हाजीपुर : इस कठिन समय में हिंदी रंगमंच के लिए नाटक उपलब्ध कराना लेखकों और रंगकर्मियों की साझी जिम्मेवारी बनती है. हिंदी भाषी समाज में नाटक जनता की जीवनचर्या का हिस्सा बनें, इसके लिए ईमानदारी से प्रयास करने की जरूरत है. नौ दिवसीय नाट्योत्सव नटलीला 2015 के आखिरी दिन आयोजित रंग सेमिनार में यह बातें कही गयीं.
नाट्योत्सव के समापन पर स्थानीय वैशाली कला मंच के सभाकक्ष में हिंदी रंगमंच में नाटकों का अभाव, कारण और निवारण विषय पर सेमिनार का आयोजन हुआ. अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार एवं रंग समीक्षक उमाशंकर उपेक्षित ने की. रंगकर्मी जीवेश कुमार सिंह ने संचालन किया.
मुखिया वक्ता एवं वरिष्ठ रंगकर्मी मनोरंजन वर्मा ने कहा कि छोटे शहरों और कसबों की सांस्कृतिक चेतना अभी बची हुई है, जिससे नाटक का भविष्य उज्ज्वल दिखता है. विषय प्रवेश कराते हुए विजय कुमार विनीत ने कहा कि हम रंगकर्मियों के बीच से ही नाटक लेखक भी तैयार करने होंगे. तभी नाटकों का अभाव दूर होगा
. पटना के रंगकर्मी राजेश कुमार, निर्माण रंगमंच के सचिव क्षितिज प्रकाश, डिवाइन के सचिव डाॅ शैलेंद्र, आजाद हुसैन भोलानाथ ठाकुर ने अपने विचार प्रकट करते हुए हिंदी रंगमंच की चुनौतियों पर प्रकाश डाला. वक्ताओं ने कहा कि आज के समाज में इनसानी जीवन और उसके हालात को गहराई से समझने और उनकी विडंबनाओं को प्रस्तुत करने की जरूरत है
नाटक के लिए विषयों का अभाव नहीं है, कर्मी हमारी प्रतिबद्धता में हैं. हमें थियेटर कल्चर विकसित करने की दिशा में कठिन परिश्रम करने होंगे. इसके लिए हमें नाटक को जनता से जोड़ना होगा.
इस अवसर पर वरिष्ठ कलाकार शिलानाथ सिंह, किसलय किशोर, रंधीर कुमार प्रभाकर, रामजन्म राजन, नसीम अहमद, युसुफ अली, जगदीश पासवान, उमेश कुमार निराला, रविशंकर पासवान, अमित कुमार जिमी, उमेश तिवारी, गुलशन कुमार, प्रफुल्ल कुमार, कुमारी पुष्पम, पलक राय, बबलू, पारस आदि रंगकर्मी उपस्थित थे.