भगवान व महात्मा प्राणियों का अहित नहीं करता : शिवानंद जी महाराज फोटो – 1,2व्यापार संघ स्थित ठाकुरबाड़ी परिसर में श्रीमद भागवत कथा का तीसरा दिन कैप्सन – कथा वाचन करते स्वामी जी, उपस्थित भक्तसुपौल. स्थानीय व्यापार संघ स्थित ठाकुरबाड़ी परिसर में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के तीसरे दिन मंगलवार को संकीर्तन के साथ प्रवचन संपन्न हुआ. कथा वाचक स्वामी शिवानंद जी महाराज ने ईश्वर भक्ति के साथ प्रवचन प्रारंभ किया. संगीतमय प्रवचन के दौरान भक्त जन झूमते दिखे. स्वामी जी ने कहा कि ‘ परं दृष्टष्ट्वा निवर्तते। काम क्रोध वियुक्तानाम ।।’ बताया कि निषिद्ध क्रिया कामना से होती है. ज्ञान होने पर कामना का सर्वथा नाश हो जाता है. कहा कि ज्ञानी द्वारा निषिद्ध क्रिया होना संभव ही नहीं है. लेकिन मन के अनुकूल न होने पर दूसरे को ज्ञानी की कोई क्रिया निषिद्ध दिखायी पड़ सकती है. इस कारण है कि दूसरे की कोई क्रिया हमारे मन के प्रतिकूल होगी, तो हमें खराब लगेगा.भगवान व महात्मा अहित नहीं करता भगवान और महात्मा प्राणियों का अहित नहीं करता. शिवानंद जी महाराज ने कहा कि ‘ हेतु रहित जग जुग उपकारी- तुम तुम्हार सेवक असुरारी’ नारद जी ने नल कूबर व मणिग्रीव को वृक्ष बनने का शाप दिया. लेकिन वह शाप भी भगवान को प्राप्ति करने वाला हो गया. कहा कि जिनकी बुद्धि समदर्शिनी है और हृदय पूर्ण रुपेण समर्पित है. उन साधु पुरुषों के दर्शन मात्र से बंधन होना ठीक वैसा ही है, जैसे सूर्योदय होने पर मनुष्य के नेत्रों के सामने अंधकार का होना. कहा कि जीवन्मुक्ति, तत्वज्ञ महा पुरुष पर लोक संग्रह की यानी प्राणी मात्र के हित की जिम्मेवारी नहीं रहती. उनका खुद का किंचिन्मात्र की प्रयोजन नहीं रहता. उन पर किसी का भी ऋण नहीं रहता. उनके लिए कुछ भी करना, जानना और पाना शेष नहीं रहता. पर साधना की अवस्था में प्राणी मात्र के हित का स्वाभाव होने से सिद्धावस्था के समय भी उनका वही स्वभाव बना रहता है. वे लोक संग्रह करते नहीं प्रत्युत उनके द्वारा लोक संग्रह हो जाता है. जीवन्मुक्त महापुरुष को शारीरिक पीड़ा का ज्ञान होता है. लेकिन उन्हें दुख नहीं होता. जीवन्मुक्ति के हैं तीन कारण स्वामी जी ने जीवन्मुक्ति का तीन कारण गिनाया. उन्होंने पहला कारण प्रारब्ध से प्राप्त परिस्थिति अनुरूप, दूसरा कारण स्वभाव के अनुसार और तीसरा सामने आये हुए प्राणियों या समुदाय की भावना के रूपों को बताया. कहा कि जीवन्मुक्त होने पर चेतन सर्वव्यापी होता है पर प्राण सर्वव्यापी नहीं होते. चेतन शरीर से निरपेक्ष रहता है. लेकिन शरीर से रहित नहीं होता. बताया कि यथा योग्य व्यवहार होने पर भी जीवन्मुक्त महापुरुष की असंगता ज्यो की त्यो रहती है. उनके द्वारा होने वाली चेष्टाए राग- द्वेष रहित होती है. कहा कि शरीर से ज्ञान पूर्वक संबंध होता है, अज्ञानता के साथ नहीं. साधनावस्था से ही शरीर का संबंध रहा है. इस कारण उन्हें शरीर की पीड़ा का तो ज्ञान होता है. पर उसका असर नहीं पड़ता. यानी दुख रूप विकार नहीं होता. स्वामी जी ने बताया कि बचपन में कांच के टुकड़ों का भी असर पड़ता था. वे बड़े अच्छे दीखते थे. लेकिन अब हमें कांच के टुकड़ों का ज्ञान हे तो उसका असर नहीं पड़ता.पीड़ा के ज्ञान बिना जीवन्मुक्ति सिद्ध नही स्वामी जी ने बताया कि शरीर के रहते जीवन मुक्ति का तात्पर्य है कि शरीर का पीड़ा आदि का असर (सुख- दुख) नहीं होता. बताया कि मुक्ति सुख- दुख की होती है. सुख- दुख विकार है. पर ज्ञान विकार नहीं है. ज्ञान हो पर विकार ना हो यह महत्वपूर्ण तथ्य है. उन्होंने यह भी बताया कि ज्ञान का होना विशेष महत्व नहीं रखता. क्योंकि ज्ञान तो मूर्च्छित प्राणियों को भी नहीं होता. जो बद्ध यानी साधारण मनुष्य है उसकी वृति यदि दूसरी जगह लगी हो तो उसको भी पीड़ा का ज्ञान नहीं होता. उदाहरण स्वरूप उन्होेने बताया कि सती होने वाली नारी को भी पीड़ा का ज्ञान नहीं होता. साथ ही अत्यंत वीर योद्धा को भी युद्ध की पीड़ा का ज्ञान नहीं होता. बताया कि जीवन मुक्त महा पुरुषों की क्रियाएं अहंकार रहित होता है. अहंकार युक्त कर्म कभी नहीं हो सकता.पहुंच रहे हैं सैकड़ों भक्त व्यवस्थापक मोहन प्रसाद चौधरी ने बताया कि आयोजन स्थल पर प्रति दिन दूर -दराज के क्षेत्रों से सैकड़ों भक्त पहुंच रहे हैं. श्री चौधरी ने बताया कि राधाकृष्ण ठाकुरबाड़ी के पुजारी सहित कमेटी द्वारा पूर्ण सहयोग किया जा रहा है.
भगवान व महात्मा प्राणियों का अहित नहीं करता : शिवानंद जी महाराज
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