महुआ : समय के साथ बदल रही दुनिया को देख लोग महीनों का काम पलभर में करने लगे हैं, जिससे समय के बचाव के साथ मेहनत भी कम करनी पड़ती है, लेकिन कला के क्षेत्र में इस आधुनिक युग में भी लोग हाथों से बनायी जा रही प्रतिमा ही पसंद करते हैं. जिसको लेकर आज के नये प्रवेश में ही गांव देहातों में यह कलायें जीवंत बनी हुई है, लेकिन कलाकारों को अपनी काम की उचित मजदूरी नहीं मिलने के कारण उनके समक्ष भुखमरी की स्थिति बनी रहती है. गौरतलब हो की जिले के महुआ प्रखंड अंतर्गत महुआ बाजार के पातेपुर रोड निवासी बांके लाल बिहारी के पूर्वज वर्षों से शिल्प कला की क्षेत्र में एक से बढ़ कर एक विभिन्न देवी देवताओं के अलावे महापुरुषों के साथ अन्य प्रकार की प्रतिमा का निर्माण अपने हाथों से करते आ रहे है.
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सहायता नहीं मिलने से मूर्तिकार परेशान
महुआ : समय के साथ बदल रही दुनिया को देख लोग महीनों का काम पलभर में करने लगे हैं, जिससे समय के बचाव के साथ मेहनत भी कम करनी पड़ती है, लेकिन कला के क्षेत्र में इस आधुनिक युग में भी लोग हाथों से बनायी जा रही प्रतिमा ही पसंद करते हैं. जिसको लेकर आज […]
बिहारी परिवार द्वारा बनायी जा रही प्रतिमाएं को देख लोग काफी आकर्षित होते हैं, लेकिन वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी कलाओं को जीवंत रखने वाला परिवार आज भी जहां भुखमरी के कगार पर है, लेकिन उनके हाथों द्वारा बनायी जा रही प्रतिमाएं इस युग में भी काफी लुभावन लग रही हैं. जिस कारण लोग इन मूर्तियों को बेहद पसंद कर रहे हैं. खर्च के मुताबिक कीमत नहीं मिलने पर शिल्पकार परेशान तो होते है लेकिन अपनी कलाओं की जादू की हो रही चर्चा से ही संतुष्ट हो जा रहे हैं. श्री बिहारी के छोटे पुत्र युवा शिल्पकार सत्यप्रकाश उर्फ जयप्रकाश बिहारी ने बताया कि पहले दादा जी फिर पिता जी ने एक से बढ़ कर एक मूर्ति बना वर्षों क्षेत्र में नाम कमाये, वही बड़े भाई राकेश लाल बिहारी के साथ मैं खुद को एक से बढ़ कर एक प्रतिमा का
निर्माण कर अपनी कलाओं का जादू बिखेर चुका हूं, फिर भी राज्य या केंद्र सरकार द्वारा किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं दी गयी है.
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