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नहीं मिल रहा योजना का लाभ टूट रही स्वरोजगार की आस

उद्योग विभाग व बैंकों की मनमानी का दंश ङोल रहे आवेदक स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए उद्योग विभाग द्वारा चलाये जा रहे प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम की स्थिति काफी दयनीय है. लक्ष्य के सापेक्ष में अब तक मात्र 23 प्रतिशत ही लक्ष्य प्राप्त किया जा सका है. वहीं यह वित्तीय वर्ष समाप्ति की ओर […]

उद्योग विभाग व बैंकों की मनमानी का दंश ङोल रहे आवेदक
स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए उद्योग विभाग द्वारा चलाये जा रहे प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम की स्थिति काफी दयनीय है. लक्ष्य के सापेक्ष में अब तक मात्र 23 प्रतिशत ही लक्ष्य प्राप्त किया जा सका है. वहीं यह वित्तीय वर्ष समाप्ति की ओर है. ऐसे में योजना की यह स्थिति विभागीय एवं बैंकों की लापरवाही को ही दरसाती है. ऐसे में कैसे होगा बेरोजगारों के स्वरोजगार का सपना पूरा.
सीवान:1992 में प्रधानमंत्री रोजगार योजना की शुरुआत की गयी, जिसका उद्देश्य शिक्षित बेरोजगारों को स्वरोजगार के लिए धन उपलब्ध कराना था. 2007 में यह योजना प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के नाम से जाना जाने लगा. इस योजना के अंतर्गत सेवा क्षेत्र के लिए दस लाख तक और विनिर्माण के लिए 25 लाख तक की सहायता राशि उपलब्ध करायी जाती है. विभाग से संपुष्टि के बाद संबंधित बैंक को ऋण उपलब्ध कराने के लिए भेजा जाता है.
क्या है योजना : इस योजना के अंतर्गत 18 वर्ष के ऊपर के भारतीय को इसका लाभ दिया जाना है. इसके लिए कम-से-कम आठवीं पास होना आवश्यक है. आवेदन के साथ जाति, आवास, शपथपत्र और मुखिया द्वारा निर्गत अनापत्ति प्रमाणपत्र की आवश्यकता होती है. इसके बाद उद्योग विभाग द्वारा जांच कर प्रस्ताव को स्वीकृत कर बैंक को भेजा जाता है, जहां से लाभुक को वित्तीय सहायता उपलब्ध करायी जाती है.
इसमें बैंकों को पांच से दस प्रतिशत मार्जीन मनी देनी होती है. ऋण राशि में शहरी क्षेत्र के लिए सामान्य वर्ग के आवेदक को 15 प्रतिशत व अन्य वर्गो के लिए 25 प्रतिशत अनुदान दिया जाना है. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में सामान्य वर्ग के लिए 25 प्रतिशत और अन्य के लिए 35 प्रतिशत अनुदान दिया जाना है.
क्या है स्थिति : विगत वर्षो से इस योजना की स्थिति काफी दयनीय है. एक तरफ तो विभाग द्वारा मांग के अनुरूप काफी कम लक्ष्य मिल रहा है, जिससे लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है. वहीं विभागीय और बैंकों की टाल-मटोल एवं लापरवाही से लक्ष्य के सापेक्ष में 20 से 25 प्रतिशत आवेदकों को ही इसका लाभ मिल सका है. इस वित्तीय वर्ष में 174 के लक्ष्य के सापेक्ष में 90 आवेदनों की स्वीकृति विभाग द्वारा मिली है. उनमें भी मात्र 40 को ही भुगतान किया गया. इस मामले में उद्योग विभाग और बैंक द्वारा एक-दूसरे के पाले में गेंद डाली जाती है.
विभाग का कहना है कि बैंकों द्वारा विलंब एवं टाल-मटोल के कारण इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है और लक्ष्य भी पूरा नहीं हो पा रहा है. वहीं बैंकों का कहना है कि विभाग द्वारा भेजे प्रस्ताव की जांच के बाद ही इस योजना का लाभ दिया जाना है. बहुत मामलों में अनुपयुक्त लोगों के आवेदन भेजने से भी परेशानी आती है. लेकिन कुल मिला कर इसका खामियाजा आवेदकों को ही भुगतना पड़ता है और स्वरोजगार की उनकी आस धरी रह जाती है.
क्या कहते हैं अधिकारी
विभाग द्वारा लक्ष्य की पूर्ति के लिए प्रयास किया जाता है, जिससे लोगों को इस योजना का लाभ मिल सके और वे स्वरोजगार कर आर्थिक रूप से सबल हो सकें. बैंकों द्वारा इस मामले में टाल-मटोल से लक्ष्य प्राप्ति में परेशानी आती है. इस संबंध में जिला प्रशासन को भी लिखा गया है.
मनोज रंजन श्रीवास्तव, महा प्रबंधक जिला उद्योग केंद्र, सीवान

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