फिर गरमी आयी, नहीं हुई चापाकलों की मरम्मत
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गरमी की तपिश. सूखे चापाकल, बढ़ेगा पेयजल संकट
फिर गरमी आयी, नहीं हुई चापाकलों की मरम्मत सीतामढ़ी : गरमी की तपिश धीरे-धीरे बढ़ रही है, जबकि अभी अप्रैल ही है. मई-जून में गरमी की तपिश और बढ़ जायेगी. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है. इस मौसम में सबसे बड़ी समस्या पेय जल की होती है. ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल के हाल से शायद […]
सीतामढ़ी : गरमी की तपिश धीरे-धीरे बढ़ रही है, जबकि अभी अप्रैल ही है. मई-जून में गरमी की तपिश और बढ़ जायेगी. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है. इस मौसम में सबसे बड़ी समस्या पेय जल की होती है. ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल के हाल से शायद हीं कोई अनजान है.
हर गांव में चापाकल ठप
जिले का कोई ऐसा गांव नहीं है, जहां आठ-10 चापाकल खराब नहीं होगा. लोगों का कहना है कि सरकारी चापाकल अगर एक बार खराब हुआ तो विभाग द्वारा उसे ठीक नहीं कराया जाता है. यानी चापाकल लगा कर विभाग फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखता है कि उस चापाकल की हालत कैसी है.
स्थानीय लोग अगर चापाकल को ठीक करा लिये तो ठीक है नहीं तो वह भगवान भरोसे पड़ा रहता है. फिर धीरे-धीरे नट-वोल्ट, हैंडिल व बाद में चल कर हेड भी गायब हो जाता है.
नये चापाकल पर जोर
लोगों को यह माजरा आज तक समझ में नहीं आया कि आखिर सरकार व पीएचइडी ठप पड़े चापाकलों की मरम्मत क्यों नहीं कराती है. क्यों खराब चापाकलों को भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है और नया चापाकल लगाने पर विशेष जोर दिया जाता है. विभाग व सरकार के साथ ही जनप्रतिनिधियों के द्वारा भी खराब चापाकलों की मरम्मत को लेकर आवाज उठाने के बजाये नया चापाकल लगवाया जाता है.
इसी का नतीजा है कि दिन व दिन खराब चापाकलों की संख्या बढ़ती जा रही है. शायद विभाग को भी पता नहीं होगा कि जिले के किस प्रखंड में उसके कितने चापाकल ठप पड़े हुए हैं.
मरम्मत कराने के प्रति िवभाग गंभीर नहीं
हजारों खर्च कर लगा चापाकल मात्र दो वर्ष चला
परिहार : प्रखंड क्षेत्र में वर्षों से चापाकलों की मरम्मत नहीं करायी जा रही है. थाना परिसर में दो वर्ष पूर्व चापाकल लगाया गया जो अब एक बूंद भी पानी नहीं देता है. इस तरह के चापाकल जहां भी लगाये गये हैं, अधिकांश का हाल बुरा है. प्रखंड कार्यालय परिसर में भी एक चापाकल वर्षों से खराब है.
स्थानीय हाई स्कूल में कहने के लिए तो पांच चापाकल है, जिसमें से मात्र एक ही चालू है. बता दें कि उक्त स्कूल में हजार से अधिक बच्चे नामांकित हैं. सरकारी चापाकलों का हाल करीब-करीब हर गांव में कुछ इसी तरह का है.
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