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पीएचसी में कागज तक ही है रोगी कल्याण समिति

पीएचसी में कागज तक ही है रोगी कल्याण समिति रोगी कल्याण समितियों की तह तक जाने पर तरह-तरह के मामले सामने आये हैं. कैसे यह समितियां एक मजाक बन कर रह गयी है, का खुलासा हुआ है. यानी समितियों से रोगियों को कोई लाभ नहीं है. कोई समिति का कार्यकाल तीन साल का तो कोई […]

पीएचसी में कागज तक ही है रोगी कल्याण समिति रोगी कल्याण समितियों की तह तक जाने पर तरह-तरह के मामले सामने आये हैं. कैसे यह समितियां एक मजाक बन कर रह गयी है, का खुलासा हुआ है. यानी समितियों से रोगियों को कोई लाभ नहीं है. कोई समिति का कार्यकाल तीन साल का तो कोई पांच साल बता रहा है. प्रभात खबर ने जिले के चार पीएचसी की रोगी कल्याण समिति को खंगाला है. फोटो-3 सोनबरसा पीएचसी, 4 बोखड़ा पीएचसी सीतामढ़ी. रोगियों के हित में ठोस कदम उठाने के लिए सदर अस्पताल व सभी पीएचसी में रोगी कल्याण समिति गठित है, मगर अधिकांश समितियां कागज पर चल रही है. धरातल पर ऐसा कोई काम नहीं किया गया है, जिससे लगे कि सरकार ने एक बेहतर सोच के तहत समितियों का गठन कराया था. नहीं होती नियमित बैठक विभाग के अधिकारी कहते हैं कि हर माह रोगी कल्याण समिति की बैठक करनी है और उसमें रोगियों की सुविधाओं को लेकर निर्णय लिया जाना है. कम से कम साल में चार बार बैठक जरूर करनी है, लेकिन अधिकांश पीएचसी में नियमित बैठक नहीं होती है. रोगियों के हित की बात सोचना तो दूर की बात है. एक पीएचसी में तो दो वर्ष के अंदर एक बार भी बैठक नहीं हुई है. समिति सदस्य संवेदनशील नहीं समिति में शामिल अध्यक्ष, सचिव व सदस्यों को काफी जिम्मेदारी सौंपी गई है. यह दायित्व सौंपा गया है कि मरीजों के पुरजा काटने से प्राप्त पैसे से रोगियों को सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए तरह-तरह के काम करेंगे, पर बेलसंड व एक-दो अन्य पीएचसी को छोड़ कर कहीं कुछ नहीं किया गया है. इससे स्पष्ट है कि समितियों का गठन करने से भले ही इसमें शामिल सदस्यों को कोई लाभ मिलता होगा, पर समिति से रोगियों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है. बॉक्स :-रोगी के हित में कोई निर्णय नहीं बोखड़ा. स्थानीय पीएचसी में वर्ष 12 में पहली बार रोगी कल्याण समिति का गठन हुआ. स्वास्थ्य प्रबंधक अनिल कुमार के अनुसार वर्ष 15 में जिला स्तर से समिति को भंग कर दिया गया. हाल के महीनों में गठित नयी समिति में पुरानी समिति के एक मात्र सदस्य बुद्धिनाथ झा को शामिल किया गया है. इसके अध्यक्ष पीएचसी प्रभारी व सचिव चिकित्सा पदाधिकारी होते हैं. सदस्य में देशी चिकित्सा पदाधिकारी, प्रमुख व दो महिला व दो पुरुष होते हैं. फंड में जमा है 25 हजार स्वास्थ्य प्रबंधक कहते हैं कि वे 10 मइ 13 को यहां योगदान किए. तब से समिति का हिसाब-किताब सुचारु चल रहा है. पूर्व के प्रभारी सह अध्यक्ष द्वारा उन्हें कोई हिसाब नहीं दिया गया था. इधर, जमीन दाता सह सदस्य श्री झा कहते हैं कि मासिक बैठक नहीं होती है. पीएचसी प्रभारी अपने हिसाब से बैठक बुला लेते हैैं. प्रबंधक श्री कुमार के मुताबिक रोगियों का पुरजा काटने के लिए कॉटेज व पेपर समिति के फंड से खरीद कर दिया जाता है. इसके अलावा फंड से कोई काम नहीं हुआ है. बॉक्स में :- दो वर्ष से बैठक नहीं सोनबरसा. पीएचसी में वर्ष 2011 में रोगी कल्याण समिति गठित की गई. नियमित बैठक नहीं होती है, जबकि तीन माह पर बैठक करनी है. सदस्य के रूप में उन लोगों को शामिल करना है जो पीएचसी बराबर आते-जाते हैं और बाहर से फंड ला कर रोगियों के हित में कोई काम करा सके. मगर यहां ऐसा कुछ नहीं होता है. पीएचसी प्रभारी डाॅ. रामप्रवेश सिंह ने समिति का कार्यकाल पांच साल का बताया. डाॅ. सिंह ने समिति के फंड में जमा राशि का खुलासा नहीं किया. सदस्य के रूप में शामिल प्रखंड प्रमुख सत्येंद्र कुमार राज ने बताया कि उन्हें मालूम भी नहीं कि वे रोगी कल्याण समिति के सदस्य भी हैं. वे करीब दो वर्ष से प्रमुख हैं, पर एक बार भी बैठक नहीं बुलायी गई है ताकि वे शामिल हो सके. उनका मानना है कि समिति के फंड का दुरुपयोग किया जाता होगा. इसी कारण उन्हें बैठक में नहीं बुलाया जाता होगा. वे शीघ्र सिविल सर्जन से मिल कर समिति की गतिविधियों व फंड में जमा राशि के उपयोग की जांच कराने की मांग करेंगे. बॉक्स में :-भगवान भरोसे है पीएचसी परिहार. स्थानीय पीएचसी एक तरह से भगवान भरोसे है. इसकी निगरानी के लिए भले ही नीचे से ऊपर तक अधिकारियों की कमी नहीं है, पर किसी की नजर पीएचसी की ओर नहीं हैं. नजर होती तो आज पीएचसी का यह हाल नहीं होता. मार्च 15 में अचानक तत्कालीन डीएम डाॅ. प्रतिमा ने पीएचसी का औचक निरीक्षण की थी. कई तरह की गड़बड़ी सामने आयी थी. इस मामले में स्वास्थ्य प्रबंधक राजेश चंद्र व लेखापाल पवन कुमार की नौकरी चली गई थी. सुरसंड पीएचसी के स्वास्थ्य प्रबंधक संतोष कुमार को परिहार का अतिरिक्त प्रभार ग्रहण करने का निर्देश दिया गया. सच यह है कि श्री कुमार प्रभार ग्रहण करने को तैयार है, पर प्रभार देने वाले स्वास्थ्य प्रबंधक श्री चंद्र व लेखापाल रहे श्री कुमार का कोई पता नहीं है. इस बात को सुरसंड के स्वास्थ्य प्रबंधक संतोष कुमार ने स्वीकार किया है. वे शुक्रवार व शनिवार को परिहार में समय देते हैं. इन्हीं कारणों से रोगी कल्याण समिति की गतिविधियों की जानकारी नहीं दे सके. पीएचसी प्रभारी डाॅ. अशोक चौधरी जिला में गए थे. वे सिर्फ इतना ही बता सके कि तीन माह पूर्व समिति की बैठक हुई थी. बॉक्स में :- बेलसंड में समिति गंभीर बेलसंड. स्थानीय पीएचसी में पांच वर्ष पूर्व रोगी कल्याण समिति का गठन हुआ. इसके अध्यक्ष पीएचसी प्रभारी डाॅ. केके सिंह हैं. सचिव डाॅ. रंजन प्रसाद सिंह हैं, पर वे कई माह से रुन्नीसैदपुर पीएचसी में पदस्थापित हैं. प्रबंधक श्रीनिवास ने बताया कि एक वर्ष के अंदर सात बार समिति की बैठक हुई है. एक वर्ष की उपलब्धियों की बाबत बताया कि समिति के फंड से प्रसव रूप में उपकरण की खरीद की गई. परिवार कल्याण व बंध्याकरण के लिए उपकरण, पीएचसी व एपीएचसी के लिए हिमोग्लोबीन मीटर कीट, राष्ट्रीय बाल सुरक्षा के लिए उपकरण की खरीद, परिवार कल्याण पखवारा के लिए दवा की खरीद, एंबुलेंस की मरम्मत, कागज व कार्टेज आदि की खरीद की गई. बावजूद समिति के फंड में अभी लाख रुपये जमा है.

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