रांची: किताब-कॉपी की बिक्री से स्कूलों को बतौर कमीशन मोटी रकम मिलती है. राजधानी में एक शिक्षा सत्र में किताब-कॉपी का लगभग 40 से 50 करोड़ रुपये का करोबार होता है. स्कूलों को इस मद में 20 से 30 फीसदी कमीशन मिलता है. किताब बिक्री में सेटिंग का खेल हर वर्ष अगस्त-सितंबर में शुरू हो जाता है. इसके लिए प्रकाशकों के एजेंट पहले राजधानी की किताब दुकानों से संपर्क करते हैं. इन दुकानों के माध्यम से वे स्कूलों तक पहुंचते हैं. स्कूल की स्वीकृति के बाद प्रकाशक व दुकानदार के बीच सेटिंग होती है. इनकी सेटिंग के कारण किताब खरीदने पर विद्यार्थियों या अभिभावकों को किताब खरीदने पर एक पैसे की छूट नहीं मिलती.
किताब-कॉपी की कीमत पर किसी का नियंत्रण नहीं है. स्कूलों व दुकानदारों की मिलीभगत से इनका कारोबार फल-फूल रहा है. सौ रुपये की किताब पर 20 से 40 रुपये तक का कमीशन होता है. कुछ किताबों में तो लगभग 50 फीसदी का लाभ लिया जाता है. प्रकाशक की ओर से स्कूलों व दुकानदारों को प्रकाशित मूल्य से 20 से 50 फीसदी कम दर पर किताबें उपलब्ध करायी जाती हैं. छोटे प्रकाशक भी 40 फीसदी तक छूट देते हैं.
राजधानी में मान्यता प्राप्त व गैर मान्यता प्राप्त लगभग 100 सीबीएसइ व आइसीएसइ स्कूल हैं. एक स्कूल में दो हजार से पांच हजार तक बच्चे पढ़ते हैं. एक स्कूल में अगर औसत दो हजार बच्चे भी पढ़ते है, तो राजधानी में निजी स्कूलों में लगभग दो लाख बच्चे पढ़ते हैं. कक्षा नर्सरी से आठ तक के बच्चों की किताब के लिए 1500 से 3600 रुपये तक लिये जाते हैं. एक बच्चे की औसत किताब व कॉपी की कीमत दो हजार रुपये भी मान ली जाय तो दो लाख बच्चे की किताबों की कीमत 40 करोड़ रुपये होगी.
बोर्ड एक, किताबें अलग-अलग
एक ही बोर्ड से मान्यता प्राप्त स्कूलों में एक समान कक्षा के लिए-अलग-अलग किताबें पढ़ाई जाती हैं. स्कूल अपने स्तर से तय करते हैं कि कौन सी किताब किस कक्षा में चलेगी. एक बोर्ड की एक समान कक्षा की किताबों की कीमत में भी अंतर होता है.
प्रति वर्ष बदल देते किताब
अधिकांश स्कूल प्रति वर्ष किताबें बदल देते हैं. अगर पूरी किताब नहीं भी बदली तो कुछ अध्याय में बदलाव कर देते हैं. जिससे बच्चे पुरानी किताब का उपयोग नहीं कर सके. एक अभिभावक के दो बच्चे अगर आगे-पीछे कक्षाओं में एक ही स्कूल में पढ़ते हैं, तो भी उन्हें किताबें खरीदनी पड़ती है.
परची पर करोड़ों का कारोबार
किताब के करोड़ों के करोबार का कोई हिसाब-किताब नहीं होता. अधिकांश दुकानदार किताब क्रय का रसीद नहीं देते हैं. रसीद मांगने पर तरह-तरह का बहाना करते हैं. कुछ दुकानदार तो रसीद मांगने पर किताब भी नहीं देने की बात कहते हैं.
एनसीइआरटी के अनुरूप किताबें नहीं
स्कूल सीबीएसइ पाठयक्रम के अनुरूप पठन-पाठन की बात करते हैं, पर एनसीइआरटी की किताब के बदले निजी प्रकाशक की किताबों से बच्चों को पढ़ाते हैं. कक्षा एक में दर्जन भर से अधिक किताबें बच्चों को दी जाती हैं, जबकि एनसीइआरटी के अनुरूप कक्षा एक में बच्चों को तीन से चार किताबें ही पढ़ानी है.