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बागमती परियोजना नहीं बन सकी वरदान

बागमती परियोजना नहीं बन सकी वरदान फोटो नंबर- 25 किरान को खा रहा जंग, 26 बागमती का आवासीय भवन, 27 व 28 स्थानीय लोग सुप्पी : बागमती परियोजना शुरू करने के पीछे एक अलग सोच थी. किसानों का सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए इस परियोजना को शुरू किया गया था, लेकिन कतिपय कारणों से […]

बागमती परियोजना नहीं बन सकी वरदान फोटो नंबर- 25 किरान को खा रहा जंग, 26 बागमती का आवासीय भवन, 27 व 28 स्थानीय लोग सुप्पी : बागमती परियोजना शुरू करने के पीछे एक अलग सोच थी. किसानों का सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए इस परियोजना को शुरू किया गया था, लेकिन कतिपय कारणों से करोड़ों खर्च के बावजूद न तो परियोजना पूरी हुई और न हीं लोगों को सिंचाई की सुविधा मिली. यानी यह किसानों के लिए वरदान साबित नहीं हो सका, जिसका मलाल किसानों को आज भी है. बावजूद हर सरकार विकास की बात कहती है. विकास की बात सून क्षेत्र के लोगों में आक्रोश भर जाता है. माना जा रहा है कि विस चुनाव में क्षेत्र के लोग सिंचाई की सुविधा को मुद्दा बनायेंगे. — वर्ष 1968 में शिलान्यास बताया गया है कि प्रखंड के बागमती नदी के ढ़ेंग घाट पर बराज का निर्माण होना था. नहर के जरिये खेतों को सिंचाई सुविधा दी जाती. वर्ष 1968 में पूर्व केंद्रीय मंत्री राम दुलारी सिन्हा ने बराज के निर्माण कार्य का शिलान्यास किया था. वर्ष 1971 से निर्माण कार्य शुरू हुआ. बाद में चल कर काम को रोक दिया गया जो अब तक कायम है. — अभियंता की सलाह पर काम ठप गम्हरिया गांव के 73 वर्षीय बृजकिशोर सिंह कहते हैं कि बराज बना कर रीगा-डुमरा होते हुए कोशी नदी तक नहर का निर्माण कराया जाना था. भूमि का अधिग्रहण किया गया. किसानों को भूमि का मुआवजा भी दिया गया. कहीं-कहीं नहर की खुदाई भी की गयी. नेपाल बॉर्डर से बागमती रिंग बांध का काम पूरा कराया गया. इस परियोजना में काम करने के लिए स्थानीय दर्जनों लोगों की नियुक्ति की गयी थी. इस बीच, यहां से करीब 50-55 किलोमीटर दूर नेपाल के करमहिया में बागमती नदी में बराज बना दिया गया. श्री सिंह की माने तो एक भरोसेमंद अभियंता ने एक पूर्व पीएम को सलाह दी कि नेपाल में बराज बन जाने से भारतीय क्षेत्र में बागमती नदी में पानी नहीं आ पायेगा. इसी सलाह पर पूर्व पीएम ने परियोजना का काम रोक दिया. भले हीं श्री सिंह की बातों में जो सच्चाई हो, लेकिन परियोजना का काम तब से हीं ठप होने से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसी बड़े के इशारे पर हीं इस काम को रोक दिया गया था. — वर्ष 71 से 90 तक कार्यालय बता दें कि बराज बनाने के लिए गम्हरिया में 22 एकड़ व सुप्पी में 45 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर उसमें कार्यालय के साथ हीं आवासीय भवन बनाया गया था. शेष खाली जमीन में बड़े-बड़े संयंत्र रखे गये थे जो अब भी है और धूप व बारिश में सड़ रहा है. करोड़ों की मशीन को जंग खा रहा है, लेकिन इसे देखने वाला कोई नहीं है. गम्हरिया गांव स्थित मठ के 83 वर्षीय महंत रामकिशोर दास को परियोजना से संबंधित बहुत सी बातें आज भी याद है. कहते हैं कि गम्हरिया में वर्ष 71 में कार्यालय खुला. यहां एक कार्यपालक अभियंता, चार सहायक अभियंता व 16 कनीय अभियंता के अलावा कर्मियों की नियुक्ति की गयी थी. वर्ष 90 तक यहां कार्यालय रहा. — अब भी हाई कोर्ट में मुकदमा गम्हरिया के गणेश सिंह करीब 55 वसंत पार कर चुके हैं. श्री सिंह के अलावा मनियारी के ब्रज किशोर मिश्र कहते हैं कि वर्ष 1979 से 89 तक क्षेत्र के 200 लोग मास्टर रॉल पर काम करते थे. तब 150 महीना मिलता था. बाद में बढ़ कर दो हजार हो गया. प्रोजेक्ट बंद होने के साथ हीं वेतन भी बंद हो गया. इसी बीच, मास्टर रॉल पर काम करने वाले एक व्यक्ति को बागमती में नौकरी मिल गयी और अन्य को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया. नौकरी सभी को मिलनी चाहिए थी, को लेकर हाई कोर्ट में अब भी मुकदमा चल रहा है. बता दें कि प्रोजेक्ट में काम करने वाले प्रभाकर नंद सिंह, मनियारी के बाबूलाल राय, चंद्रकिशोर मिश्र व बराहीं के राम पुकार मिश्र समेत क्षेत्र के 10-12 लोग रिटायर हो गये और उन्हें पेंशन भी मिल रहा है. भले हीं प्रोजेक्ट बीच में दम तोड़ दिया.

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