वैशाली गढ़ : वैशाली महोत्सव जिले की सांस्कृतिक विरासत, वैभवशाली परंपरा एवं विश्व के प्रथम उद्घोषित गणतंत्र याद करने का दिन है. यहां पर्यटकों से लेकर आम लोगों की उमड़ती भीड़ महोत्सव और वैशाली के महत्व की दास्तां कह रही हैं. जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर भगवान वर्द्धमान महावीर के जन्मोत्सव पर आयोजित तीनदिवसीय आयोजन में जिला प्रशासन ने पूरी तैयारी की थी. पूरे वैशाली परिक्षेत्र को रंगीन बल्बों से सजाया गया था.
महोत्सव में देर रात्रि तक चले सांस्कृतिक कार्यक्रम का लोगों खूब आनंद उठाया. चैता गायन के अलावा राष्ट्रीय स्तर की सांस्कृतिक प्रस्तुति ने महोत्सव को यादगार बना दिया. पंडित हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी की धुन पर लोग मुग्ध थे. स्थानीय कलाकारों द्वारा चैता गायन पर उपस्थित दर्शक झूमते रहे. पद्मश्री देवयानी द्वारा प्रस्तुत भरत नाट्यम बरबस ही राज नर्तकी अम्रपाली की याद करा रही थी. ओड़िशा के डांस ग्रुप द्वारा प्रस्तुत सामूहिक नृत्य ने कार्यक्रम चार चांद लगा दिया.
आम्रपाली की जीवनयात्रा पर हैं कई साहित्य : आचार्य चतुरसेन की रचना ‘वैशाली की नगर वधु’, रामवृक्ष बेनीपुरी का नाटक ‘आम्रपाली’ लगभग सभी रचनाओं में श्रेष्ठ, इतिहास सम्मत और प्रमाणिक माने गये हैं. आम्रपाली के नाम से फिल्म भी बन चुकी है. इसमें ड्रीम गर्ल हेमामालिनी ने राजनर्तकी आम्रपाली का किरदार निभाया है.
डाॅ जगदीश्वर पांडेय ने चीनी यात्री के यात्रा वृतांत में अभिषेक पुष्करणी से तीन-चार मील उत्तर पूर्व स्थित होना बताया गया है. मेले में घूम रहे लोग हर किसी से यहां की जानकारी ले रहे हैं, पर सही जानकारी नहीं मिल रही है. हर कोई पढ़ी और सुनी बातों का प्रमाण खोज रहे थे. यहां के उच्च विद्यालय का नाम महावीर के नाम पर है. लेकिन, आम्रपाली आखिर कहां गयी. आम्रपाली का प्रतीक हर कोई जानना चाह रह है.