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हौसले के आगे नि:शक्तता नहीं आयी आड़े
सुपौल: कवि मन्मनाथ गुप्त की पंक्तियां ‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के, पिंजर बद्ध ना रह पायेंगे..’ को कोसी की बेटियां अक्षरश: साबित कर रही हैं. मांग में सिंदूर सजा साइकिल पर सवार होकर स्कूल की दूरियां नापती बेटियां गांवों की पहचान बन चुकी हैं. शिक्षा की ललक के सामने नि: शक्तता भी बौना साबित हो […]
सुपौल: कवि मन्मनाथ गुप्त की पंक्तियां ‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के, पिंजर बद्ध ना रह पायेंगे..’ को कोसी की बेटियां अक्षरश: साबित कर रही हैं. मांग में सिंदूर सजा साइकिल पर सवार होकर स्कूल की दूरियां नापती बेटियां गांवों की पहचान बन चुकी हैं. शिक्षा की ललक के सामने नि: शक्तता भी बौना साबित हो रही है. कुछ ऐसी ही बेटियां मैट्रिक परीक्षा में हौसले की उड़ान भर रही हैं.
नाम को सार्थक कर रहीं प्रगति : जिला मुख्यालय स्थित बबुजन विशेश्वर बालिका उच्च विद्यालय परीक्षा केंद्र पर गणित के सवालों को हल करने में मशगूल वह हंसमुख स्वभाव की प्रगति कहीं से भी नहीं लगती हैं कि वह जन्म से मूक-बधिर हैं. प्रगति के इस सफर में उनके पिता पिपरा निवासी शिक्षक विमल कुमार मेहता ने हमेशा उसकी हौसला अफजाई की. महत्वपूर्ण यह है कि प्रगति ने स्कूल में नियमित रूप से पढ़ाई की है और बचपन से ही उनके पिता उनके लिए शिक्षक की भूमिका भी निभाते रहे हैं. परीक्षा समाप्त होने के बाद संतुष्ट दिख रही प्रगति ने हाव-भाव से जो कुछ कहा उसका मतलब था ‘ परीक्षा अच्छी रही’.
नि:शक्तता और गरीबी से जंग : पिपरा के सत्यदेव हाइस्कूल की छात्र हीना परवीन नि:शक्तता और गरीबी दोनों मोरचे पर एक साथ जंग लड़ रही हैं. हीना शारीरिक रूप से पूरी तरह नि:शक्त हैं. बमुश्किल चल पाती हैं. फिर भी बिना किसी मदद के परीक्षा केंद्र तक पहुंचती हैं. हीना की मुश्किलें इतनी हैं कि आम आदमी जीने की उम्मीद भी छोड़ दे. वह तीन भाई और तीन बहन हैं. दो भाई और एक बहन शारीरिक रूप से नि: शक्त हैं, लेकिन पढ़ाई कर रहे हैं. बच्चों को शिक्षा देने का जज्बा कुछ इस तरह है कि पिता मो इरफान खान दिल्ली में रह कर रिक्शा चलाते हैं और हीना की अम्मा नि: शक्त बच्चों के साथ घर की गृहस्थी चला रही हैं.
गृहस्थी-पढ़ाई की बागडोर एक साथ : परीक्षा केंद्रों पर बड़ी संख्या में शादी-शुदा छात्रएं शामिल हो रही हैं. बबुजन विशेश्वर बालिका उच्च विद्यालय परीक्षा केंद्र पर निर्मली प्रखंड के कटैया की रीता परीक्षा दे रही हैं. रीता की शादी गत वर्ष पास के ही जोल्हनियां गांव में हुई है. जब भी स्कूल में छुट्टियां होती थीं, रीता पत्नी धर्म का निर्वाह करने ससुराल चली जाती थीं. जाहिर है रीता एक साथ गृहस्थी और पढ़ाई की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रही हैं. सकारात्मक यह है कि ससुराल पक्ष से भी पढ़ाई के मामले में रीता को सहयोग मिल रहा है, लेकिन इस उजाले के बीच एक स्याह पक्ष यह भी है कि कोसी में आज भी बेटियां खेलने और पढ़ने की उम्र में ससुराल जाने के लिए मजबूर हैं.
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