14 वीं वित्त की राशि से वंचित किये जाने से नाराज
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पंचम वित्त आयोग की राशि से क्षेत्र का विकास संभव नहीं
14 वीं वित्त की राशि से वंचित किये जाने से नाराज धनराशि की कमी से जिला पार्षदों की हो रही उपेक्षा सभी को गोलबंद कर मांगेगा अपना अधिकार चोरौत : केंद्र सरकार से मिलने वाली 14 वीं वित्त की राशि से चालू वर्ष से जिला परिषद व पंचायत समिति को वंचित कर दिया गया है. […]
धनराशि की कमी से जिला पार्षदों की हो रही उपेक्षा
सभी को गोलबंद कर मांगेगा अपना अधिकार
चोरौत : केंद्र सरकार से मिलने वाली 14 वीं वित्त की राशि से चालू वर्ष से जिला परिषद व पंचायत समिति को वंचित कर दिया गया है. एक मात्र पंचम वित्त आयोग से मिलने वाली राशि की उम्मीद है. इससे क्षेत्र का विकास करना संभव नहीं है. क्षेत्र के विकास के लिए समुचित राशि की आवश्यकता है. विकास योजनाओं में धनराशि की कमी से जिला पार्षदों की उपेक्षा हो रही है. जो उचित नही है. यह कहना है स्थानीय जिला पार्षद विश्वनाथ मिश्र का. कहा कि जिला पार्षदों के अधिकार को लेकर उन्होंने संघर्ष करने का मन बना लिया है. जिला पार्षदों को
सम्मानजनक वेतन, पेंशन, विधायक व विधान पार्षदों की तरह विशेषाधिकार, जिला मुख्यालय में आवासीय सुविधा व जिला परिषद की बैठकों में सत्र प्रणाली लागू कराने को लेकर उन्होंने प्रयास आरंभ कर दिया है. इसको लेकर बिहार के सभी जिला पार्षदों, प्रखंड प्रमुखों व संबंधित जनप्रतिनिधियों को एकजुट करने के लिए उन्होंने प्रखंड के यदुपट्टी समेत अन्य गांव का दौरा कर प्रमुख पशुपति कुमार, पंसस सतीश कुमार, महादेव साह व वीणा देवी समेत अन्य से संपर्क किया.
उनका कहना है कि त्रिस्तरीयत पंचायती राज व्यवस्था में जिला परिषद जिले के विकास की सर्वोच्च सदन है, किंतु यह कागजी संस्था बन कर रह गयी है. ऐसे में सशक्त पंचायती राज का सपना बेमानी होगी.
जिला पार्षद को मिले समुचित अधिकार : विश्वनाथ
कहा कि जिला पार्षदों का मासिक भत्ता मात्र 2500 है. जो मुखिया के बराबर है. जबकि मुखिया का निर्वाचन करीब 5000 मतदाताओं द्वारा किया जाता है. वहीं, जिला पार्षदों का निर्वाचन 50 हजार मतदाताओं द्वारा किया जाता है. लिहाजा उनका मासिक वेतन कम से कम 30 हजार व पेंशन की सुविधा होनी चाहिये. विधायक व विधान पार्षदों को मिलने वाली सुविधाओं का 50 फीसदी जिला पार्षदों को मिलनी चाहिए. जिला परिषद् की सामान्य बैठकें मात्र एक दिन की होती है.
जिसमें जिला के विकास पर विस्तृत परिचर्चा, बहस और जिला परिषद् के क्षेत्राधीन विभागों की समीक्षा नहीं हो पाती है और न ही जिला परिषद् का आवश्यक निर्देश ही किसी विभाग को हो पाता है. इस कारण बिहार विधानमंडल की तरह सत्र प्रणाली के अनुरूप ही ग्रीष्मकालीन, वर्षाकालीन, शीतकालीन व बसंतकालीन एक सप्ताह का सत्र जिला परिषद् का आयोजित किया जाना चाहिए. इससे जिला पार्षद भी अपनी जानकारी व योगता के अनुसार जिला के विकास में अपना योगदान देने में सफल होंगे.
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