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्नछठ का धार्मिक व वैज्ञानिक महत्व

्नछठ का धार्मिक व वैज्ञानिक महत्व पुपरी : छठ पर्व के पीछे धार्मिक हीं नहीं, बल्कि वैज्ञानिक महत्व भी है. यही कारण है कि इस पर्व की महत्ता काफी है और इस पर्व को करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है. छठ का पहला दिन नहाय-खाय से शुरू होता है. इस दिन व्रती प्याज […]

्नछठ का धार्मिक व वैज्ञानिक महत्व पुपरी : छठ पर्व के पीछे धार्मिक हीं नहीं, बल्कि वैज्ञानिक महत्व भी है. यही कारण है कि इस पर्व की महत्ता काफी है और इस पर्व को करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है. छठ का पहला दिन नहाय-खाय से शुरू होता है. इस दिन व्रती प्याज व लहसुन समेत अन्य दोष युक्त भोजन को त्याग कर अरवा चावल, दाल व कद्दू की सब्जी खाती है. इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है कि व्रती अपने को उपवास के अगले दिनों के लिए तैयार करती है. खरना के दिन शाम में व्रती भोजन करती है. भोजन में गम्हरी के चावल व गुड़ का खीर बनता है. छठी मइया को प्रसाद चढ़ने के बाद व्रती खीर के अलावा मूली व केला ग्रहण करती है. ताकि उपवास का बूरा प्रभाव स्वास्थ्य पर न पड़े. अगले दिन बिना पानी पिये उपवास पर रहती है और शाम में अस्ताचल गामी सूर्य को अर्घ देकर षष्ठी की पूजा की जाती है. षष्ठी की पूजा बच्चे के जन्म के समय छठी के रूप में किया जाता है और इस मौके पर बच्चे के दीर्घायु व रक्षा करने की कामना की जाती है. — जल में खड़ा रहने का महत्व महिला व पुरुष दोनों छठ व्रत करते हैं. नदी व तालाब के पानी में खड़ा होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. वैज्ञानिक कारण यह है कि जल में खड़े होकर सूर्य की पूजा करने से मानसिक व शारीरिक संतुलन बना रहता है. आयुर्वेद के अनुसार, इस तरह की पूजा से कफ व पित दोषों का शमन होता है. चिकित्सक डॉ मृत्युंजय झा व श्रीपति झा कहते हैं कि मेडिकल साइंस में उपवास को अच्छा नहीं माना जाता है. हालांकि उपवास से पेट के विकार में राहत जरूरत मिलती है. डायबिटिज, हर्ट व किडनी के मरीज को उपवास से बचना चाहिए. उपवास जरूरी हो तो पहले चिकित्सक के परामर्श से दवा लेनी चाहिए.

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