प्रात: 6.00 से सायं 6.46 बजे तक तीज व 6.47 बजे से मनाया जाएगा चौठ चांद का त्योहार
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हरितालिका तीज व चौठ चांद का पर्व आज, हुई खरीदारी
प्रात: 6.00 से सायं 6.46 बजे तक तीज व 6.47 बजे से मनाया जाएगा चौठ चांद का त्योहार सीतामढ़ी : बुधवार को हरतालिका यानी तीज व चौठ-चांद का त्योहार एक साथ मनाया जाएगा. प्रात: छह बजे से सायं 6.46 बजे तक तीज व्रत का शुभ मुहूर्त है. भाद्र शुक्ल तृतीया तिथि में तीज का व्रत […]
सीतामढ़ी : बुधवार को हरतालिका यानी तीज व चौठ-चांद का त्योहार एक साथ मनाया जाएगा. प्रात: छह बजे से सायं 6.46 बजे तक तीज व्रत का शुभ मुहूर्त है. भाद्र शुक्ल तृतीया तिथि में तीज का व्रत किया जाता है.
शाम 6.46 बजे तक तृतिया तिथि का योग है, इसलिए बुधवार को सुबह से शाम तक तीज का त्योहार मनाया जाएगा. वहीं, बुधवार की शाम 6.47 बजे से चतुर्थी तिथि का प्रारंभ होता है, इसलिए चौठ-चंद्र का त्योहार भी बुधवार की शाम को ही मनाया जाएगा.
ज्ञयं चतुर्थी प्रदोषव्यापिनी ग्राह्या: इस विशेष वचन के अनुसार प्रदोष काल की चतुर्थी तिथि में ही चौठ चंद्र मनाने का विधान है. अत: व्रत द्वय बुधवार को ही मनाया जाएगा. परिहार प्रखंड के धरहरवा गांव निवासी पंडित मुकेश कुमार मिश्र ने बताया कि कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित विश्वविद्यालय पंचांग के अनुसार गुरुवार को 5.56 बजे तक ही चतुर्थी तिथि है और सूर्यास्त सायं 6.09 बजे हो जाएगा. यानी सूर्यास्त से पूर्व ही चतुर्थी तिथि समाप्त हो जाएगा, इसलिए बुधवार को ही चौठ चंद्र का त्योहार भी मनाया जाएगा.
व्रत के प्रभाव से गौरी को हुई थी शंकर की प्राप्ति : जन्म जन्मांतर तक परम सौभाग्य की मनोकामना के लिए स्त्रियों को तीन व्रत की उपासना करनी चाहिए. व्रत के प्रभाव से गौरी को शंकर की प्राप्ति हुई थी.
सभी व्रतियों को इस दिन निर्मल मन से स्वयं या किसी पुरोहित द्वारा शुद्ध मिट्टी का शिवलिंग बना कर साम्ब सदाशिव की मन से पूजन-अर्चन करनी चाहिए. इसके बाद कथा का श्रवण करना चाहिए और अंत में पुष्प-विल्वपत्र लेकर ‘मंदारमाला कुलितालकायै कपालमालांकितशेखराय दिव्यांवरायै च दिगंबराय नम: शिवाय च नम: शिवाय’ व कर्पूरगौरं करुणावतारं… आदि मंत्रों से श्री उमामहेश्वर को पुष्पांजलि अर्पित करनी चाहिए.
दही व फल के साथ करनी चाहिए चंद्रदेव का दर्शन : चौठ चंद्र के दिन सायं बेला में चतुर्थी चंद्र व रोहिणी की पूजा की जाती है. प्राय: मिथिलांचल में इस व्रत को मनाने की परंपरा है. घर की माताओं द्वारा नाना प्रकार के पकवानों, दही व फलों आदि से चौठ चंद्र की पूजा-आराधरना करती हैं. इस शुभ अवसर पर परिवार के सभी सदस्य उपस्थित होते हैं. सभी की उपस्थिति में पूजा-आराधना की जाती है. फिर घर के ज्येष्ठ संतानों द्वारा मारर भांगा जाता है. बाद में परिवार के सभी सदस्य दही व फल लेकर ‘सिंह: प्रसेनमवधीत सिंहो जाम्बवता हत: सुकुमारक मा रोदी तव ह्येष स्यमंतक:’ मंत्र पढ़ते हुए चंद्रदेव का दर्शन करना चाहिए.
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