12.5 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बाढ़ व विस्थापन के दर्द से राहत दिलानेवाला हो सांसद

सुपौल : जिले की एक बड़ी आबादी के लिए कोसी आज भी अभिशाप है. देश की आजादी के बाद राजनेताओं ने कोसी वासियों के दर्द को समझा तो 1956 ई में कोसी तटबंध का निर्माण हुआ. लेकिन तटबंध बनने के बाद अब तक बाढ़ लानेवाली कोसी कटाव के जरिये विनाश की नयी इबारत लिखने लगी. […]

सुपौल : जिले की एक बड़ी आबादी के लिए कोसी आज भी अभिशाप है. देश की आजादी के बाद राजनेताओं ने कोसी वासियों के दर्द को समझा तो 1956 ई में कोसी तटबंध का निर्माण हुआ. लेकिन तटबंध बनने के बाद अब तक बाढ़ लानेवाली कोसी कटाव के जरिये विनाश की नयी इबारत लिखने लगी. नतीजा सामने है कि हर वर्ष बाढ़ और कटाव से हजारों लोग विस्थापित होते हैं. यह कहानी कोसी के लोगों के लिए नियति बन चुकी है. राजनेता उसके बाद भी हुए.

हर पांच वर्ष पर चुनाव में वोट मांगने पहुंचे नेताओं ने दर्द पर घड़ियाली आंसू भी बहाये लेकिन जख्म पर मरहम लगाने की कोशिश आज तक नहीं हुई. सरकारी आंकड़े कहते हैं कि जिले के छह प्रखंड के 36 पंचायत के 131 गांव की 10.35 लाख आबादी बाढ़ से प्रभावित है. लेकिन सच्चई इससे कहीं अधिक भयावह है. कोसी तटबंध और सड़कों के किनारे कोसी विस्थापितों की स्थायी बस्ती बन चुकी है. विस्थापितों के पुनर्वास के लिए शहर में सरकारी स्तर पर जमीन उपलब्ध कराये गये, जिस पर दबंगों का अवैध कब्जा है. प्रभात खबर ने अपने महापर्व अभियान ‘वोट करें, देश गढ़ें’ के तहत विस्थापितों से जानना चाहा कि लोकसभा चुनाव में उनके लिए मुद्दे क्या होंगे और होनेवाले सांसद से क्या अपेक्षाएं हैं.

बोले लोग

दिनेश सादा : हमारे लिए विस्थापन एक ऐसा दर्द है जो अब कैंसर का रूप ले चुका है. नेताओं द्वारा वोट मांगने के समय केवल सब्जबाग दिखाये जाते हैं. हमें सांसद नहीं हमदर्द चाहिए जो कोसी और विस्थापन के दर्द को समझ कर उसके समाधान का प्रयास करें. हम जानते हैं कि समस्या का समाधान आसान नहीं है लेकिन संसद में आवाज तो उठनी चाहिए. ऐसे ही प्रत्याशी को हम अपना वोट देंगे.

राजेंद्र सादा : हम अब तक तीन बार विस्थापित हो चुके हैं. अभी तटबंध पर रह रहे हैं. यह सुरक्षित जगह नहीं है और कभी भी हटना पड़ सकता है. खाने की बात तो छोड़िए पीने के लिए पानी भी नहीं है.

हर चुनाव में उम्मीद जगती है कि अब की बार जो नेता बनेगा तो उन लोगों का भी कल्याण होगा. लेकिन ऐसा नहीं होता है. हमें सिर छुपाने की जगह दिलाने वाला व रोजी-रोटी दिलाने वाला एमपी चाहिए.

चंदर सादा : हमारा पुश्तैनी घर बलवा पंचायत के फकीरना गांव में था और अब तटबंध पर शरण लिए हैं. मजदूरी मिलती है तो बच्चे खाते हैं नहीं तो भूखे सोने की नौबत रहती है. वोट किसे देना है अब तक नहीं सोचे हैं. लेकिन उसी व्यक्ति को देंगे जो विपत्ति में हमारे साथ रहेगा.

कबूतरी देवी : कोसी माय के कारण भागल फिरै छी. कि खायब, कोना रहब पता नय छय. कोसी में डुबय रही तय कोय नय देखे आयल. जै गरीब के बारे में सोचतै ओकरे वोट देवेय. बेईमान आदमी के वोट नय देयब.

राज कुमार सादा : बड़ी-बड़ी समस्या का समाधान होता है. लेकिन कोसी की समस्या का समाधान क्यों नहीं होता है. हम बंजारे की तरह घूम रहे हैं और एक क्विंटल अनाज और 42 सौ रुपये देकर हमारी समस्या का समाधान कर दिया गया. हमे कोसी की समस्या का स्थायी समाधान करने वाला सांसद चाहिए.

दिनेश यादव : 20 वर्ष पहले लुचमणि से विस्थापित होकर आये और अब तटबंध के किनारे घर बना कर रह रहे हैं. बलुआ पुनर्वास में सरकार द्वारा जमीन मिली थी जिस पर दबंगों का कब्जा है. हम वैसे व्यक्ति को वोट देंगे जो विस्थापितों के दर्द समझ सके और उसका समाधान कर सके.

सोमा देवी : कोसी के लोग के तकलीफ कय दैखे-सुनै वाला कोय नय छय. जमीन-जगह सब कोसी में समाय गैल. अपन तय समय कैट गेल बाल-बच्च के जिंदगी कोना कटत नय मालूम. जै हम सबक तकलीफ दूर करत औकरे वोट दैब.

बसंत यादव : जब से होश संभाला है विस्थापित का दर्द लिए घूम रहा हूं. एक अदद स्थायी ठिकाना भी तय नहीं है, रोजी-रोटी की तो बात ही छोड़िए. नेता कोई भी हो, हर किसी ने ठगा है. हमे रोजगार के साथ-साथ आशियाना उपलब्ध करानेवाला सांसद चाहिए.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें