- दूध, गुटखे व बड़ी कंपनियों द्वारा प्लास्टिक पैकिंग का अब भी हो रहा इस्तेमाल
- पर्यावरण के लिए बढ़ रहा खतरा
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शहर में उपयोग हो रहा कपड़े के थैले ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी प्लास्टिक जारी
दूध, गुटखे व बड़ी कंपनियों द्वारा प्लास्टिक पैकिंग का अब भी हो रहा इस्तेमाल पर्यावरण के लिए बढ़ रहा खतरा अशोक, सुपौल : शहरी क्षेत्र में दिसंबर माह से प्लास्टिक कैरी बैग पर पूर्ण प्रतिबंध के बाद शहरी इलाके में जूट व कपड़े का थैला व्यवहार किया जाने लगा है. वहीं खाने पीने के सामान […]
अशोक, सुपौल : शहरी क्षेत्र में दिसंबर माह से प्लास्टिक कैरी बैग पर पूर्ण प्रतिबंध के बाद शहरी इलाके में जूट व कपड़े का थैला व्यवहार किया जाने लगा है. वहीं खाने पीने के सामान आज भी बाजार में प्लास्टिक पैकेट में पैक मिल रहा है.
हालांकि देहाती क्षेत्र के बाजारों में आज भी धड़ल्ले से प्लास्टिक कैरी बैग का प्रयोग किया जा रहा है. जो पर्यावरण व आम जनजीवन के लिए हानिकारक साबित हो रहा है.
हालांकि शहरी क्षेत्र में प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध को कड़ाई से लागू करने के लिए सिटी स्क्वायड टास्क फोर्स का गठन किया गया है. जिनके द्वारा शहरी इलाके में कई बार दुकानों में छापेमारी भी किया गया. जहां प्लास्टिक कैरी बैग बरामद होने पर प्लास्टिक थैली को जब्त कर दुकानदार से भारी जुर्माना भी वसूला गया.
लेकिन ग्रामीण इलाकों में इस संदर्भ में किसी प्रकार की जागरूकता अभियान नहीं चलाये जाने से लोग प्लास्टिक का प्रयोग अभी भी पहले की तरह कर रहे हैं. वहीं दूध, तेल, रिफाइंड, गुटखे व अन्य कई सामग्रियों की पैकिंग अब भी प्लास्टिक से बने थैलों में की जा रही है. जिसे लोग उपयोग करने के बाद यत्र-तत्र सड़कों पर फेंक देते हैं.
परिणाम है कि नित दिन सैकड़ों क्विंटल प्लास्टिक का कचरा जिले में जमा होता है. इस कचरे की वैज्ञानिक तरीके से प्रोसेसिंग करने के बजाय इन्हें नगर परिषद द्वारा भी सड़कों के किनारे डंप यार्ड में फेंक दी जाती है. जो आखिरकार पर्यावरण के लिये खतरनाक साबित होता है.
कहते हैं पर्यावरणविद्
इस संबंध में पर्यावरणविद् भगवान जी पाठक कहते हैं कि प्लास्टिक घुलनशील नहीं होता है. ऐसे में कचरा निपटाने के लिए पॉलीथीन जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे जहरीली गैस उत्सर्जित होती है. इन गैसों से हवा भी प्रदूषित और जहरीली होती है. इनके प्रभाव में आने वाले लोग सांस, त्वचा आदि बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं.
कहा कि जिस प्रकार शहरी क्षेत्र में प्लास्टिक कैरी बैग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. ठीक उसी प्रकार ग्रामीण इलाके में भी प्लास्टिक कैरी बैग पर प्रतिबंध सख्ती से लगाना चाहिए. इस दिशा में लोगों को जागरूक करने के लिए गांव के गणमान्य लोगों को भी आगे आने की जरूरत है.
मिट्टी की उर्वरा शक्ति घटाता है प्लास्टिक
प्लास्टिक कैरी बैग आसानी से मिट्टी में दबने के बाद भी नहीं गलता है. जिस कारण भूगर्भीय जल रिचार्जिंग को रोक देता है. जिससे पानी की समस्या उत्पन्न हो सकती है. बताया जाता है कि प्लास्टिक कैरी बैग में पॉली विनायल क्लोराइड नामक केमिकल होता है.
जो मिट्टी में रहने पर भूजल को जहरीला बना देता है. जिससे जलजनित अन्य बीमारियां होती है. प्लास्टिक मिट्टी की उर्वरता को भी घटा देता है. जिस कारण फसलों के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ता है.
जानवरों के लिए होता है जानलेवा
मवेशी के विचरण एवं चरते समय दुधारू पशु सड़कों व मुहल्लों में फेंके गये फल, सब्जी, जूठन आदि के साथ प्लास्टिक भी निगल जाते हैं. जिससे पशु की दूध देने की क्षमता घट जाती है. साथ ही पशु की असमय मौत भी हो जाती है.
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