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5 साल में 5 लाख से अधिक घटे मवेशी

पशुपालन पर असर. जिले में साल दर साल घट रही मवेशियों की संख्या सीतामढ़ी : धार्मिक व सेहत के दृष्टिकोण से भारतीय परंपरा का हिस्सा बन चुका गाय व भैंस का दूध मनुष्य के लिए दुर्लभ हो सकता है. जिला पशुपालन विभाग से पशु गणना से संबंधित आंकड़ा को देख कर यही प्रतीत होता है. […]

पशुपालन पर असर. जिले में साल दर साल घट रही मवेशियों की संख्या

सीतामढ़ी : धार्मिक व सेहत के दृष्टिकोण से भारतीय परंपरा का हिस्सा बन चुका गाय व भैंस का दूध मनुष्य के लिए दुर्लभ हो सकता है. जिला पशुपालन विभाग से पशु गणना से संबंधित आंकड़ा को देख कर यही प्रतीत होता है. जिले में मवेशी पालन को लेकर किसानों की उदासीनता से भी यह प्रतीत होता है कि समय के साथ मवेशी पालन को लेकर होने वाले व्यवसाय अब उनके लिए आकर्षित नहीं रह गया है.
जिला पशुपालन विभाग से प्राप्त आंकड़ा बिहार व केंद्र सरकार की योजनाओं पर सवालिया निशान खड़ा करता है. पशुधन गणना के अनुसार पिछले 5 वर्ष के अंदर मवेशियों की संख्या पांच लाख से अधिक कम हो गयी है. इसमें सबसे अधिक संख्या गाय व भैंस की है. पशुधन गणना 2007 के अनुसार मवेशियों की संख्या 9,00,883 थी, जो वर्ष 2012 में घट कर 3,66,925 हो गयी. इस प्रकार पांच वर्ष के अंदर मवेशियों की संख्या 5,33,958 कम हो गयी. 2007 में गाय की संख्या 2,69,969 थी, जो 2012 में 1,47,748 हो गयी. इसी प्रकार 2007 में भैंस की संख्या 2,12,873 थी, जो 2012 में 1,76,516 हो गयी. बकरी की संख्या 4,07,646 थी, जो 36,049 हो गयी. भेड़ व सुअर की संख्या क्रमश: 192 व 1,0203 थी, जो 252 व 6,360 हो गयी.
पुश्तैनी व्यवसाय को कर रहे तौबा
मवेशियों की संख्या घटने को लेकर प्रभात खबर ने दूध का पुश्तैनी व्यवसायी करने वाले कुछ किसानों से बातचीत की. अधिकांश किसानों ने कहा कि मवेशी पालन अब घाटा का सौदा हो गया है.
जिला मुख्यालय से सटे सीमरा गांव के किसान जगदीश राय, रामचंद्र राय, मो सरफुद्दीन, पिंटू यादव बताते है कि कुछ वर्ष पूर्व तक वे तीन-चार गाय-भैंस रखते थे. अब दूध का कारोबार घाटा का सौदा हो गया है. अब घर में दूध की जरूरत पूरा करने के लिए एक-दो मवेशी रखे हुए है. कारण है कि वर्षा व सुखाड़ के कारण खेत-खलिहान में प्राकृतिक चारा (दुबी, मोथा, खेनरी, मकुना खर, कचरी व पलाकी) का घोर अभाव हो गया है.
बाजार से चारा खरीद कर मवेशी को देना पड़ता है. जो महंगा तो है, लेकिन किसानों के लिए नुकसानदायक हो रहा है. खेत-खलिहान का घास खाकर सात-आठ किलो दूध देने वाली मवेशी अब बाजार का चारा खाकर तीन से चार किलो दूध देती है. वह भी गुणवत्तापूर्ण नही. दूध पतला होता है, जिस कारण दूध लेने वाले पानी मिलाने का आरोप लगाते है. एक माह में मवेशी के चारा व दवा पर कम से कम 25 सौ रुपया का खर्च आता है. मवेशियों की संख्या कम होने के कारण उर्वरक का काम करने वाले गोबर का लाभ भी नही मिल पा रहा है. मवेशी कम होने से खेत में समुचित गोबर भी नही डाल पाते है.
बढ़ती जा रही सुधा दूध की डिमांड
मवेशी पालकों की बात में दम भी दिखता है. सुधा दूध के डिस्ट्रीब्यूटर मनोज कुमार सिंह ने बताया कि समय के साथ डिमांड बढ़ती जा रही है. कंपनी से डिमांड के अनुरूप 75 प्रतिशत हीं आपूर्ति मिल पाती है.

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