ब्रह्मर्षि विचार मंच की ओर से आयोजन
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व्रत से बंधे बिना संभव नहीं मनुष्य का उत्थान
ब्रह्मर्षि विचार मंच की ओर से आयोजन आचार्य पांडेय ने कहा, नौ धागे हैं नौ गुणों का प्रतीक बच्चों को आडंवर रहित संस्कार दिलाने का संकल्प सीतामढ़ी : ब्रह्मर्षि विचार मंच के तत्वावधान में सोमवार को पुनौराधाम स्थित कामिनी विवाह भवन में 151 वरुओं का सामूहिक यज्ञोपवित संस्कार का आयोजन किया गया. पुनौराधाम जानकी मंदिर […]
आचार्य पांडेय ने कहा, नौ धागे हैं नौ गुणों का प्रतीक
बच्चों को आडंवर रहित संस्कार दिलाने का संकल्प
सीतामढ़ी : ब्रह्मर्षि विचार मंच के तत्वावधान में सोमवार को पुनौराधाम स्थित कामिनी विवाह भवन में 151 वरुओं का सामूहिक यज्ञोपवित संस्कार का आयोजन किया गया.
पुनौराधाम जानकी मंदिर के महंथ श्री श्री 108 कौशल किशोर दास, महंथ राम उदार दास, मंच के अध्यक्ष कृष्ण मोहन सिंह एवं मंच के वरिष्ठ सदस्यों ने संयुक्त रुप से दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया. आचार्य विद्यानंद पांडेय एवं साथियों द्वारा विधिवत यज्ञोपवित संस्कार का शुभारंभ कराते हुए कहा कि यज्ञोपवित बालक को तब धारण करनी चाहिए,
जब उसकी बुद्धि और भावना का इतना विकास हो जाये कि संस्कार के प्रायोजन को समझ कर उसका निर्वहन के लिए उत्साह पूर्वक तैयार हो सके. व्रत से बंधे बिना मनुष्य का उत्थान संभव नहीं है. यज्ञोपवित के नौ धागे, नौ गुणों का प्रतीक है.
यज्ञोपवित भारतीय धर्म का पिता और गायत्री भारतीय संस्कृति की माता, यज्ञ पिता के कंधे पर तथा गायत्री माता के ह्दय में एक साथ धारण किया जाता है. मंच के अध्यक्ष श्री सिंह ने कहा कि मंच का यह तीसरा सामूहिक यज्ञोपवित संस्कार का आयोजन समाज के विभिन्न पुरुधाओं के आर्थिक सहयोग से तथा सदस्यों के परिश्रम से समाज को अपव्यय से बचाने, आडंवर रहित संस्कार बच्चों को दिलाने के उद्देश्य से संकल्पित है. मंच अपने पूर्वजों की भांति समाज के कुरीति को समाप्त कर बच्चों को अच्छे तरीके से संस्कार दिलाकर समाज को नयी
दिशा देने के लिए भी प्रेरित करता है. नशापान मुक्त समाज तथा दहेज लेन-देन मुक्त समाज बनाने की दिशा में प्रयासरत है. उक्त कार्यों को अंजाम तक पहुंचाने में समाज के सभी वर्ग के लोगों को आगे आना होगा, तभी हमारे बच्चे समाज एवं राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका का निर्वहन करेंगे. मंच के प्रवक्ता डॉ राजीव कुमार काजू ने बताया कि सीतामढ़ी व शिवहर जिला के विभिन्न गांवों के 151 वरुआ में 145 भूमिहार ब्राह्मण, दो ब्राह्मण, दो खत्री तथा दो चनेऊ जाति के वरुआ ने यज्ञोपवित संस्कार में भाग लिया.
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