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राजनेताओं के साथ मुकेश के कनेक्शन को खंगाल रही पुलिस

विकास, निकेश व अभिषेक की गिनती गिरोह के शॉर्प शूटर में सीतामढ़ी : शिवहर में सुपरवाइजर व दरभंगा में दो इंजीनियरों की हत्या के बाद संतोष गिरोह के मास्टरमाइंड मुकेश पाठक को गिरफ्तार करने की पुलिस की कोशिश नाकाम साबित हो रही है. हालांकि मुकेश व विकास को पकड़ने के लिए एसटीएफ के अलावा सीतामढ़ी, […]

विकास, निकेश व अभिषेक की गिनती गिरोह के शॉर्प शूटर में

सीतामढ़ी : शिवहर में सुपरवाइजर व दरभंगा में दो इंजीनियरों की हत्या के बाद संतोष गिरोह के मास्टरमाइंड मुकेश पाठक को गिरफ्तार करने की पुलिस की कोशिश नाकाम साबित हो रही है. हालांकि मुकेश व विकास को पकड़ने के लिए एसटीएफ के अलावा सीतामढ़ी, मोतिहारी, दरभंगा व मधुबनी जिले की पुलिस ने पूरी ताकत झोंक दी है. इतना ही नहीं, मुकेश की गिरफ्तारी के लिए एसटीएफ एसपी शिवदीप लांडे, एसपी हरिप्रसाद एस व एएसपी (अभियान) संजीव कुमार समेत कई अधिकारियों को लगाया गया है.
पुलिस सूत्रों के अनुसार, इंजीनियर व सुपरवाइजर हत्याकांड में गिरफ्तार अपराधियों ने पूछताछ में कई खुलासे किये हैं. इसमें सीतामढ़ी, शिवहर, मधुबनी व दरभंगा के कुछ राजनेताओं का संरक्षण गिरोह को मिलने की बात भी सामने आयी है. खासतौर पर मधुबनी के एक नेता पर पुलिस की पैनी नजर है. पुलिस संदिग्ध राजनेताओं के साथ संतोष गिरोह के कनेक्शन का सुराग तलाशते हुए साक्ष्य जुटाने में भी लग गयी है.
स्लीपर सेल की तरह फैला है गिरोह
संतोष गिरोह के सदस्य स्लीपर सेल की तरह काम करते हैं. बिहार पिपुल्स लिबरेशन आर्मी नामक आपराधिक संगठन की स्थापना संतोष झा व मुकेश पाठक ने मिल कर की थी. जेल में मुलाकात होने के बाद शातिर चिरंजीवी सागर व लंकेश झा ने संतोष का विश्वास जीत लिया.
जेल से बाहर आने के बाद दोनों ने संगठन का विस्तार करने के लिए आपराधिक प्रवृत्ति के युवकों को पांच हजार महीने पर बहाल करना शुरू कर दिया. दवा विक्रेता संघ के अध्यक्ष यतींद्र खेतान के अलावा आधा दर्जन हत्याकांड को अंजाम देने के आरोप में जेल में बंद शातिर सरोज राय भी संतोष गिरोह के लिए काम कर चुका है. उस वक्त संतोष गिरोह में सरोज की पगार भी पांच हजार रुपये महीना था. कुछ यही स्थिति विकास झा उर्फ कालिया की भी थी. संगठन के विस्तार के बाद हत्याओं का ऐसा दौर चला कि पूरे उत्तर बिहार की पुलिस परेशान हो गयी.
पगार पर काम करता था विकास
18 अगस्त 2013 को गिरफ्तार होने के बाद विकास झा ने पुलिस को खुद बताया था कि वह संतोष गिरोह के लिए 10 हजार पगार पर काम करता है. विकास ने यह भी बताया था कि आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने के बाद पगार की राशि एटीएम पर भेजी जाती है. एटीएम कार्ड निकेश दूबे के पास रहता है, जिससे निकाल कर बांट दिया जाता है. उसने बताया था कि लेवी की राशि का उपयोग संगठन के लिए हथियार खरीदने, ठेकेदारों के व्यवसाय में इन्वेस्ट करना व नये-नये लड़कों को लालच देकर जोड़ने में होता है.
चिरंजीवी की गिरफ्तारी से नेटवर्क समाप्त
संतोष गिरोह ने शिवहर में सुपराइजर की हत्या से पहले बाजपट्टी में लेवी नहीं मिलने पर अनुपम नामक संवेदक की गोली मारकर हत्या की थी. कुछ दिन बाद 18 अगस्त 2013 को गिरोह का राइट हैंड चिरंजीवी सागर गिरफ्तार हो गया. इससे पूर्व लंकेश झा गायब हो गया. लंकेश का आज तक अता-पता नहीं है. चिरंजीवी की गिरफ्तारी के बाद गिरोह के शूटरों का नेटवर्क पूरी तरह भंग हो गया. कारण था कि गिरोह के शूटरों का सीधा संपर्क चिरंजीवी व लंकेश से था. माना जाता है कि इसी वजह से ढ़ाई साल तक उत्तर बिहार में संतोष गिरोह ने किसी आपराधिक घटना को अंजाम नहीं दिया.
फिर से हो रही बहाली
जुलाई 2015 में शिवहर अस्पताल में इलाज के लिए भरती मुकेश पाठक ने भागने के बाद कुछ दिनों तक गिरोह का विस्तार किया. पुलिस के अनुसार मुकेश ने सबसे पहले टीन एजर्स युवकों को पगार पर बहाल किया. यह भी कहा जा रहा है कि स्वजातीय युवकों को विशेष तरजीह दी गयी. संगठन को पूरी तरह संगठित करने के बाद मुकेश ने शिवहर व दरभंगा में हत्याकांड को अंजाम देने के बाद भूमिगत हो गया.

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