विफल हो रहीं योजनाएं, मजदूरों की जगह मशीनों से लिया जा रहा काम
सीतामढ़ी : मजदूरों को उनके पंचायत व गांव में काम मिल सके, इसको ध्यान में रख कर केंद्र सरकार ने मनरेगा शुरू की. इसके पीछे सोच थी कि मजदूरों का पलायन रूक सके. शुरू में मजदूरों को इस योजना का पूरा लाभ मिला. बाद के वर्षो में अन्य योजनाओं की तरह इसका हाल हो गया.
इसके लिए एक मात्र संवेदक जिम्मेवार नहीं है, बल्कि इस विभाग से जुड़े तमाम अभियंता भी जिम्मेवार हैं. मनरेगा के तहत काम तो होते रहे, पर मजदूरों को काम नहीं मिला. इसी कारण मजदूरों का पलायन शुरू हुआ जोअब तक जारी है. गत रविवार को 100 से अधिक मजदूर पंजाब व अन्य शहरों के लिए पलायन कर गये.
मानव सृजन पर ध्यान नहीं
मनरेगा की योजनाओं में अधिकांश कार्य मजदूरों से लेना है, लेकिन संवेदकों द्वारा ट्रैक्टर व जेसीबी मशीन समेत अन्य चीजों से काम लिया जाता है. इसी कारण काम नहीं मिलने के चलते मजदूर घर बैठे रह जाते हैं और उनके व परिजनों के समक्ष भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो जाती है. वे मानते हैं कि बिना प्रदेश गये बाल-बच्चों का पेट चलाना संभव नहीं है.
कम मजदूरों को मिलता है काम
सीतामढ़ी स्टेशन पर पंजाब व अन्य प्रदेशों में कमाने के लिए जाने को पहुंचे बथनाहा प्रखंड के मझौलिया गांव के बिकाऊ महतो, राजेश्वर साह, विंदलाल साह, नंद किशोर महतो, रामबाबू मंडल, कालीचरण पासवान, तेजनाथ महतो, वीरेंद्र महतो, उमेश मंडल व मनोज साह ने बताया कि अगर जीना है तो बाहर जाना पड़ेगा. पंचायत में काम नहीं मिलने के चलते बाहर जाना पड़ रहा है.
नहीं जाना चाहते बाहर
मजदूरों ने बताया कि बाल-बच्चों को छोड़ बाहर जाना अच्छा नहीं लगता है, लेकिन सवाल पेट का है. गांव पर काम मिल नहीं रहा है तो बाहर जाना हीं पड़ेगा. बताया कि मनरेगा के तहत काम कराये जाते हैं, लेकिन काफी कम मजदूरों का उपयोग किया जाता है. ट्रैक्टर व अन्य मशीनरी के उपयोग के चलते उन जैसे मजदूरों को दरकिनार कर दिया जाता है.
एक फसल में 20 हजार कमाई
मजदूरों ने बताया कि मनरेगा में काम मिलता तो अच्छा था. ऐसे काम कर पेट चलाना संभव नहीं है. पंजाब में एक फसल में काम कर 18 से 20 हजार की आमदनी हो जाती है. अगर रात को भी काम कर लें तो यह आमदनी और बढ़ जाती है. इस स्थिति में भला कौन मजदूर पंजाब की ओर रुख नहीं करेगा.