बताओ मां, मेरी क्या गलती है!डेढ़ वर्ष में दो दर्जन नवजात बच्चे-बच्चियों को माताओं ने विभिन्न चौक-चौराहों पर लावारिस हालत में फेंका माता एवं पिता की ममता की छांव से वंचित दो दर्जन बच्चों की चिंता सता रही जिला बाल संरक्षण इकाई को कई बच्चे हो जाते हैं जानवरों के शिकारकुछ बच्चों को मिल जाती है किसी दयालु दंपती की गोदसंवाददाता, छपरा (सदर)गर्भावस्था के दौरान मां को तथा बच्चे के जन्म के बाद जच्चा-बच्चा दोनों को अपनों के भावनात्मक सहयोग की जरूरत होती है. ऐसे में जिले में डेढ़ वर्ष में करीब दो दर्जन नवजात बच्चे-बच्चियों को उनकी माताओं या परिजनों ने विभिन्न चौक-चौराहों पर लावारिस हालत में फेंक दिया. इससे बुद्धिजीवी तबका काफी चिंतित है कि आखिर उन नवजातों का क्या कसूर है. अपनों की बुरी नीयत से कई किशोरियों की जिंदगियां हुई तार-तारपिछले कुछ वर्षों में कई ऐसी वारदातें देखने को मिल रही हैं जहां कथित रूप से कुछ अपने ही करीबी लोगों द्वारा चाहे-अनचाहे में किशोरियों या युवतियों को अपनी हवस का शिकार बना लिया जाता है. ऐसे में कई किशोरियां बिन ब्याही कम उम्र में ही मां बनने को विवश कर दी जाती हैं. ऐसी स्थिति में अपने कोख से जन्म लेनेवाले बच्चों के भावनात्मक लगाव की कौन कहे, कुछ ऐसी माताएं अपने अस्तित्व को लेकर ही जूझने लगती हैं. छपरा स्थित बालिका गृह में एक कथित रूप से अपनों के द्वारा हवस की शिकार किशोरी जहां अपने बच्चे को अपनाने की मुद्रा में नहीं दिखती है, तो वहीं दूसरी किशोरी, जो छह माह की गर्भवती है, उसे भी अपनी पहचान छिपाना एक चुनौती से कम नहीं है. यही नहीं, विगत डेढ़ साल में जिला बाल संरक्षण इकाई में विभिन्न क्षेत्रों की माताओं के द्वारा अपनी कोख से जन्माये गये बच्चे को फेंके जाने के बाद उठा कर उन्हें सरकारी स्तर पर ममता की छांव दी गयी है. वहीं, अपनी माताओं की गलती का खामियाजा भुगतते हुए अपने माता-पिता के स्नेह से वंचित इन बच्चों को दूसरे कुछ दयालु या जरूरतमंद दंपती के द्वारा गोद लेकर कानूनी माता-पिता का दर्जा लिया जा रहा है. जनवरी के प्रथम सप्ताह में ही छपरा-सोनपुर रेलखंड पर किसी-न-किसी के प्रेमजाल में फंसी एक युवती के गर्भवती होने व उसका गर्भपात कराने में विफल परिजनों ने ट्रेन से धकेल कर मौत के घाट उतार दिया. ऐसी स्थिति में समाज के पवित्र संबंधों में गिरती मानसिकता के परिणामों का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. सीडब्ल्यूसी के पूर्व अध्यक्ष रहे व बच्चों के संरक्षण की दिशा में कार्य करनेवाले समाजसेवी देवेशनाथ दीक्षित ने बताया कि मनुष्य के चारित्रिक दोष के कारण ही नवजात बच्चों को अपने माता-पिता के स्नेह की छाया तक नहीं मिल रही है. कुछ माताएं अपनी कोख से जनमे बच्चे को लावारिस फेंक देती हैं, जिन्हें कभी-कभी लावारिस जानवरों का भी शिकार होना पड़ता है. ऐसे दुर्भाग्यशाली बच्चे शायद यही कहते होंगे, मां इसमें मेरी क्या गलती है.
बताओ मां, मेरी क्या गलती है!
बताओ मां, मेरी क्या गलती है!डेढ़ वर्ष में दो दर्जन नवजात बच्चे-बच्चियों को माताओं ने विभिन्न चौक-चौराहों पर लावारिस हालत में फेंका माता एवं पिता की ममता की छांव से वंचित दो दर्जन बच्चों की चिंता सता रही जिला बाल संरक्षण इकाई को कई बच्चे हो जाते हैं जानवरों के शिकारकुछ बच्चों को मिल जाती […]
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