सीतामढ़ी : सोमवार को जिले भर में हजारों महिला एवं पुरुष श्रद्धालुओं ने आस्था पूर्वक नकर निवारण चतुर्दशी का व्रत रखकर नर्क से मुक्ति पाकर मोक्ष की प्राप्ति के लिए ईश्वर से कामना की. मान्यता है कि माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है. शास्त्रों में बताया गया है कि इसी दिन हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती की शादी का प्रस्ताव भगवान शिव के पास भेजा था और इसी दिन भगवान शिव का विवाह तय हुआ था. इस तिथि से ठीक एक महीने के बाद फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव का देवी पार्वती के साथ विवाह संपन्न हुआ था. शास्त्रों में कहा गया है कि प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि शिवरात्रि के समान खास है, लेकिन माघ व फाल्गुन मास की चतुर्दशी शिव को सबसे अधिक प्रिय है.
खासकर माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक निवारक चतुदर्शी कहा गया है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखकर जो व्यक्ति भगवान शिव, पार्वती व गणेश की आराधना करता है, उसपर भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और नर्क से मुक्ति देकर मोक्ष प्रदान करते हैं. नर्क से बचने तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए नरक निवारण चतुर्दशी के दिन भगवान शिव को बेलपत्र के साथ ही खासतौर पर बेड़ जरुर भेंट किया जाता है. व्रत रखने वाले श्रद्धालु दिन भर निराहार रहकर शाम की बेला में व्रत को तोड़ते हैं और पारन करते हैं. व्रती पहले बेर उसके बाद तिल खाकर व्रत तोड़ते हैं. पंडितों ने बताया कि सिर्फ व्रत से ही काम नहीं चलता है. यह भी प्रण करना चाहिए कि मन, वचन और कर्म से जान-बूझकर कभी किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएंगे. केवल भूखा रहकर नियम का पालन कर लेने भर से व्रत की पूर्ति नहीं हो पाती है.