी की गाड़ी से चले गये. वह डॉ चौधरी को प्रभार नहीं देना चाहते थे. डॉ चौधरी पद भार लेने के लिए निदेशक कार्यालय में काफी देर तक बैठे रहे, लेकिन डॉ महतो नहीं आये. फोन पर संपर्क करने से पता चला कि उनका मोबाइल बंद है. इसके बाद डॉ एसके चौधरी स्वास्थ्य विभाग चले गये. वहां स्वास्थ्य सचिव से काउंटर साइन करा लिया एवं शाम को निदेशक कार्यालय में आधिकारिक रूप से योगदान दे दिया.
विनोद सिंह ने जतायी आपत्ति
इधर माले विधायक विनोद सिंह ने कहा है कि रिम्स और एमजीएम राज्य के दो महत्वपूर्ण अस्पताल हैं. इसको प्रभार के भरोसे नहीं छोड़ जाना चाहिए. सरकार को लोगों के स्वास्थ्य जैसे बुनियादी सुविधाओं से लेना-देना नहीं है. मंत्री व्यक्तिगत हित में काम कर रहे हैं. सरकार के लोग अपने चहेते लोगों को बड़े पद पर बिठाने का काम कर रहे हैं. राज्य में डीएम से लेकर थानेदार में यही व्यवस्था चल रही है. राज्य के अधिकारियों के चयन में सरकार में बैठे लोग अपना हित साधते हैं. डॉ चौधरी को एक साथ तीन-तीन प्रभार दिया जाना तर्क संगत नहीं है. ऐसे में राज्य में व्यवस्था बहाल नहीं हो सकती है.
ये है रिम्स नियमावली
रिम्स नियमावली कंडिका नौ उप-कंडिका पांच निदेशक के अवकाश पर जाने, त्याग पत्र देने, सेवानिवृत्त होने या किसी अन्य कारण से पद रिक्त होने की स्थिति में नये निदेशक की नियुक्ति होने तक संस्थान का अध्यक्ष निदेशक के कार्यो की देख भाल के लिए वरिष्टतम प्राध्यापक को छह महीनों से अधिक अवधि के लिए नियुक्ति कर सकता है. पुन: यदि ऐसी नियुक्ति की अवधि छह महीने से अधिक होती है तो ऐसी नियुक्ति हेतु राज्य सरकार का पूर्वानमोदन प्राप्त करना जरूरी होगा.
रिम्स में इनका होना है टेंडर
रिम्स में पारा मेडिकल कॉलेज का टेंडर
पारा मेडिकल कॉलेज का ब्वायज और गल्र्स हॉस्टल
पारा मेडिकल कॉलेज की लाइब्रेरी
एमबीबीएस के 150 सीट के हिसाब से हॉस्टल
डॉ तुलसी महतो के मामले में उम्र की बात है. निदेशक का समय भी खत्म हो गया था, लेकिन अगले आदेश तक रखा गया है. डॉ चौधरी को प्रभार दिया गया है.
राजेंद्र प्रसाद सिंह, स्वास्थ्य मंत्री